बुरी तरह संक्रमित है नगर की अगड़ा की राजनीति
एम हसीन
रुड़की। निर्धारित तिथि 10 नवंबर को निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी होने की सम्भावना न के बराबर है। कारण यह है कि सरकार ने अभी निकायों के लिए आरक्षण जारी नहीं किया है। आरक्षण की अनंतिम सूचना जारी करना और फिर आपत्तियां आमंत्रित करना। तत्पश्चात अंतिम सूची जारी करना वक्त लेने वाला काम है। ज्यादा भी नहीं तो एक सप्ताह का समय तो इसके लिए चाहिए ही चाहिए; और 10 नवंबर में अब इतना समय बाकी नहीं है। इसलिए चुनाव का आगे बढ़ना लाज़मी है। इस सबके बीच विश्वसनीय सूत्रों का यह कहना है कि रुड़की मेयर पद का आरक्षित होना लाजमी होगा।
बीते बरसों में महानगर में राजनीति का जो रूप बदला है और जो आर्थिक वातावरण नगर में बना है उसने महानगर की अगड़ा राजनीति में गंभीर संक्रमण पैदा कर दिया है। इसमें कहीं न कहीं इस बात की भूमिका भी है राजनीतिक रूप से अभी तक तक खुद को प्रासंगिक मानने वाले और बेशक प्रभावशाली तमाम लोग अपने लिए कोई राजनीतिक मंजिल हासिल कर पाने में नाकाम हैं। इसके विपरीत तमाम युवा पीढ़ी के लोग दूसरों के कंधों पर सवार होकर कहीं का कहीं पहुंच गए हैं। यह सब ऐसा ही जैसे कोई दरोगा सीधे कप्तान के टच में आ जाए और फिर कप्तान की शय पर जिला चलाने लगे। ऐसे में जाहिर है कि सारे इंस्पेक्टर, सारे सी ओ, सारे एस पी कुंठित हो जी जाएंगे। हालात ये हैं कि नगर में भाजपा-कांग्रेस के कम से कम आधा दर्जन वरिष्ठ चेहरे ऐसे हैं जो अपने वारिसों को महज पार्षद का टिकट दिलाने के प्रयास में कोई रास्ता तलाश नहीं कर पा रहे हैं।
घात-प्रतिघात की राजनीति ने यह स्थिति पैदा की है। अब यह स्थिति प्रभावशाली लोगों के लिए तकलीफ का कारण बन गई है और संक्रमण बढ़ गया है। मिसाल एक ही प्रासंगिक होगी। 2022 के विधानसभा चुनाव में मुश्किल से जीते नगर विधायक प्रदीप बत्रा के लिए यह आत्मसात कर पाना आसान नहीं है कि भाजपा किसी को भी मेयर का टिकट देकर और फिर उसे मेयर बनाकर उनके सिर पर थोप दे। इसी प्रकार पिछले निकाय चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी रह चुके कद्दावर संघ नेता मयंक गुप्ता के लिए यह आसान नहीं है कि भाजपा उन्हें बायपास करके किसी और को टिकट दे दे और वे टुकुर-टुकुर मुंह देखते रहें या फिर प्रदीप बत्रा अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके किसी को भी मेयर बना दें। अहमियत इस बात की है बात इन दोनों दिग्गजों तक महदूद नहीं है। इनसे ऊपर के भाजपाइयों के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। गनीमत यह है कि संक्रमण के ये हालत अभी केवल पार्टी की अगड़ा राजनीति के हैं। यही कारण है कि ऊपर से नीचे तक नगर के अगड़ा चेहरे आरक्षण में पनाह तलाश करने की कोशिश कर रहे हैं। कमाल की बात यह है कि यह स्थिति तब है जब, पूर्व गन्ना परिषद अध्यक्ष अशोक चौधरी के अलावा, पार्टी में एक भी पिछड़ा चेहरा ऐसा नहीं जो सामान्य सीट पर भी टिकट मांगने का हौसला दिखा रहा हो। पार्टी में पिछड़ा चेहरे बहुत हैं लेकिन सभी का टिकट पर दावा तभी है जब सीट आरक्षित हो जाए।