राजनीतिक शून्यता खत्म करने की पिछड़ा वर्गीय मुहिम
एम हसीन
रुड़की। गन्ना परिषद के पूर्व सभापति और जादूगर रोड वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष अशोक चौधरी शोकग्रस्त हैं। उनके अग्रज चौधरी बिजेंद्र सिंह का इसी 21 अक्टूबर को देहावसान हो गया है। उनकी मुक्ति की कामना और अशोक चौधरी परिवार के प्रति इन पंक्तियों लेखक की हार्दिक संवेदना। लेकिन साथ ही उनकी भाजपा के मेयर टिकट पर दावेदारी का सवाल भी। महत्वपूर्ण इसलिए कि उन्होंने तब भी टिकट पर दावा किया है जब मेयर पद आरक्षित न हो अर्थात पद सामान्य रहे। ध्यान रहे कि अशोक चौधरी पिछड़ा वर्ग की गुर्जर बिरादरी से आते हैं। खुद अशोक चौधरी का कहना है कि उनका आवेदन सामान्य सीट पर भी कायम रहेगा, लेकिन चुनाव वे तभी लड़ेंगे जब पार्टी टिकट देगी। इसीलिए सवाल यही है कि क्या पार्टी उनके दावे पर गौर करेगी?
इस दावेदारी को भाजपा की पिछड़ा राजनीति के संदर्भ में ही नहीं बल्कि पिछड़ा जागृति के संदर्भ में भी देखे जाने की जरूरत है। इसे यूं देखे जाने की जरूरत है कि वे मेयर पद के लिए आरक्षण नहीं मांग रहे हैं बल्कि अपनी जाति पिछड़ा होने के बावजूद सामान्य सीट पर अपने लिए मेयर टिकट की मांग कर रहे हैं। भाजपा में मेयर टिकट के दावेदार और पिछड़ा चेहरे भी हैं लेकिन बाकी सबका टिकट पर दावा तभी है जब पद आरक्षित हो जाए। यानि भाजपा की बाकी पिछड़ा राजनीति और अशोक चौधरी की मांग में यह अमूल-चूल अंतर दिखाई देता है जो सुविधा का नहीं बल्कि प्रतिस्पर्धा का अवसर मांगता है। उच्च शिक्षा प्राप्त अशोक चौधरी की यह सोच अपेक्षित भी है। इससे स्पष्ट होता है कि वे पुरानी घिसी-पिटी जातीय, वर्गीय सामाजिक राजनीति से अलग एक नई सामाजिक राजनीति के पक्षधर हैं। वे एक ख्यात राजनीतिक घराने से आते हैं और उनके बायो-डाटा में कई राजनीतिक पद भी दर्ज हैं। इनमें एक महत्वपूर्ण पद यह भी है कि वह जादूगर रोड वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष हैं। सर्वधर्मीय, सर्व वर्गीय, सर्व जातीय लोगों की रिहायशगाह जादूगर रोड के लोगों का उनका अध्यक्ष होना उनकी सामंजस्यवादी राजनीतिक सोच को जाहिर करता है।
यह अलग से बहस का मुद्दा हो सकता है कि भाजपा का मध्य स्तर का या राज्य स्तर का नेतृत्व रुड़की महानगर में पिछड़ा राजनीति को किस रूप में ले रहा है। लेकिन जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि भाजपा में पिछड़ा राजनीति का मंच काफी पहले से सजा हुआ है। यह इसी से जाहिर है कि मेयर जैसे बड़े, महत्वपूर्ण और गरिमामय पद के लिए भाजपा के टिकटार्थियों में आधा दर्जन के करीब पिछड़ा वर्ग के लोग हैं। 2019 के मेयर चुनाव से पूर्व भी टिकट किसी पिछड़ा वर्ग के चेहरे को दिए जाने की मांग को लेकर पार्टी के अधिकांश पिछड़ा चेहरे बार-बार एक मंच पर आए थे और सब ने एक स्वर में मेयर पद को आरक्षित करने की मांग की थी। उस समय की इस मांग को अशोक चौधरी ने रिफाइंड और सोफिस्टिकेटेड रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने मेयर पद को आरक्षित करने की नहीं बल्कि अपने लिए टिकट की मांग की है; फिर चाहे पद आरक्षित हो या न हो। अशोक चौधरी का यह भी स्पष्ट कहना है कि उनका मौजूदा संघर्ष केवल पार्टी टिकट के लिए है। चुनाव का संघर्ष तब प्रारंभ होगा जब पार्टी उन्हें टिकट देगी। अर्थात पार्टी से अलग हटकर उनका चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है।