निकाय चुनाव की घोषणा के साथ ही स्थापित हो जाएगा महत्व
एम हसीन
रुड़की। क्या कोई यह उम्मीद कर सकता है कि दो राष्ट्रीय पार्टियों की शिरकत के साथ किसी महानगर के मेयर का चुनाव चल रहा हो, चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों समेत अन्य दलीय-निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में हों और सभी प्रत्याशियों के चुनाव अभियान का कंट्रोल किसी एक ही स्थान से, एक ही छत के नीचे से, एक ही व्यक्ति द्वारा किया जा रहा हो? जी हां। ऐसा हुआ है 2019 के निकाय चुनाव में और उससे पहले रुड़की में ही हुआ है। अब उस धुरंधर की कल्पना कीजिए जो भाजपा-कांग्रेस-बसपा समेत महानगर की समूची राजनीति को अपनी जेब में ले के चलते रहा हो। जो 2017 या 2022 के विधानसभा चुनाव में ओवरनाइट हजारों वोटों का कन्वर्शन विपरीत विचारधारा के प्रत्याशी के पक्ष कराने का करिश्मा करा चुका हो और वो भी ऐसी बेल्ट में जहां इसके अलावा वोट का कन्वर्शन कराने में शायद ऊपर वाला भी हाथ ऽड़े कर देता।
और——। और 2024 में यही सीन दोहराए जाने की पूरी संभावना दिखाई दे रही है। कमाल की बात यह है कि यह धुरंधर बजात-ए-खुद न नेता है, न एम पी-एम एल ए है और न ही किसी नेता का पी ए है। लेकिन आसन्न चुनाव में उपरोक्त धुरंधर का जलवा इसलिए कायम होता दिखाई दे रहा है क्योंकि महानगर की राजनीति में पिछले 5 साल में कोई बदलाव नहीं आया है। निवर्तमान मेयर गौरव गोयल अपने चेहरे पर राजनीति में अप्रासंगिक जरूर हुए हैं, इतिहास के किसी एकाध दूसरे बड़े चेहरे की चमक मद्धम जरूर हुई है, सचिन गुप्ता और चेरब जैन जैसे एकाध चेहरे का निर्णायक उभार भी महानगर में हुआ है, बाकी सबकुछ पहले जैसा ही है। मयंक गुप्ता भाजपा के मेयर टिकट के दावेदार आज भी हैं और यशपाल राणा भी खम ठोककर मैदान में आ गए हैं।

रुड़की शिक्षित लोगों का शहर है इसलिए यहां की राजनीतिक हकीकतें भी कुछ अलग हैं। मसलन, यहां का राजनीतिक वातावरण एक समान है। वैसे तो कई कांग्रेसियों ने भाजपा गमन करके यह दिखा दिया है कि उनके भीतर मूल रूप से भाजपा ही बसी हुई थी। बात केवल मत विभाजन की लोकतांत्रिक आवश्यकता पूरी करने की है। इसी कारण यहां कुछ लोग भाजपा की और कुछ लोग कांग्रेस की राजनीति करते हैं। बसपा का नंबर तीसरा है जो उन में से किसी का ठिकाना बनता है जिसे हर हाल में चुनाव लड़ना ही हो और अपनी मूल पार्टी अर्थात भाजपा या कांग्रेस से उसे टिकट न मिला हो। या फिर अपना धुरंधर अपने दफ्रतर में बैठकर महसूस करे कि वह जिसे चुनाव हराना चाहता है उसके वोट काटने के लिए किसे तीसरा उम्मीदवार बनाया जाए या जिसके हक में तीसरे प्रत्याशी को टिकट सरेंडर करने पर मजबूर किया जाए।
जैसाकि ऊपर बताया जा चुका है कि रुड़की में राजनीति का काम राजनेता नहीं बल्कि काराबारी करते हैं, कारोबारियों में भी वे जिनका फोकस रियल एस्टेट के धंधे पर है, जो मल्टी स्टोरीज सोसाइटियां बना रहे हैं या जो कॉलोनाईजर्स हैं, जो बिल्डिंग कन्स्ट्रक्शन का काम कर रहे हैं या जो बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल होने वाले मैटेरियल के सप्लायर्स हैं। कोई बड़ी बात नहीं कि इनमें खनन के बड़े कारोबारी भी शामिल हैं और बड़े फाईनांसर्स भी। जाहिर है कि यह एक बड़ी टीम बन जाती है। हालांकि इस टीम का समय की आवश्यकता के हिसाब से बनना-बिगड़ना और बनने का क्रम चलता रहता है। फिर भी आमतौर पर देखने में यही आया है कि इस टीम का लीडर एक ही है और यही धुरंधर है। इस धुरंधर की महत्ता ऊपर बताई जा चुकी है और ऐसा लग रहा है कि धुरंधर के महत्व का दौर चुनाव की घोषणा के साथ ही आ सकता है।