सोलानी रपटा निर्माण पर खामोश रहे पूर्व मुख्यमंत्री
संवाद सहयोगी
रुड़की। सोलानी नदी के पुल के निर्माण को लेकर अब कांग्रेस के शीर्ष महारथी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत मैदान में आए हैं। इस पुल के निर्माण को लेकर रुड़की के भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा और कलियर के कांग्रेस विधायक हाजी फुरकान अहमद विधानसभा के भीतर मांग उठ चुके हैं। उपरोक्त के अलावा कांग्रेस के महानगर अध्यक्ष राजेंद्र चौधरी एडवोकेट भी एक से ज्यादा बार यह मांग उठ चुके हैं और कांग्रेस के ही सुभाष सैनी इसी मुद्दे को लेकर विधायक प्रदीप बत्रा की अर्थी भी जला चुके हैं। सवाल यह है कि भाजपा और कांग्रेस के छोटे से बड़े नेता दलनिरपेक्ष होकर इस पुल को लेकर जो अलख जगा रहे हैं उसका कारण क्या है?
यह अपनी जगह पर सच है कि इस पुल के बंद हो जाने के कारण जनता को खासी दिक्कत उठानी पड़ रही है। 2022 में बुनियाद में कथित रूप से दरार आ जाने के कारण इस पुल पर भारी यातायात प्रतिबंधित कर दिया गया था। हल्के चार पहिया वाहनों को तो इस पुल पर से गुजरने की अनुमति है लेकिन बस, ट्रक और उससे अधिक भारी यातायात यहां संचालित नहीं हो पा रहा है। जनता की समस्या यह है कि रुड़की हरिद्वार के बीच बसों को भी वाया ढंडेरा-नगला इमरती होते हुए बाईपास से सफर करना पड़ रहा है। यह यात्रियों की जेब पर भी बोझ डालने वाला साबित हो रहा है और सफर की समयावधि भी बढ़ रही है।
इसलिए पुल के निर्माण की मांग का उठना गैर-मुनासिब नहीं है। लेकिन इससे रपटा प्रकरण भी जुड़ा हुआ है। अहमियत इस बात की है विधायक की पहल पर लोक निर्माण विभाग ने वैकल्पिक मार्ग की जरूरत के तहत तुरत-फुरत रपटे का एस्टीमेट भी बना दिया, शासन ने उसे स्वीकार भी कर लिया, धनराशि भी आवंटित हो गई, लोक निर्माण विभाग ने इसकी निविदा प्रकाशित कराई या नहीं यह किसी को नहीं पता लेकिन ठेकेदार के नाम विभाग ने कार्य आदेश जारी कर दिया और आधा-अधूरा निर्माण होने पर भुगतान भी जारी कर दिया। फिर 95 लाख रुपए की कथित घपले बाजी का मामला तूल पकड़ा तो विभाग के जूनियर इंजीनियर और असिस्टेंट इंजीनियर से लेकर एग्जीक्यूटिव इंजीनियर तक अपने दड़बों में दुबक गए और मीडिया के लिए मोर्चा संभाल नगर विधायक प्रदीप बत्रा ने। विवाद इतना बढ़ा कि छुट्टी पर गए तत्कालीन अधिशासी अभियंता मोहम्मद आरिफ खान ने अपने स्थानांतरण को तरजीह दी। महीनों डिवीजन का चार्ज अस्थाई व्यवस्था के तहत चला और अब स्थाई अधिशासी अभियंता के तैनाती की गई है। इसके साथ ही पुल के निर्माण का मामला सिर उठाने लगा है। यह अपने आप में हैरत अंग्रेज बात है।
इस प्रकरण का सबसे दिलचस्प पक्ष यह है लोक निर्माण विभाग ने रपटे के एस्टीमेट से लेकर रपटा निर्माण का काम बुलेट ट्रेन की रफ्तार से किया उस लोक निर्माण विभाग ने पुल का एस्टीमेट बनाने में दो साल लगा दिए। और अभी तक एस्टीमेट स्वीकार नहीं हुआ है। है न दिलचस्प बात कि सत्तारूढ़ दल के विधायक प्रदीप बत्रा और मुख्यमंत्री के सबसे निकट विपक्षी विधायक माने जाने वाले, विकास को समर्पित कांग्रेस विधायक हाजी फुरकान अहमद भी पुल के निर्माण को लेकर केवल सदन में आवाज उठाने का काम ही कर पा रहे हैं एस्टीमेट को स्वीकार कराने के मामले में उनकी ताकत सचिवालय में काम नहीं कर रही है। और अब तो पुल के निर्माण की मांग को लेकर सूबे के सुपर पॉलिटिशियन हरीश रावत भी झंडा उठाकर खड़े हो गए हैं। सवाल यह है कि क्यों तो सरकार इस पुल के निर्माण को मंजूरी नहीं दे रही है और क्यों समूचा पक्ष-विपक्ष इसे लेकर लगातार सक्रिय है? इसके पीछे मामला रपटे का है या सोलानी की चौड़ाई तय करने का? क्या इसके पीछे भाजपा स्थानीय नेताओं के आपसी हितों का टकराव? साथ ही यह सवाल भी है कि हरीश रावत के प्रयास से पुल के निर्माण को मंजूरी मिल जाती है तो इसका लाभ भाजपा के कौन से स्थानीय गुट को पहुंचने वाला है?