साथ को महीनों बाद मिला नया अपर मुख्य अधिकारी, लंबे अरसे बाद बोर्ड की बैठक 19 अक्टूबर को

एम हसीन

हरिद्वार। जिला पंचायत को स्थाई अपर मुख्य अधिकारी मिल गया है। इससे यह भी लगता है कि संस्था के भीतर की राजनीति को भी फिलहाल एक दिशा मिल गई है; अर्थात परस्पर प्रतिस्पर्धियों के हाथ मिल गए हैं और पक्ष-विपक्ष के बीच भी कम से कम न्यूनतम बिंदुओं पर सहमति बन गई है। यह इससे भी जाहिर है कि जिला पंचायत बोर्ड की बहुप्रतीक्षित बैठक निर्धारित हो गई है। जैसा कि बताया गया है कि बैठक 19 अक्टूबर को होगी।

गौरतलब है कि जिला पंचायत बोर्ड की बैठक का लंबे समय से इंतज़ार किया जा रहा था। पंचायत सूत्रों के अनुसार इस वर्ष फरवरी में बोर्ड की बजट बैठक हुई थी और उसके बाद लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई थी। जिला पंचायत अध्यक्ष किरण चौधरी ने लोकसभा चुनाव में बेहद सक्रिय भूमिका निभाई थी और पार्टी प्रत्याशी रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत की जीत सुनिश्चित करने के लिए खूब पसीना बहाया था। उसके बाद मंगलौर विधानसभा क्षेत्र के उप चुनाव में वे व्यस्त रहे थे और फिर कांवड़ यात्रा शुरू हो गई थी। इन्हीं सब गतिविधियों के बीच बोर्ड की बैठक लगातार पिछड़ती जा रही थी और कहीं जाकर 19 अक्टूबर को होना निर्धारित हुई थी। इस पूरी अवधि में जिला पंचायत के भीतरी प्रशासनिक-राजनीतिक समीकरणों में भी व्यापक परिवर्तन नजर आए थे।

मसलन, पिछली यानि बजट बैठक तक संस्था के अपर मुख्य अधिकारी रहे छिमवाल का स्थानांतरण हो गया था लेकिन शुरुआती दौर में उन्होंने नए स्थान, पिथौरागढ़, पर पदभार ग्रहण करने की बजाय अपने स्थानांतरण आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देना पसंद किया था। लंबे समय तक मामला हाई कोर्ट में लंबित रहा था, लेकिन फिर आखिरकार उन्होंने पिथौरागढ़ में ज्वाइन कर लिया था। इस बीच जिला पंचायत अपर मुख्य अधिकारी का पदभार जिले के मुख्य विकास अधिकारी के पास चला गया था। अब जिला पंचायत में नए अपर मुख्य अधिकारी की नियुक्ति कर दी गई है। इस प्रशासनिक बदलाव के साथ पंचायत में आया राजनीतिक बदलाव भी उल्लेखनीय है। सबसे बड़ा बदलाव तो यह बताया जा है कि जिला पंचायत अध्यक्ष किरण चौधरी ने पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सुभाष वर्मा के साथ हाथ मिला लिया है। ध्यान रहे कि किरण चौधरी सदस्य पद का चुनाव सुभाष वर्मा के ही खिलाफ मानकपुर सीट पर लड़े और जीते थे। तब सुभाष वर्मा का अपना नामांकन निरस्त हो गया था और उन्होंने किरण चौधरी के सामने अपने पुत्र नवनीत सिंह को चुनाव लड़ाया था। जाहिरा तौर पर यह भाजपाई राजनीति की भीतरी प्रतिस्पर्धा थी।

इसी कारण माना जाता रहा है कि जिला पंचायत बोर्ड की बैठक के लंबे समय तक न हो पाने का कारण यह प्रतिद्वंदिता ही थी। इसी के चलते अपर मुख्य अधिकारी छिमवाल के स्थानांतरण की नौबत भी आई थी। खासतौर पर इसलिए कि हरिद्वार संसदीय सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सांसद बन गए थे जो कि सुभाष वर्मा के लिए संजीवनी जैसा माना गया था। सब जानते हैं कि सुभाष वर्मा के सिर पर त्रिवेंद्र सिंह का हाथ हमेशा रहा है जबकि जिस समय किरण चौधरी जिला पंचायत अध्यक्ष बने थे तब हरिद्वार के सांसद डॉ रमेश पोखरियाल निशंक थे। डॉ निशंक ने तब जिला पंचायत चुनाव को अपने मान सम्मान का प्रश्न बनाकर लड़ाया था। इसी कारण किरण चौधरी पर मुहर डॉ निशंक की लगी हुई थी। फिर कोई बड़ी बात नहीं कि जिला पंचायत के चुनाव में असल टकराव डॉ निशंक और त्रिवेंद्र सिंह रावत के गुटों के ही बीच हुआ था। चूंकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की हमदर्दी डॉ निशंक के साथ दिखाई दी थी इसलिए उस समय सुभाष वर्मा राजनीतिक बाजी हार गए दिखाई दिए थे। लेकिन ऐसा केवल दिखाई दिया था, हुआ नहीं था। नए बोर्ड के गठन के बाद सुभाष वर्मा ने राजनीति शुरू की थी और एक दौर ऐसा भी आया था जब उन्होंने खानपुर विधायक उमेश कुमार के साथ गठजोड़ करके किरण चौधरी के नाक में दम कर दिया था। बोर्ड में हुए कथित भ्रष्टाचार का मामला विधानसभा में गूंजा था और सड़कों पर विधायक समर्थकों ने जिला पंचायत अध्यक्ष के और जिला पंचायत अध्यक्ष समर्थकों ने विधायक के सड़कों पर पुतले फूंके थे। फिर एकाएक मामला शांत हो गया था और लंबी खामोशी के बाद अब किरण चौधरी-सुभाष वर्मा के हाथ मिला लिए जाने की चर्चा है। इन्हीं हालात के बीच जिला पंचायत को नए अपर मुख्य अधिकारी मिल गए हैं और बोर्ड की बैठक भी 19 अक्टूबर को होना निर्धारित हो गई है। जिला पंचायत के एक सूत्र के अनुसार बैठक में विकास के प्रस्ताव लाया जाना निर्धारित है अर्थात पक्ष-विपक्ष के बीच भी न्यूनतम बिंदुओं पर सहमति बनी है। इससे लगता है कि जिला पंचायत में अब कुछ दिन ठहराव के रहने वाले हैं।