विधायक प्रदीप बत्रा के हाई प्रोफाइल ड्रामा का क्या यही है मतलब?
एम हसीन
रुड़की। प्रदीप बत्रा विधायक होने के नाते जिस काम को आई आई टी निदेशक के नाम महज एक चिट्ठी लिखकर खामोशी के साथ करा सकते थे, उसके लिए उन्होंने लंबे चौड़े आडंबर जोड़ लिए। सारी भाजपा को बोट क्लब पर इकठ्ठा कर लिया, सारे सामाजिक चेहरों को गला साफ करने का मौका दे दिया, सारे मीडिया को दिन भर अपनी प्रशस्ति करने का मौका दे दिया। समोसे रसगुल्ले तो खैर उन्होंने लोगों को खिला ही दिए होंगे, आखिर यह उनका प्राइड प्रोफेशन है जिसके कायल आई आई टी के प्रोफेसर भी रहे हैं। इसी बुनियाद पर तो आई आई टी कैंपस ने बत्रा को 2008 में नगर पालिका अध्यक्ष और 2012 में कांग्रेस के टिकट पर भी विधायक बना दिया था। बाद में तो चलो यूं भी माना जा सकता है कि उन्होंने भाजपा को वोट दिया होगा।
मसला केवल यह है कि आई आई टी के मौजूदा सुरक्षा अधिकारी, जो कि कोई प्रोफेसर ही हैं, ने मॉर्निंग वॉक करने वाले लोगों का प्रवेश आई आई टी परिसर में निषेध कर दिया है। सब पर पास की पाबंदी लागू कर दी हैं और पास की शर्तें बेहद सख्त कर दी हैं। इससे लोगों को दिक्कत हो रही है। जाहिर है कि लोगों की यह शिकायत विधायक तक गई। हो सकता है कि विधायक ने इसके लिए सुरक्षा अधिकारी से या संस्थान निदेशक से कोई पत्र व्यवहार भी किया हो। लेकिन यह चीज चर्चा में नहीं आई। चर्चा में आया बत्रा का वह बयान जिसमें उन्होंने आई आई टी प्रशासन को वार्निंग दी कि “अगर संस्थान का परिसर नगरवासियों के लिए न खोला गया तो आई आई टी के लोगों का नगर में प्रवेश बंद कर दिया जाएगा, परिसर के बाहर स्थित बोट क्लब, जो आई आई टी के नियंत्रण में है, उनसे छीन लिया जाएगा।” वीडियो के माध्यम से सामने आए इस ब्यान में बत्रा ने आई आई टी प्रशासन के खिलाफ धरना प्रदर्शन करने की चेतावनी भी दी। खास बात यह रही कि शाम को ब्यान जारी करने के बाद उन्होंने सुबह ही धरना कार्यक्रम जोड़ भी दिया। उनके धरना कार्यक्रम में तमाम लोगों ने शिरकत की और भाषण भी दिए। इसी बीच बताया जाता है कि बोट क्लब का ताला भी जबरन खोल लिया गया और बाद में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट को ज्ञापन भी दिया गया।
इतना कुछ होने के बाद सवाल यह उठता है कि इस आडंबर की जरूरत क्या थी? सिवाय इसके क्या जरूरत हो सकती है कि निकाय चुनाव सामने है। हाल तक प्रदीप बत्रा निकाय चुनाव की राजनीति में कोई रुचि लेते दिखाई नहीं दे रहे थे। शायद इसका कारण यह चर्चा थी कि नगर के मेयर का पद आरक्षित होने जा रहा है। अब चूंकि बत्रा अगड़ा समाज से आते हैं तो मेयर पद में उनकी रुचि तभी हो सकती है जब पद अनारक्षित हो। उनका आज का आडंबर यह बताता है कि उन्हें मेयर पद के अनारक्षित रहने का कहीं से कोई इशारा मिल गया है। इसका प्रमाण यह भी है कि वे एकाएक सामाजिक सेवा के क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं। मसलन, उन्होंने हाल ही में असफनगर में मेडिकल कैंप का आयोजन भी किया था। इससे साफ पता लगता है कि न केवल निकाय चुनाव में इस बार बत्रा की व्यक्तिगत रुचि है बल्कि उन्हें अवसर भी नजर आ रहा है। वैसे अहमियत उस बयान की भी है जो दिया तो समर्पण संस्था के अध्यक्ष नरेश यादव ने है लेकिन जिसपर जवाब देने के लिए पूर्व विधायक सुरेश जैन भी आगे आए हैं। ध्यान रहे पहले नरेश यादव सुरेश जैन के पी ए थे और प्रदीप बत्रा के पी ए हैं। सारी बातों का कुछ मतलब है और मतलब यही लगता है कि मेयर पद आरक्षित होने नहीं जा रहा है।