भाजपाईयों का मुख्य अभियान सत्ता की मलाई खाना, कांग्रेसियों को आरक्षण का इंतजार

एम हसीन

रुड़की। कांग्रेस महासचिव सचिन गुप्ता के सामने नगर की राजनीति में जाहिरा तौर पर मैदान साफ दिखाई दे रहा है। मेयर के पद को लेकर जो लोग अपनी उम्मीदवारी घोषित करते हुए होर्डिंग्स लगा चुके हैं उनके अलावा अभी कोई भी भाजपाई और कांग्रेसी उस प्रकार खुलकर मैदान में नहीं है जिस प्रकार सचिन गुप्ता हैं। उनके अभियान से लगता है कि उन्हें इस बात की कोई फिक्र नहीं है कि मेयर पद पिछड़ी जाति के नाम आरक्षित होता है या नहीं। सचिन गुप्ता चूंकि वैश्य समाज से आते हैं इसलिए यह तो तय है कि पद आरक्षित हो जाने के बाद वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। बहरहाल, हो सकता है कि उनके पास इस समस्या से निपटने का भी कोई ब्लू प्रिंट हो अर्थात उन्होंने तय कर रखा हो कि आरक्षण की स्थिति में वे अपने ग्रुप के किसी पिछड़े प्रतिनिधि को मैदान में उतार देंगे। लेकिन यह भी हो सकता है कि आरक्षण की स्थिति में वे मेयर लड़ाने की जिम्मेदारी पार्टी के ऊपर छोड़कर अपने मौजूदा अभियान को ही 2027 तक जारी रखें, ताकि विधानसभा टिकट पर उनका दावा निर्णायक रहे। हालात का इशारा यही है कि आरक्षण की स्थिति में वे पहल पार्टी के ही पास छोड़ देंगे। यह इसलिए लग रहा है कि वे अपने साथ किसी पिछड़े या दलित चेहरे को बराबरी में लेकर नहीं चल रहे हैं।

सचिन गुप्ता के अलावा थोड़ी बहुत सक्रियता या तो भाजपा में पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष पंडित दिनेश कौशिक की दिखाई दे रही है जिन्हें पार्टी के मौजूदा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का अभयदान प्राप्त बताया जाता है या फिर लोकतांत्रिक जनमोर्चा संयोजक सुभाष सैनी की। उनके विषय में यह महत्वपूर्ण है कि वे टिकट कांग्रेस का मांग रहे हैं लेकिन राजनीति एकल कर रहे हैं। इसके लिए उनके पास अपना लोकतांत्रिक जनमोर्चा है जिसकी ओर से वे 2007 में विधानसभा और 2019 में मेयर चुनाव लड़ चुके हैं। उनके अभियान की खास बात यह है कि उनके मोर्चा के झंडे के नीचे हज कमेटी के पूर्व चेयरमैन हाजी राव शेर मोहम्मद, अल्पसंख्यक कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हाजी सलीम खान और जिला सहकारी बैंक के पूर्व उपाध्यक्ष राव अफजल के अलावा पूर्व पार्षद संजय चौधरी उर्फ गुड्डू जैसे लोग भी दिखाई दे रहे हैं। यह हरीश रावत के नेतृत्व के लिए चुनौती है या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करण माहरा के लिए चुनौती है या महानगर कांग्रेस अध्यक्ष राजेंद्र चौधरी के नेतृत्व के लिए चुनौती है या सचिन गुप्ता की दावेदारी के लिए चुनौती है या यशपाल राणा की दावेदारी के लिए चुनौती है या फिर समूची कांग्रेस की नीतियों के लिए ही चुनौती है यह देखने वाली बात है। वैसे महानगर कांग्रेस अध्यक्ष चूंकि खुद भी टिकट पर अपना दावा बता रहे हैं और वे धरना प्रदर्शन के माध्यम से नगर निगम की राजनीति भी कर रहे हैं इसलिए उनका आशीर्वाद न तो सुभाष सैनी के साथ ही दिख रहा है और न ही सचिन गुप्ता के साथ।

बहरहाल, कारण चाहे कुछ भी हो लेकिन सचिन गुप्ता के अलावा कांग्रेस तो क्या भाजपा में भी किसी की चुनावी सक्रियता दिखाई नहीं दे रही है। भाजपाईयों का तो यूं है कि चूंकि उनकी पार्टी सत्ता में है तो उनके पास करने के लिए अभी और भी बहुत काम हैं। सबसे बड़ा काम तो यही है कि वे जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके, सत्ता की मलाई चाट लें। यही वे कर रहे हैं। पार्टी विधायक प्रदीप बत्रा अपने व्यक्तिगत आर्थिक साम्राज्य विस्तार में लगे हुए हैं और इसी क्रम में पार्टी के अन्य लोग भी जुटे हुए हैं। उनसे अपेक्षित भी यही है। सत्ता की राजनीति अधिकांश लोग कर ही इसीलिए रहे हैं।

ऐसे में मसला भाजपा का नहीं बल्कि कांग्रेस का है। पार्टी में कहने के लिए टिकट के तमाम अगड़े पिछड़े चेहरे हैं लेकिन सक्रिय उनमें कोई नहीं है। अगर पार्टी के सामान्य कार्यकर्ता से भी बात की जाए तो भी वह वैकल्पिक रूप से सचिन गुप्ता के अलावा वह दूसरा नाम पूर्व मेयर यशपाल राणा का ही ले पाता है। लेकिन समस्या यह है कि यशपाल राणा भी अपने घर खामोश बैठे हुए हैं। अर्थात सक्रिय दावेदारी उनकी भी नहीं है। यही कारण है कि नगर में सचिन गुप्ता की एकल दावेदारी दिखाई दे रही है, कांग्रेस के मेयर टिकट के लिए भी और विधानसभा टिकट के लिए भी।