जायरीन ने चादरें चढ़ाई, लंगर बांटा, दिक्कतें उठाई, सूफियों ने महफिलें सजाई, वक्फ बोर्ड अध्यक्ष ने लोगों तक पी एम-सी एम की उपलब्धियां पहुंचाई
एम हसीन
पीरान कलियर। मखदूम साबिर कलियरी का 756वाँ आज गुस्ल की रस्म के साथ संपन्न हो गया। जायरीन ने वापसी का सफर शुरू कर दिया है। अगर कुछ देर जायरीन के ठहरने की गुंजाइश बनती भी तो मौसम ने कसर पूरी कर दी है। सुबह प्रारंभ हुई बूंदा बांदी यह समाचार लिखे जाने तक जारी है। इसी बूंदा बांदी के बीच जायरीन ने गुस्ल की रस्म में भाग लिया। लेकिन इसके चलते रास्तों पर पैदा हुए कीचड़ ने उनके कुछ देर ठहरे रहने की संभावनाओं को खत्म कर दिया है, क्योंकि बड़े पैमाने पर जायरीन खुले आसमान के नीचे ही यहां ठहरते हैं। इस सबके बीच यह सवाल अपने स्थान पर कायम है कि 756वें उर्स का क्या हासिल हुआ?
साबरी उर्स रबीउल अव्वल महीने का चांद नजर आते ही मेंहदी डोरी की रस्म के साथ शुरू हो जाता है। इस बीच कुछ जायरीन बरेली से झंडा लेकर पैदल यहां आते हैं। यह भी एक रस्म ही है। इस सबके बीच उर्स का चरम होता है रबी उल अव्वल महीने की 10 से 14 तारीख के बीच। इस बार ये तिथियां 15, 16, 17 व 18 सितंबर को रही। 15 को छोटी रौशनी, 16 को बड़ी रौशनी और इदमिलादुन्नबी, 17 को कुल और 18 को गुस्ल की रस्म हुई। इन्हीं चार तिथियों पर यहां मुख्य रूप से जायरीन आए। बड़े सूफी संत भी इन्हीं तिथियों पर आए। लेकिन मजारों और छोटी दरगाहों के गद्दीनशीन, फकीर फुकरा, दरवेश यहां कुछ दिन पहले ही आ गए थे। यही कारण है कि सरगर्मी यहां 10 सितंबर के आस पास ही शुरू हो गई थी और प्रशासनिक कार्यवाहियां भी पिछले महीने से ही चल रही थी। प्रशासनिक अमले का सफाई व सुरक्षा अभियान यहां अभी भी जारी है। सुरक्षाकर्मी भी अभी ड्यूटी दे रहे हैं। लेकिन जायरीन ने लौटना शुरू कर दिया है। इस सबके बीच यह सवाल अपने स्थान पर कायम है कि 756वें उर्स का हासिल क्या हुआ? ऐसा क्या हुआ जिसके चलते इस उर्स को याद किया जाएगा? ऐसा क्या हुआ जिसके चलते इस उर्स का अवाम को, समाज को, व्यवस्था को कुछ लाभ होगा?
जहां तक सवाल दरगाहों का है तो यह हमेशा भारतीय उप महाद्वीप की ही बपौती रही है; भारतीय उप महाद्वीप में भी वहां जहां सूफी धारा मजबूत रह चुकी है। भारत में सूफी परंपरा के शीर्ष पुरुष ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती हैं और इसी कड़ी में साबिर कलियरी भी बहुत ऊपर आते हैं। इन शीर्ष सूफियों और इनके उत्तराधिकारियों का संदेश हर हमेशा प्रकार की बुराई के खिलाफ रहा है, हर प्रकार के बाद विवाद के खिलाफ रहा है और हर प्रकार के जुल्म, नाइंसाफी, बेईमानी के खिलाफ रहा है। यहां से सदैव प्रेम का संदेश प्रवाहित हुआ है और यही यहां से अपेक्षित है। लेकिन बदले दौर ने सब कुछ बदल कर रख दिया है। आज की स्थिति यह है कि न तो कोई संदेश कोई सूफी एकल स्तर पर जारी करता है और न ही सामूहिक स्तर पर। मसलन, जारी उर्स में देश की लगभग सभी उल्लेखनीय दरगाहों से जुड़े सूफी कलियर विराजे, उनकी एकल स्तर पर भी और सामूहिक स्तर पर महफिलें भी खूब सजी लेकिन कहा किसी ने कुछ नहीं, संदेश किसी ने कुछ नहीं दिया।
यह कमाल की बात है कि मीडिया का गढ़ बन चुके कलियर शरीफ में किसी मीडियाकर्मी ने भी किसी सूफी से जाकर देश और समाज के सामने मौजूद ज्वलंत समस्याओं के विषय में कोई सवाल नहीं किया। नित बढ़ते जा रहे धार्मिक, सामुदायिक, जातीय और वर्गीय वैमनस्य पर कोई चर्चा नहीं हुई, बिखरते जा रहे सामाजिक ताने बाने पर, बढ़ती नशाखोरी पर, बढ़ती हिंसा पर, बढ़ती असहिष्णुता पर कहीं कोई सवाल नहीं हुआ, कहीं कोई चर्चा नहीं हुई। यह भी उल्लेखनीय रहा कि दरगाहों से लेकर मुस्लिम संपत्तियों के रख रखाव के लिए जिम्मेदार संस्था वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स मुख्य दिनों में यहां कैंप किए हुए दिखाई दिए; उन्होंने “एक शाम सूफियों के नाम” का आयोजन भी किया लेकिन संदेश वहां से भी कोई जारी नहीं हुआ। कुल मिलाकर यह भी एक औसत उर्स के रूप में संपन्न हुआ, जैसे कि दशकों से होता आ रहा है।