शालीन व्यक्तित्व में गरिमा, गंभीरता, विद्वता, सक्रियता व नवाचार का अद्भुत संगम

एम हसीन, देहरादून। हाल फिलहाल देश में कई राज्यों के राजभवनों को लेकर आने वाली खबरों के संदर्भ में अगर देखें तो उत्तराखंड राज भवन को निश्चित रूप से आदर्श मानना पड़ेगा। राज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है इसलिए उससे संविधान पालना के साथ साथ इस बात की भी अपेक्षा की जाती है कि वह केंद्र की प्राथमिकताओं को मद्देनजर रखे। प्रशंसा करना होगी कि राज्यपाल के रूप में ले.जन. गुरमीत सिंह (से.नि.) का तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा होने तक उत्तराखंड राजभवन एक ऐसा केंद्र बन गया है जहां की मुख्य विशेषता संविधान की खामोश पालना मुख्य तत्व नहीं है बल्कि राजभवन की गैर विवादित सक्रियता महावपूर्ण तत्व है। जानना दिलचस्प होगा कि राजभवन ने नए आपराधिक कानूनों, नई शिक्षा नीति, डिजिटलाइजेशन आदि सहित केंद्र की प्राथमिकताओं की भी पैरवी जितने प्रभावशाली ढंग से की है उतनी ही सक्रियता समकालीन आवश्यकताओं, हकीकतों, नवाचारों को लेकर भी दिखाई है।

दरअसल, उत्तराखंड राज भवन पिछले तीन वर्षों में सक्रियता की एक ऐसी लंबी यात्रा पूरी कर चुका है, जो आमतौर पर राजभवन की परंपरा नहीं होती। यदि मामले राजनीतिक न हों तो राजभवन आमतौर पर फोकस में आते ही नहीं। यह उत्तराखंड के राज्यपाल ले.जन. गुरमीत सिंह के व्यक्तित्व का ही प्रताप है कि मामला राजनीतिक भी नहीं है, कहीं कुछ नकारात्मकता भी नहीं है और राजभवन की सक्रियता भी बरकरार है। कारण, लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था से संबंधित राज्य, जनता, राष्ट्र से संबंधित तमाम सम सामयिक आवश्यकताओं पर नित कोई न कोई आयोजन राजभवन में होता ही रहता है, पर चूंकि पूरी शालीनता व पूरी गरिमा के साथ होता है तो उसकी तस्वीर भी अलग ही होती है।

24 वर्षीय उत्तराखण्ड का यह सौभाग्य है कि यहां राजभवन कभी भी किसी भी स्तर पर मामूली से विवाद का भी केन्द्र नहीं बना। हालांकि पिछले 24 वर्षों में यहां राजनीतिक पृष्ठभूमि के राज्यपाल भी आए और प्रशासनिक पृष्ठभूमि के भी। लेकिन सैन्य पृष्ठभूमि के राज्यपाल, जहां तक मुझे याद पड़ता है, केवल मौजूदा राज्यपाल महामहिम ले.जन. गुरमीत सिंह ही आए हैं और क्या बड़ी बात है कि उनकी उपस्थिति राजभवन में न केवल अपने समकालीन अन्य राज भवनों से बिल्कुल अलग दिखती है बल्कि उत्तराखंड राजभवन के ही सभी पूर्व महामहिम से अलग दिखती है।

उदाहरण के रूप में राज्यपाल ले.जन. गुरमीत सिंह जब विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्तियों की फाइल पर हस्ताक्षर करते हैं तो महज अपने कुलाधिपति का ही दायित्व पूर्ण नहीं करते, बल्कि वे कुलपतियों के साथ बैठकें भी करते हैं, शैक्षिक व्यवस्था को जानने का प्रयास भी करते हैं, शैक्षिक व्यवस्था में अपने आपको शामिल करने का प्रयास भी करते हैं और शैक्षिक व्यवस्था से संबंधित कोई सुझाव अगर उनके पास हो तो उसे बड़ी गरिमा और शालीनता के अनुरूप व्यवस्था तक पहुंचाने का प्रयास भी करते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी सक्रियता प्रारंभ में जहां एक जिज्ञासु की सी प्रतीत होती है वहीं कार्यक्रम का समापन होने तक वह दिशा निर्देशक तत्व की सी भी बनी दिखाई देती है। कमाल यह है कि वे जब दिशा निर्देशक के रूप में नजर आते हैं तो भी रिजिड नजर नहीं आते। यह प्रताप चाहे उनके पद का हो या उनके व्यक्तित्व का या फिर उनके सब कुछ समझकर खुद को एक्सप्रेस करने का; अंत उन्हें एक अलग बेहद गरिमापूर्ण स्थान पर स्थापित कर देता है। अपने कार्यकाल का तीसरा वर्ष पूरा कर चुके राज्यपाल ले.जन. गुरमीत सिंह सैन्य पृष्ठभूमि से आए हैं और सेना के भी बेहद ऊंचे पद के बाद उन्होंने मौजूदा पद संभाला है। उनके पिछले पद भी बेहद गरिमापूर्ण थे और मौजूदा पद भी बेहद गरिमापूर्ण है। इस गरिमा से उनका भलीभांति परिचित होना तो स्वाभाविक है, लेकिन बेहद सक्रिय रहते हुए भी बड़ी शालीनता के साथ उनका इस गरिमा को कायम रखना निश्चित रूप से बड़ी बात है।

उत्तराखण्ड के विषय में कुछ चीजें बड़ी महत्वपूर्ण हैं। जैसे यह चारधाम है और यहां सैकड़ों की संख्या में मन्दिर, आश्रम और मठ हैं। जैसे यह प्रदेश उद्योग, तकनीक, विज्ञान, शोध आदि का भी गढ़ है। यहां भारी उद्योग भी हैं केन्द्र तथा राज्य सरकार के शोध, अनुसंधान, शिक्षा आदि संस्थान भी यहां मौजूद हैं। हैरत नहीं कि राज्यपाल ने समय समय पर बार बार इन सभी प्रकार के संस्थानों और मठों आदि का दौरा किया है, आवश्यकता के अनुरूप व्यवस्था को निर्देश दिए हैं और हर स्तर पर अपने पद की गरिमा व अपनी शालीनता को भी बरकरार रखा है। वे कृषि उत्पादन और तत्संबंधी बदलावों के भी व्यक्तिगत रूप से गवाह बने हैं, पशु प्रजनन केन्द्रों पर भी उन्होंने विजिट किया है, वे प्रदेश के आपदा प्रभावित क्षेत्रों में भी गए हैं, उन्होंने आध्यात्मिक व धार्मिक कार्यक्रमों में भी भाग लिया है, वे धार्मिक-आध्यात्मिक, राजनीतिक, प्रशासनिक व्यक्तित्वों के मेजबान भी बने हैं और मेहमान भी, कला संस्कृति, शिक्षा, साहित्य, नवाचार से जुड़े लोगों के अलावा उन्होंने छात्रों के साथ भी समय बिताया है और सैन्य या अर्द्धसैन्य अधिकारियों को भी राजभवन में रिसीव किया है। लेकिन वो बुनियादी चीजें हर स्तर पर कायम रखी हैं जिनसे राजभवन की गरिमा को एक अलग स्थान मिलता है।

उनके विषय में एक बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि कहने को वे सेवानिवृत्त अधिकारी हैं लेकिन उनके दौर में राजभवन जिस एक आधुनिकतम आधुनिकता का सबसे अधिक वाहक बना है वह है आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई)। यह सबसे आधुनिक तकनीक है और इस पर पिछले तीन सालों में राजभवन में जितने कार्यक्रम हो चुके हैं वे राज्यपाल की भविष्य की वस्तुओं के प्रति व्यक्तिगत सुरूचिपूर्ण जिज्ञासा को भी प्रदर्शित करते हैं। बेशक ले.जन.गुरमीत सिंह का उत्तराखण्ड के राजभवन में स्थापित होना राज्य के लिए एक गौरवपूर्ण उपलब्धि है। वे राजभवन की गरिमा को नए आयाम दे रहे हैं, नई परंपराएं स्थापित कर रहे हैं, नए उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं, राजभवन में शालीनता और गरिमा के साथ सक्रियता का नवाचार भी स्थापित कर रहे हैं।