नगर प्रमुख पद के आरक्षित होने की चल रही चर्चा

एम हसीन

रुड़की। हरिद्वार जिले का डेमोग्राफ कुछ ऐसा है कि उत्तराखंड स्थापना के बाद यहां मुस्लिम बनाम गुर्जर होती रही है। मुकाबला चाहे किन्हीं दलों के भी बीच हो लेकिन होता इन्हीं दोनों वर्गों के बीच है। ऐसे में भाजपा की यह मजबूरी है कि उसे राजनीति के बहुसंख्यकवाद का भ्रम बनाकर रखने के लिए सबसे ज्यादा संभावित विकल्प पर गौर करना पड़ता है। वह सबसे ज्यादा संभावित विकल्प होता है गुर्जर बिरादरी। इस मामले में पार्टी की सोच कितनी स्पष्ट है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि जिला सहकारी बैंक की राजनीति में रियासत अली को अध्यक्ष पद पर नल एंड वाइड करने के लिए तत्कालीन खंडूरी सरकार को शासनादेश जारी कर न केवल पद की अवधि को 5 साल से घटाकर 2 साल तक सीमित करना पड़ा था बल्कि बाद में हुए चुनाव में गुर्जर रविन्द्र पनियाला को ही अध्यक्ष निर्वाचित कराना पड़ा था। अब इस पद की अवधि फिर 5 साल हो गई है। बहरहाल, अब जरा यह भी सोचिए कि रियासत अली ने किसे हराकर पद जीता था? उन्होंने गुर्जर बिरादरी की शिक्षा देवी को ही हराकर यह पद जीता था। इसी प्रकार जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में अंजुम बेगम ने गुर्जर बिरादरी की कुसुम चौधरी को ही हराया था और फिर गुर्जर बिरादरी की सविता चौधरी के सामने ही उन्होंने चुनाव गंवाया था; हालांकि तब प्रत्याशी उनके जेठ सत्तार अली बने थे।

दरअसल, हरिद्वार जिले में राजपूतों को अगर छोड़ दें तो किसी और अगड़ा बिरादरी की रुचि जिला स्तरीय संस्थाओं की राजनीति में नहीं है; जबकि अन्य पिछड़े वर्ग की गैर गुर्जर बिरादरियां, खासतौर पर सैनी, प्रजापति, पाल, कश्यप, धीमान, आदि अपने आप को इतना सक्षम नहीं पाती कि यूं प्रभावशाली गुर्जर या मुस्लिम परिवारों से आने वाले प्रत्याशियों को मात देने के लिए संघर्ष कर सकें। बहुसंख्यक वर्ग में गुर्जर बिरादरी अपनी इस ताकत को समझती है। यही कारण है कि उसका दावा फिलहाल भाजपा, चूंकि अभी भाजपा सत्ता में है और आगे कम से कम ढाई साल रहने वाली है, की समूची जिला स्तरीय राजनीति पर, लोकसभा से लेकर एकाधिक विधानसभा टिकटों पर, जिला पंचायत और जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष पदों पर, सहकारिता की अन्य संस्थाओं पर, नगर पालिका व नगर पंचायत पदों पर, यहां तक कि रुड़की के मेयर टिकट पर भी है। यह आज का एक सच है। कल अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो कोई बड़ी बात नहीं अधिकांश गुर्जर चेहरे उधर खिसक जायेंगे और इस सिलसिले को जारी रखेंगे। दूसरा सच यह है कि अलमोडा – पिथौरागढ़ को नगर निगम का दर्जा दे देने के सरकार के हाल के फैसले के बाद हालांकि इस बात की संभावना बहुत कम रह गई है; फिर भी जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार रुड़की मेयर पद पिछड़ा वर्ग, खास तौर पर पिछड़ा महिला, के नाम आरक्षित होने जा रहा है। तो सवाल उठता है कि रूलिंग पार्टी अपनी समर्थक कौन सी पिछड़ा बिरादरी को प्रतिनिधित्व देने जा रही है और कौन सी बिरादरी का मेयर बनने जा रहा है?

भाजपा की स्थिति यह है कि नगर में वास करने वाली पिछड़ा बिरादरियों में सैनी से उसके पास राज्यसभा सदस्य भी है और प्रजापति बिरादरी से आने वाले जिलाध्यक्ष भी हैं। कश्यप बिरादरी से आने वाले गैर पार्षद चेहरे भी हैं और पार्षद भी हैं। पार्टी के पास गुर्जर बिरादरी से आने वाले आधा दर्जन महिला पुरुष पार्षद तो हैं ही, बेहद प्रभावशाली गैर पार्षद गुर्जर चेहरों की भी कतार है। पार्टी के पास धीमान और पाल के अलावा रोढ बिरादरी से आने वाले चेहरों की भी कमी नहीं है। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि पार्टी में कम से कम तीन गुर्जर, कम से कम दो सैनी, एक कश्यप, एक प्रजापति, एक रोढ बिरादरी के चेहरे टिकट के दावेदार हैं। इस मामले में उल्लेखनीय तत्व यह भी है कि पार्टी सैनी और गुर्जर बिरादरियों को विधानसभा में भी प्रतिनिधित्व देती आई है। 2022 के विधानसभा चुनाव में मुनीश सैनी को कलियर सीट पर टिकट दिया गया था। साथ ही विधासभा टिकट की दावेदार रहीं डॉक्टर कल्पना सैनी को बाद में राज्यसभा सदस्य निर्वाचित कराया गया था और श्यामवीर सिंह सैनी को दर्जाधारी बनाया गया था। इस क्रम में गुर्जर बिरादरी की रानी देवयानी को खानपुर सीट पर और इसी बिरादरी के दिनेश पंवार को मंगलौर सीट पर टिकट दिया गया था। बाद में जिला पंचायत चुनाव में किरण चौधरी को अध्यक्ष निर्वाचित कराया गया था। प्रदीप चौधरी पहले से जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष चले आ रहे थे। इसी बिरादरी के सुशील चौधरी जब सहकारी बैंक अध्यक्ष थे तब प्रदीप चौधरी दुग्ध सहकारी विकास संघ के अध्यक्ष थे। हाल ही में मंगलौर विधानसभा सीट पर करतार सिंह भड़ाना के रूप में गुर्जर को ही प्रत्याशी बनाया गया था। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि कल अगर रुड़की मेयर पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होता है तो भाजपा का टिकट चाहे किसी भी बिरादरी को मिले, अगला मेयर कोई गुर्जर ही होने की संभावना रहेगी। जीतने के लिए किसी अन्य बिरादरी का दलीय प्रत्याशी भी उतना दमखम नहीं दिखा पाता जितना गुर्जर निर्दलीय रूप में भी दिखा देता है। और फिर यह भी तो सच है कि रुड़की में निर्दलीय मेयर निर्वाचित होने की परंपरा है।