जिस प्रेस कॉन्फ्रेंस को विनय रोहेला ने किया संबोधित उसमें क्यों नहीं आए प्रदीप बत्रा
एम हसीन
रुड़की। मकदूनिया में अपनी राजसत्ता को मजबूत करने के बाद विश्वविजय पर निकलने का सपना संजोने वाले “मुकद्दर के सिकंदर” का मुकद्दर लगता है कि अब दगाबाजी पर उतर आया है। रुड़की में तीसरी बार विधायक निर्वाचित होकर कैबिनेट का हिस्सा बनने का सपना सजाने वाले प्रदीप बत्रा के लिए लगता है कि अब मकदूनिया, यानि अपने गृह क्षेत्र रुड़की, को ही बचाने का संकट खड़ा हो गया है। आज प्रदीप बत्रा के ही संस्थान “प्रकाश होटल” में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस से तो यही इशारा मिलता है।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के 8 जून को मंगलौर में होने वाले कार्यक्रम के परिप्रेक्ष्य में आज भाजपा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। प्रेस को मुख्य रूप से सरकार के दर्जाधारी विनय रोहेला ने एड्रेस किया। उनके साथ पूर्व कैबिनेट मंत्री यतीश्वरानंद भी थे। भाजपा प्रवक्ता पंकज नंदा ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के विषय में जो जानकारी प्रेस को दी थी उसके हिसाब से इसमें कई बदलाव दर्ज किए गए। पहला यह कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा मौजूद नहीं थे, जबकि पंकज नंदा ने सूचना दी थी कि प्रेस को यतीश्वरानंद के साथ बत्रा भी संबोधित करेंगे। दूसरा बदलाव यह दिखाई दिया कि प्रेस को मुख्य रूप से एड्रेस करने के लिए दर्जधारी विनय रोहेला आए, जबकि उनके विषय में पंकज नंदा ने कोई सूचना नहीं दी थी। तीसरा और सबसे बड़ा बदलाव यह दिखाई दिया कि प्रेस में मेयर पति ललित मोहन अग्रवाल और पार्टी का युवा चेहरा चेरब जैन को खासतौर पर बुलाया गया।
इतने बदलाव के साथ वह प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के विषय में जानकारी प्रेस को दी जानी थी। जाहिर है कि उपरोक्त हर बदलाव के अपने निहितार्थ हैं। फिलहाल मेरा फोकस जिस निहितार्थ पर है वह यह कि शायद अब मुख्यमंत्री के कैंप में नगर विधायक प्रदीप बत्रा के लिए कोई जगह नहीं बची है। समझा जा सकता है कि अब यह प्रतिस्पर्धा मुख्य रूप से ललित मोहन अग्रवाल तथा चेरब जैन के बीच जारी है। इन दोनों के लिए मसला विधानसभा टिकट का है और इनमें से किसी को भी स्वाभाविक रूप से टिकट तब मिलेगा जब प्रदीप बत्रा को न मिले। क्या ऐसा होगा? देखना दिलचस्प होगा। वैसे अगर प्रदीप बत्रा को ललित मोहन अग्रवाल या चेरब जैन से मात मिलती है तो हथियार वही होगा जो खुद बत्रा ने विकसित किया था और ताज्जुब की बात नहीं कि आदमी की सबसे बड़ी ताकत ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी होती है यानी बत्रा की सबसे बड़ी ताकत ही उनकी कमजोरी बनने जा रही है।
जैसा कि सब जानते हैं कि प्रदीप रुड़की में अपने राजनीतिक वैभव का 18वाँ साल जी रहे हैं। उन्होंने नगर में “राजनीति” को शून्य करके “अर्थ” को स्थापित किया था। इसके चलते राजनीति में आम आदमी का दखल खत्म हो गया था और धनपति राजनीति में स्थापित हो गए थे। अरसे तक तमाम धनपतियों ने बत्रा को आगे करके अपने साम्राज्य स्थापित किए या उन्हें विस्तार दिए। अब लग यह रहा है कि नगर का यही धनपति वर्ग नगर में बदलाव चाहता है। बदलाव मतलब बत्रा के वैभव का अंत। अगर ऐसा होता है तो यह कोई ताज्जुब की बात नहीं होगी। दरअसल, बत्रा के तौर-तरीकों में कुछ कमियां हमेशा दर्ज की जाती रही हैं। मसलन, वे मकदूनिया से निकलना नहीं चाहते और दुनिया फतह करना चाहते हैं। बहरहाल, आने वाले कुछ महीने प्रदीप बत्रा के राजनीतिक भविष्य को गहरे प्रभावित करने वाले हो सकते हैं। लगता है उनके ऊपर शनि की वक्र दृष्टि है।