जब निर्दलीय खानपुर विधायक उमेश कुमार अपने क्षेत्र के लिए सिडकुल ले आए तो आखिर प्रदीप बत्रा क्यों नहीं ला पाए अपने क्षेत्र के लिए कोई योजना?
एम हसीन
रुड़की। जब खानपुर विधायक के रूप में उमेश कुमार अपने विधानसभा क्षेत्र में सिडकुल मंजूर करा रहे थे, तब रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा अपने विधासभा क्षेत्र में जर्जर हुए एक पुल को रिप्लेस कराने का प्रस्ताव तक मंजूर नहीं करवा पा रहे थे। सर्वविदित है कि उमेश कुमार निर्दलीय विधायक हैं जबकि प्रदीप बत्रा सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक हैं। कहानी तब और अधिक विचलित करने वाली बन जाती है जब प्रदीप बत्रा इसी सोलानी पुल के लिए लोक निर्माण विभाग से प्रस्ताव बनवाकर सचिवालय भिजवा रहे थे और खुद विधानसभा में बार-बार सवाल उठा रहे थे। इसके बावजूद राज्य सरकार ने पुल का प्रस्ताव केवल इतने मात्र के लिए स्वीकार किया कि उसे वित्त की प्रत्याशा में केंद्र को भिजवा दिया। केंद्र से बजट मंजूर भी हो गया, लेकिन फिलहाल तक कि जानकारी के मुताबिक पुल का टेंडर फिर भी जारी नहीं हो पा रहा है। सवाल यह है कि उमेश कुमार क्यों अपने क्षेत्र के लिए बड़ी परियोजना लाने में कामयाब रहे और प्रदीप बत्रा क्यों एक पुल भी मंजूर नहीं करवा पा रहे हैं?
जहां तक सवाल उमेश कुमार का है, वे क्षेत्र के हितों के प्रति शुरू से ही सतर्क रहे हैं। इसके विपरीत स्थिति प्रदीप बत्रा की रही है। प्रदीप बत्रा का व्यक्तिगत हितों का एजेंडा रहा है जो हर दौर में साफ-साफ दिखाई देता रहा है। मसलन, उन्होंने 2008 में नगर पालिका का पहला चुनाव ही अपने शॉपिंग मॉल के बराबर में पुलिस चौकी की जमीन कब्जाने के लिए लड़ा और जीता था। नगर पालिका अध्यक्ष बनने के बाद भी जब वे चौकी नहीं कब्जा पाए थे तो उन्होंने 2012 का विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीता था। हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था, फिर भी आखिरकार वे चौकी पर कब्जा कर के वहां अपना निजी कॉम्प्लेक्स बनाने में कामयाब रहे थे। इस बीच नगर पालिका अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने नगर पालिका की भूमि पर बनाई गई दुकानों को बेचकर अपनी जेबें भरी थी। यह मामला हाई कोर्ट तक गया था और शायद आज भी जारी है। 2022 के चुनाव से पहले उन्होंने नीलम सिनेमा परिसर में बिना प्राधिकरण की मर्जी के कॉम्प्लेक्स बनाना शुरू किया था जो कि सील किया गया था। लेकिन चुनाव के बाद उन्होंने न केवल अपना कॉम्प्लेक्स बना लिया था बल्कि चंद्रा”ज के शॉपिंग मॉल के निर्माण के लिए भी गुंजाइश बना दी थी, जो कि फिलहाल जारी है। फिर उन्होंने मालवीय चौक पर अपना नया शोरूम बनाने का लिए हाई पावर इलेक्ट्रिक लाइंस को अपने तरीके से हटवाया था। उन्होंने सहारा इंडिया की जमीनों को वैध-अवैध तरीके से खरीदा था।
दरअसल, बत्रा इस प्रकार के काम करने के इतना माहिर रहे हैं कि वे न तो कुछ बड़ा सोच पाते हैं और न अपने अलावा किसी और के विषय में सोच पाते हैं, अलबत्ता कुछ लोग हैं जो उनके हर स्याह-सफेद में उनके साथ रहते आए हैं। यही शायद प्रदीप बत्रा की दुनिया है। ऐसी ही मिसाल होटल पोलारिस मामले की दी जा सकती है। बताया जा रहा है कि वे होटल पोलारिस का टेक ओवर करना चाहते थे और इसमें अपने पद और बड़े नेताओं के साथ अपने सम्बन्धों का लाभ उठाना चाहते थे। चूंकि इस डील को मेयर पति ललित मोहन अग्रवाल करने में कामयाब रहे तो यही इन दोनों के बीच ऐसे विवाद का कारण बना कि बत्रा के मुख्यमंत्री के साथ लंबे समय से चले आ रहे कथित दोस्ताना संबंधों की भी कलई खुल गई। इसी प्रकार रोडवेज बस स्टैंड को शहर से बाहर शिफ्ट कराने का उनका उतावलापन भी उनके संबंध न पार्टी के साथ ठीक रहने दे रहा है, न सरकार के साथ, न मुख्यमंत्री के साथ और न ही नगर के प्रबुद्धजनों के साथ। अपनी ऐसी ही योजनाओं के क्रियान्वयन में जुटे रहने के कारण वे न नगर के विषय सोच पा रहे हैं और न ही नगरवासियों के विषय में। फिर नगर का विकास कैसे होता?