2027 में क्या होगा भाजपा में प्रदीप बत्रा का भविष्य?
एम हसीन
रुड़की। यह कोई ताजुब की बात नहीं है कि पिछले निकाय चुनाव में 33 हजार वोट लेकर जीत दर्ज करने वाली भाजपा की मेयर प्रत्याशी अनीता देवी अग्रवाल रुड़की विधानसभा क्षेत्र में करीब ढाई हजार वोटों से पराजित होकर निकली थीं। उन्हें बढ़त मिली थी खानपुर और झबरेड़ा विधानसभा क्षेत्रों में, जहां उन्होंने पहले निर्दलीय प्रत्याशी श्रेष्ठा राणा से द्वारा अपने ऊपर बनाई गई ढाई हजार वोटों की बढ़त को कम किया था और फिर करीब तीन हजार वोटों की अंतिम बढ़त बनाई थी। इतिहास इस बात का गवाह है कि रुड़की मेयर पद के लिए जब प्रतिस्पर्धा हो रही थी तब नगर भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा अपने स्तर पर भाजपा प्रत्याशी अनीता ललित अग्रवाल का “इलाज” कर रहे थे और भाजपा अपने ही विधायक प्रदीप बत्रा का “इलाज” कर रही थी। इस तथ्य की तब इतनी अहमियत नहीं थी जितनी अब है। आज जबकि विधानसभा अपने कार्यकाल के चौथे वर्ष के समापन की ओर बढ़ रही है और प्रदीप बत्रा चुनावी मोड़ में आ चुके हैं तो सवाल यह उठता है कि बतौर टिकट के दावेदार प्रदीप बत्रा भाजपा में कहां खड़े हैं? क्या उनकी दावेदारी उतनी ही मजबूत है जितनी एक सीटिंग एम एल ए की होती है या फिर स्थिति में कुछ बदलाव है?
प्रदीप बत्रा ने 2022 के चुनाव में बतौर विधायक हैट्रिक लगाई थी। वे भाजपा के टिकट पर लगातार दूसरी बार चुनाव जीते थे। इससे पहले 2012 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर जीतकर वे 2015 में भाजपा में शामिल हो गए थे। यूं उनपर दल-बदल कानून लागू हुआ था और उनका पहले कार्यकाल 5 साल की बजाय 4 साल में सिमट गया था। 2017 का चुनाव वे नरेंद्र मोदी की उस आंधी में जीत गए थे जिसमें हरिद्वार जिले की 11 में से 8 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। लेकिन 2022 में उनका प्रदर्शन बेहद निराशजनक रहा था। वे महज 26 सौ वोटों के अंतर से जीते थे और उनकी जीत में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के व्यक्तिगत प्रयासों की निर्णायक भूमिका थी। जब बत्रा के गढ़ रामनगर में दुकान घोटाले की गूंज हो रही थी तब धामी ने खुद रामनगर आकर दुकानदारों को समझाया और व्यक्तिगत आश्वासन दिया था।
इसी प्रकार सिविल लाइन में नजूल मामला सिर चढ़कर बोल रहा था। इसे भी मुख्यमंत्री और उनकी टीम ने अपने प्रयास से दबाया था। इतने प्रयासों के बाद कहीं प्रदीप बत्रा मामूली अंतर से जीत पाए थे।यह वह हकीकत है जिसने मौजूदा भाजपा सरकार के दौरान प्रदीप बत्रा को महज इतनी ही छूट दी कि वे व्यक्तिगत काम कर सकें। जब प्रदीप बत्रा उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया जाएगा तब उनकी विधानसभा के भीतर बार-बार की मांग की बावजूद एक पुल तक राज्य ने स्वीकृत नहीं किया।उनके वैध-अवैध निर्माण कार्यों पर अलबत्ता किसी ने रोक नहीं लगाई। लेकिन बत्रा के लिए हालात इतने ही बुरे नहीं हैं। बात और भी है।
बात यह है कि 2015-16 के दल-बदल को लेकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने जो एफ आई आर 2019 में दर्ज की थी उस पर उसने कार्यवाही शुरू कर दी है। हाल ही में सी बी आई ने इस मामले से जुड़े सभी लोगों को समन किया और उनके बयान दर्ज किए। ध्यान रहे कि उस समय न केवल 9 विधायकों का कांग्रेस से भाजपा में गमन हुआ था बल्कि विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत का एक स्टिंग भी हुआ था जो मौजूदा खानपुर विधायक उमेश कुमार ने उस समय किया था जब वे एक न्यूज चैनल के एंकर थे। तब इस मामले का एक विधायक के रूप में एक पक्ष रहे प्रणव सिंह चैंपियन ने “परम नागरिक” के साथ बातचीत में स्वीकार किया कि सी बी आई ने उपरोक्त दल-बदल को लेकर सभी तत्कालीन पक्षकारों का बयान दर्ज किया था और इन्हीं बयानों के आधार पर 2019 में सी बी आई में एफ आई आर दर्ज कर ली गई थी। चैंपियन ने यह भी बताया कि इसी एफ आई आर की बुनियाद पर हाल ही में सी बी आई ने सभी पक्षकारों को समन करके बुलाया था और उनके बयान दर्ज किए थे। उन्होंने कहा कि वे सी बी आई दफ्तर बयान दर्ज कराने के लिए गए थे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि प्रदीप बत्रा भी अपना बयान दर्ज कराकर आ चुके हैं। हालांकि प्रदीप बत्रा ने अभी तक इस प्रकरण पर एक शब्द भी नहीं बोला है। उनसे किसी ने पूछा भी नहीं है। केवल “परम नागरिक” ने पूछने का प्रयास किया था। लेकिन उन्होंने खुद फोन उठाया नहीं और उनके निजी सहायकों ने या तो फोन नहीं उठाया या मामले से अनभिज्ञता जाहिर कर दी। बहरहाल, राजनीतिक पर्यवेक्षक इस सी बी आई वाले एंगल को खासा महत्व दे रहे हैं। माना जा रहा है कि चूंकि भाजपा की भीतरी राजनीति बेहद क्रूशियल हो चली है और राज्य स्तर पर सत्ता का संग्राम तीखा हो रहा है इसलिए चुनावी समय आने तक इसकी गर्मी और बढ़ेगी जो आखिरकार प्रदीप बत्रा के टिकट को लील सकती है। देखना होगा कि हालात क्या रुख अख्तियार करते हैं!