10 करोड़ तक के काम स्थानीय ठेकेदारों को दिए जाने की मुख्यमंत्री की घोषणा की बावजूद यह स्थिति?
एम हसीन
देहरादून। मुख्य मंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपनी सरकार की तीसरी वर्षगांठ पर घोषणा की थी कि अब 10 करोड़ रुपए तक के काम स्थानीय ठेकेदारों को ही दिए जाएंगे। वोकल फॉर लोकल की सरकार की नीति के लिए यह एक शानदार घोषणा है। लेकिन इस घोषणा के बावजूद समाचार-पत्रों में निर्माण कार्यों से संबंधित निविदा विज्ञापनों के प्रकाशन के मामले में अप्रैल के मध्य का दौर खासा रुखा दिखाई दे रहा है। यह शोध का विषय है कि इसका कारण बजट के आवंटन की धीमी प्रक्रिया है या कुछ और लेकिन यह सच है कि समाचार- पत्रों में निविदा संबंधी विज्ञापनों की कमी बराबर बनी हुई दिखाई दे रही है। स्थिति यह रही कि प्रमुख समाचार पत्रों के गढ़वाल मंडल के संस्करणों में शनिवार के दिन निर्माण संबंधी एक भी विज्ञापन दिखाई नहीं दिया। मध्य श्रेणी के उन समाचार-पत्रों के ई-संस्करण भी आज सोशल मीडिया पर खूब वायरल दिखाई दिए जो आमतौर पर वायरल नहीं होते। जिनके भौतिक अंक भी बाजार में कम ही मिल पाते हैं।
पिछले वित्तीय वर्ष का लेखा-जोखा करने, नए वित्तीय वर्ष का बजट आवंटन करने आदि के कामों को लेकर अप्रैल के मध्य तक निविदाओं का प्रकाशन आमतौर पर कम ही होता है, लेकिन होता भी है। स्वायत्तशासी संस्थाएं, जिनका बजट वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर वापिस नहीं होता या जिनके निर्माण कार्य प्रस्ताव पूर्व में ही स्वीकार हो जाते हैं और जो मार्च में अपने निविदा प्रकाशित नहीं कराते उन्हें अप्रैल में निविदा प्रकाशित कराने में कोई समस्या सामने नहीं आती। ऐसी निविदाएं प्रकाशित कराने में भी कोई समस्या नहीं आती जिनके प्रस्ताव पूर्व में स्वीकृत हो चुके हैं, बस धन आवंटित होना होता है। मसलन, हरिद्वार जिले के रुड़की में सोलानी नदी पर रानीपुर क्षेत्र में पुल के निर्माण को केंद्र की वित्तीय मंजूरी मिल गई है। हो सकता है कि धन भी जारी हो गया हो और हो सकता है कि प्रक्रिया में हो। ऐसे में धन प्राप्ति की प्रत्याशा में विभाग निविदा का प्रकाशन करा भी लेते हैं। लेकिन फिलहाल यह प्रक्रिया भी थमी हुई दिखाई दे रही। हालांकि इसका एक कारण यह भी रहा कि इस दौरान छुट्टियां बहुत हुई।
फिर भी अगर 19 अप्रैल के मुख्य समाचार-पत्रों को देखें तो वे निविदा विज्ञापनों के मामले में बिल्कुल कोरे दिखाई देंगे। अमर उजाला, दैनिक जागरण, दैनिक हिंदुस्तान के गढ़वाल संस्करण जो सोशल मीडिया पर दिखाई दिए उनमें निर्माण संबंधी एक भी विज्ञापन का प्रकाशन नहीं हुआ। यही स्थिति राष्ट्रीय सहारा, शाह टाइम्स और दैनिक भास्कर की रही। जाहिर है कि स्थानीय स्तर के समाचार-पत्र तो आज बिल्कुल ही कोरे छपे जिनके पास न कोई डिस्प्ले एड होता है और न ही प्राइवेट। अहम बात यह है कि यह स्थिति केवल आज ही दिखाई नहीं दी, बल्कि पिछले कई दिनों से दिखाई दे रही है। लोक निर्माण, सिंचाई, पेयजल, जल संस्थान आदि विभागों के निविदा विज्ञापन दिखाई न देना प्रदेश में निर्माण कार्यों की थमी रफ्तार को जाहिर करता है। इसी प्रकार ऊर्जा विभाग के विद्युत बंदी संबंधी विज्ञापन तो पिछले दिनों में दिखाई दिए हैं मगर निर्माण संबंधी विज्ञापन कम ही दिखे। ऊर्जा विभाग के निर्माण संबंधी विज्ञापन मार्च में भी कम ही दिखाई देते हैं। शायद इसका कारण यह है कि मार्च में यह विभाग अपने बकाया कि वसूली पर फोकस करता है। लेकिन ऊर्जा विभाग सहित सभी विभागों में निर्माण के लिए वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही को बेहतर माना जाता है, खासतौर पर मार्ग निर्माण आदि के मामले में। इसी कारण विभाग धन उपलब्ध न होने के बावजूद निविदाएं प्रकाशित करा लेते हैं ताकि बरसात से पहले निर्माण की प्रक्रिया पूरी करने में ज्यादा से ज्यादा समय मिल सके। लेकिन इस बार ऐसा दिखाई नहीं दे रहा है। हो सकता है कि सरकार की प्राथमिकताएं बदल गई हों या फिर इसका कोई और कारण हो।