क्या 2027 में भाजपा बाहर से लाएगी रुड़की सीट पर कोई महिला प्रत्याशी?
एम हसीन
रुड़की। भारतीय जनता पार्टी देश की ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। भाजपा की अपनी एक आइडियोलॉजी, अपना एक दर्शन है और इसी आइडियोलॉजी पर उसे मिलने वाला जन-समर्थन उसे अपनी विचारधारा को मूर्त रूप देने का हौसला दे रहा है। इसी जन-समर्थन के भरोसे पार्टी ने उत्तराखंड में महिलाओं को समान नागरिक संहिता में लिव-इन-रिलेशनशिप का अधिकार देकर उन्हें शादी के बंधन में बंधने की मजबूरी से आज़ादी दे दी है और इसी जन-समर्थन के भरोसे पार्टी द्वारा सिविल सर्विसेज में महिलाओं को 30 प्रतिशत का आरक्षण देकर उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने का रास्ता बनाया जा चुका है। अब मसला विधायिका में महिलाओं को आरक्षण दिए जाने का है जो कि आधिकारिक रूप से अभी नहीं दिया गया है लेकिन व्यवहारिक रूप से दिए जाने पर गहन विचार जारी है। पार्टी में एक उच्च पदस्थ सूत्र के अनुसार “कोई बड़ी बात नहीं कि इसी के तहत 2027 में कई ऐसी सीटों पर पार्टी महिलाओं को मैदान में उतारे जहां पार्टी की कामयाबी का इतिहास 80-100 प्रतिशत रहा है। बताया जाता है कि रुड़की ऐसी ही सीट है। इसीलिए यहां 2027 में किसी पुरुष की बजाय किसी महिला को टिकट दिए जाने पर विचार चल रहा है। अहम यह है कि वह महिला रुड़की से बाहर की भी हो सकती है।
जहां तक रुड़की का सवाल है, भाजपा की तैयारी यहां विधानसभा के पहले, अर्थात 2002 के, चुनाव में ही महिला प्रत्याशी लाने की थी। इसी योजना के तहत 2000 में राज्य स्थापना के बाद तत्कालीन विधान परिषद सदस्य श्रीमती निरुपमा गौड़ ने रुड़की को अंगीकार किया था और राज्य की अंतरिम सरकार में शहरी विकास राज्य मंत्री रहते हुए उन्होंने अगले दो सालों में रुड़की में खासा काम किया था। लेकिन बाद में पार्टी के भीतरी समीकरणों में बदलाव आया था, जिसके चलते निरुपमा गौड़ का टिकट कट गया था। उसके बाद पार्टी अभी तक 3 बार सुरेश जैन को और 2 बार प्रदीप बत्रा को अपने प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा चुकी है। 5 में से 4 बार उसे जीत हासिल हुई। इसी कारण मान लिया गया है कि यह सीट पार्टी का गढ़ बन चुकी है और अब वह यहां जीत के समीकरण पर काम करने की बजाय अपनी विचारधारा को लागू करने की स्थिति में आ गई है। राजनीति पार्टी के अनुकूल है क्योंकि क्षेत्र की जनता पार्टी के साथ है। पार्टी के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने इस विषय में बात करते हुए “परम नागरिक” से कहा कि “अब पार्टी को इस बात का खतरा नहीं है कि अगर उसने सीट पर कोई नया प्रयोग किया तो प्रदीप बत्रा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर पार्टी को चुनाव हरा सकते हैं। यह प्रयोग करके सुरेश जैन 2017 में देख चुके हैं और मुंह की खा चुके हैं। अब तो पार्टी जिसे टिकट देगी, वही विधायक होगा, जैसे पार्टी ने जिसे टिकट दिया, वही मेयर बना।”
कोई बड़ी बात नहीं कि पार्टी में जारी इस मंथन से बड़े नेता वाकिफ हैं। यही कारण है कि भावी प्रत्याशियों की स्थिति का आंकलन भी चल रहा है। बड़े नेता उन महिला चेहरों की संभावनाओं प गौर कर रहे हैं जिन्हें प्रत्याशी बनाकर जीत के रिकॉर्ड को बरकरार रखा जा सकता है। एक सूत्र के अनुसार कई चेहरे पार्टी के सामने हैं और दिलचस्प रूप से इनमें एक चेहरा मौजूदा विधायक प्रदीप बत्रा की पत्नी मनीषा बत्रा का भी है। साथ ही दूसरे दलों में प्रभावी महिला चेहरों का आंकलन भी पार्टी करती बताई गई है।