सामान्य दिनों में ही भारी पड़ता है ज्वालापुर से निकास और मंगलौर में प्रवेश

एम हसीन

रुड़की। अभी 13 अप्रैल को बैसाखी का स्नान संपन्न हुआ। पुलिस प्रशासन के अनुसार कुल 20 लाख लोगों ने इस अवसर पर गंगा में डुबकी लगाई। इनमें सारे राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 58 से होकर बहादराबाद तक ही वापस लौटे। काफी तादाद में श्रद्धालु बहादराबाद से भगवानपुर होते हुए पंजाब की ओर गए और बाकी मंगलौर होते हुए दिल्ली की ओर गए। महज 20 लाख संख्या वाले श्रद्धालुओं को ही उनके गंतव्य की ओर वापिस भेजने में उत्तराखंड की मित्र पुलिस के जवानों को तीन दिन तक जबरदस्त पसीना बहाना पड़ा। ऐसे में सवाल यह है कि यह राजमार्ग 2027 में महाकुंभ की भारी भीड़ का दबाव झेल पाएगा?

दिल्ली-हरिद्वार राजमार्ग संख्या 58 पर यातायात का भारी दबाव हमेशा ही रहता है। अप्रैल-अक्टूबर के बीच वार्षिक रूप से आयोजित होने वाली चारधाम यात्रा की भारी भीड़ इस मार्ग पर हमेशा ही दिखाई देती है। इस बीच विभिन्न स्नान पर्व हरिद्वार-ऋषिकेश में आयोजित होते हैं, जिनके अवसरों पर भीड़ का गुणात्मक रूप से बढ़ जाना एक स्वाभाविक बात होती है।इन्हीं हालात के मद्देनजर केंद्र की अटल बिहारी सरकार में सड़क परिवहन मंत्री रहते हुए इस मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग के दर्जा दिया था और इसके निर्माण से लेकर रख-रखाव की जिम्मेदारी ली थी। 2012 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसे फोर लेन के तौर विकसित करने की योजना पर काम शुरू किया था। आज यह राजमार्ग 4 लेन में विकसित हो चुका है दिल्ली तक लोगों को यातायात में राहत मिली है। लेकिन दो कारणों से अभी भी समस्याएं बनी हुई हैं। एक, 2012 के बाद इस मार्ग पर यातायात में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है। दूसरा कारण यह है कुछ पॉइंट्स पर अभी भी स्थानीय यातायात के साथ इस मार्ग की क्रॉसिंग बनी हुई है। अगर फोन स्ट्रीम में, अर्थात हरिद्वार की ओर से वापसी की बात करें तो हरिद्वार की उपनगरी ज्वालापुर के पास आकर यह राजमार्ग फ्लाई ओवर से उतर कर जमीन पर आता है। इसी बिंदु पर ज्वालापुर का भीतरी यातायात इसे क्रॉस करता है। हालांकि यहां हरिद्वार नगर निगम ने ट्रैफिक लाइट व्यवस्था लागू की हुई है और हरिद्वार यातायात पुलिस भी यहां अपनी व्यवस्था रखती है। इसके बावजूद यहां आकर जाम लग ही जाता है। इसका विकल्प तो स्वाभाविक रूप से स्थानीय यातायात के लिए अंडर पास ही है। लेकिन अंडर पास के निर्माण में जितना समय लगता आया है, उसकी रूह में कहा जा सकता है कि 2027 के कुंभ से पहले अंडरपास का निर्माण शायद ही संभव हो पाए। ठीक ऐसी ही स्थिति डाउन स्ट्रीम में ही मंगलौर नगर में प्रवेश के समय बनती है। यहां यातायात पुलिस की व्यवस्था तो है लेकिन ट्रैफिक लाइट व्यवस्था नहीं है। हरिद्वार जिले के भीतर इन दोनों ही पॉइंट्स पर सामान्य दिनों में ही यातायात की भारी समस्या बनी रहती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर कोई वैकल्पिक व्यवस्था न की गई या इसी व्यवस्था का विस्तार करते हुए इसे सुदृढ़ न किया गया तो क्या 2027 में यात्रियों को हरिद्वार लाना और उन्हें वापिस भेजना आसान होगा?