गलत तरीके से लगी सील खुलवाने के मामले में उमेश कुमार ने मारी बाजी

एम हसीन

रुड़की। ढंडेरा स्थित नूर उल इस्लाम मदरसा पर लगाई गई सील को खुलवाने के मामले में कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पिछड़ गए। वे मदरसों पर राज्य सरकार द्वारा की जा रही कार्यवाही को लेकर मीडिया में बयान और ज्ञापन देने तक सीमित रह गए जबकि स्थानीय विधायक उमेश कुमार राज्य सरकार और जिला प्रशासन को यह समझाने में कामयाब रहे कि कम से कम इस मदरसे पर सील लगाया जाना गलत है क्योंकि यह मदरसा पंजीकरण के आधार पर संचालित किया जा रहा है। नतीजा यह हुआ कि आज प्रशासन ने इस मदरसे की सील खोल दी। इस मौके पर खुद मौजूद रहकर उमेश कुमार ने राजनीतिक रूप से इसका खूब लाभ उठाया।

गौरतलब है कि राज्य सरकार बिना पंजीकरण संचालित किए जा रहे मदरसों के प्रति सख्त दृष्टिकोण अपना रही है। इन पर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा सील की कार्यवाही की जा रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इसे लेकर खासतौर कड़े तेवर अपना रहे हैं। उन्होंने ऐसे मदरसों को हो रही फंडिंग की भी जांच कराने की घोषणा की है। सरकार की इन कार्यवाहियों को लेकर हरिद्वार जिले के कांग्रेसियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने मीडिया को बयान देकर कहा था कि जिन मदरसों ने पंजीकरण के लिए आवेदन कर रखा है और पिछले 5 वर्ष से मदरसा बोर्ड के अस्तित्व में न होने के कारण जिन्हें पंजीकरण नहीं मिला है उन पर सील की कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए। इस मामले में कांग्रेस ने राजधानी में मुख्य सचिव को ज्ञापन देकर भी सील की कार्यवाही को स्थगित करने की मांग की थी। हरिद्वार में इस मुद्दे पर हरीश रावत की सक्रियता का कारण केवल इतना ही नहीं था कि वे पूरे प्रदेश की राजनीति करते हैं। इसका कारण यह भी था कि उनके पुत्र वीरेंद्र रावत पिछले लोकसभा चुनाव में हरिद्वार संसदीय सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे और उनके नाम पर जिले में राजनीति हरीश रावत ही कर रहे हैं। लेकिन खास मदरसा नूर उल इस्लाम को लेकर अहम यह था कि यह उस खानपुर विधानसभा क्षेत्र के ढंडे रा में स्थित है जहां विधायक निर्दलीय उमेश कुमार हैं और जहां अगले विधानसभा चुनाव में वीरेंद्र रावत को मैदान में उतारने का हरीश रावत का इरादा बताया जा रहा है। अहमियत इस बात की भी है कि ढंडे रा राजपूत बहुल कस्बा है और तत्संबंधी मदरसे को मुस्लिम राजपूत ही मुख्य रूप से चलाते हैं।

बहरहाल, सील की सरकारी कार्यवाही की चपेट में जो मदरसे आए थे उनमें एक नूर उल इस्लाम भी था जो कि पंजीकरण के आधार पर संचालित किया जाता रहा है। ऐसे में सवाल केवल इतना था कि मदरसे के वैध पंजीकरण के दस्तावेज लेकर प्रशासन और सरकार के स्तर पर कौन पैरवी करे। इस पैरवी का मौका स्थानीय राजपूतों के अलावा क्षेत्र में दो बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके, मदरसा शिक्षा से जुड़े, उमेश कुमार के तगड़े मददगार मुफ्ती रियासत अली ने उमेश कुमार को दिया। उमेश कुमार ने भी इस मामले में कोताही नहीं की। उन्होंने मदरसा की पैरवी की और आखिरकार मदरसा सील खुलवाने का न केवल आदेश हासिल कर लिया बल्कि पूरे लाव-लश्कर के साथ ढंडे रा पहुंचकर मदरसे की सील खुद अपने हाथों से खोली। चूंकि मामले का भरपूर प्रचार हुआ था इसलिए भीड़ भी वहां खूब इकट्ठी थी। कोई बड़ी बात नहीं कि इसका उमेश कुमार को भरपूर राजनीतिक लाभ मिलने वाला है।