क्या सोची-समझी थी नगर विधायक प्रदीप बत्रा की यह मूव?
एम हसीन
रुड़की। लोकतांत्रिक संस्थाओं में पारदर्शिता को पूरा प्रश्रय दिया जाता है। हाल ही में संपन्न विधानसभा के सत्र का व्यवस्था ने न केवल जीवंत प्रसारण सुनिश्चित किया था बल्कि पत्रकार दीर्घा में पत्रकारों के बैठने की पूरी व्यवस्था भी की थी। लोकसभा के सत्र में भी यही हो रहा है। बतौर विधायक अपना 12वाँ वर्ष व्यतीत कर रहे नगर विधायक प्रदीप बत्रा इस सच से अवगत न हों, ऐसा नहीं है। इसके बावजूद नगर निगम कार्यालय में आयोजित निर्वाचित बोर्ड की पहली बैठक में उन्होंने न केवल पत्रकारों की एंट्री को प्रतिबंधित कर दिया, बल्कि पत्रकारों को बाकायदा धकियाकर बैठक कक्ष से बाहर किया। अहम बात यह है, हालांकि बैठक में मौजूद प्रथम नागरिक अनीता देवी अग्रवाल या किसी अन्य विधायक ने उन्हें टोका नहीं, इसके बावजूद यह साफ दिख रहा था कि यह पहल निगम बोर्ड या निगम प्रशासन द्वारा नहीं की गई। केवल प्रदीप बत्रा और उनके सुरक्षाकर्मी ही पत्रकारों को धकियाकर बाहर करते हुए दिख रहे हैं। सवाल यह है कि क्या यह प्रदीप बत्रा की किसी बौखलाहट का परिणाम रहा या कुछ और? यह देखने वाली बात है कि क्या यह प्रदीप बत्रा की सोची-समझी मूव थी?
बहरहाल, जहां प्रदीप बत्रा के इस कदम को लेकर पत्रकारों में भारी आक्रोश है वहीं अन्य राजनीतिक दलों और व्यक्तित्वों की भी तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। पूर्व मेयर यशपाल राणा ने पत्रकारों के साथ की गई बदसलूकी की घोर निंदा की है। उन्होंने कहा कि रुड़की शिक्षित लोगों का शहर है नगर विधायक की भूमिका नगर की गरिमा के विपरीत रही। पूर्व मेयर गौरव गोयल ने इसे नगर विधायक प्रदीप बत्रा की दादागिरी करार दिया और कहा कि नगर निगम में यह दादागिरी चल नहीं पाएगी। इस क्रम में महानगर कांग्रेस अध्यक्ष राजेंद्र चौधरी एडवोकेट ने भी घटना की निंदा की है। उन्होंने कहा है कि लोकतंत्र में पारदर्शिता खत्म करने का यह खतरनाक कदम भाजपा और उसके जन-प्रतिनिधि ही उठा सकते हैं। लोकतांत्रिक जनमोर्चा के संयोजक सुभाष सैनी ने भी प्रदीप बत्रा की तीखी आलोचना की है। इस बीच पत्रकारों के सभी संगठनों ने 4 मार्च को रुड़की में होने वाले मुख्यमंत्री के कार्यक्रम का बहिष्कार किए जाने की खबरें मीडिया पोर्टलों पर दिखाई दे रही हैं।