क्या कोई गहरा राज है पुल स्वीकृत न होने के पीछे?
एम हसीन
रुड़की। नगर विधायक प्रदीप बत्रा ने विधानसभा के बजट सत्र में एक बार फिर सोलानी पुल के मुद्दे को उठाया। उन्होंने सदन में बताया कि उनके विधानसभा क्षेत्र में सोलानी नदी का पुल भारी यातायात के लिए बंद पड़ा हुआ है जिसके चलते लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने सरकार से सवाल पूछा कि पुल के निर्माण में क्या दिक्कत आ रही है? जवाब लोक निर्माण विभाग के मंत्री सतपाल महाराज ने दिया। उन्होंने बताया कि पुल का एस्टीमेट तैयार हो गया है और धन स्वीकृति के लिए केंद्रीय सरकार के पास विचाराधीन है। धन स्वीकृत होते ही पुल का निर्माण प्रारंभ हो जाएगा। जैसा कि, कम से कम रुड़की के नागरिक तो जानते ही हैं कि यह जवाब लोक निर्माण विभाग पिछले तीन महीने से देता आ रहा है। अर्थात इसमें कुछ नया नहीं है; हालांकि यह भी सच है कि इस पुल के निर्माण की मांग प्रदीप बत्रा विधानसभा में ही पहले भी कर चुके हैं। इसके अलावा कलियर विधायक फुरकान अहमद भी यह मांग विधानसभा में उठा चुके हैं। लेकिन अभी तक दोनों विधायकों को सरकार से केवल आश्वासन ही मिले हैं।
जहां तक हाजी फुरकान अहमद का सवाल है, वे विपक्ष के विधायक हैं। लेकिन प्रदीप बत्रा पर यह बात लागू नहीं होती। वे न केवल सत्तारूढ़ दल के विधायक हैं बल्कि उनके विषय में यह भी माना जाता है कि वे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निकट विधायकों में एक हैं। ऐसे में उनकी मांग का भी न सुना जाना कहीं न कहीं इस सवाल को जन्म दे रहा है कि आखिर सरकार प्रदीप बत्रा की मांग पर क्यों गौर नहीं कर रही है? वैसे यह भी सच है कि प्रदीप बत्रा को सार्वजनिक निर्माण के काम कराने वाले विधायक के रूप में नहीं जाना जाता। वे काम करने वाले विधायक नहीं हैं। यही कारण है कि अव्वल तो उनके कार्यकाल में नगर में काम हुए ही नहीं, हुए भी तो उनका संबंध जन-समस्याओं से कम ही था। वे दरअसल, एक खास वर्ग के लिए और एक खास क्षेत्र के लिए काम करने को प्राथमिकता देते आए हैं। मसलन, उन्हें या सिविल लाइन क्षेत्र की सड़कों पर काम करना सुहाता है या फिर सौंदर्यीकरण का काम करना अच्छा लगता है। संपन्न विधानसभा सत्र में भी उन्होंने केवल दो ही मांगें उठाई। एक, गंगा के घाटों-पुलों और नेहरू स्टेडियम का सौंदर्यीकरण और दूसरे, सोलानी पुल के निर्माण की मांग। सवाल यह है कि जब उनकी बहुत सारी मांगें भी नहीं हैं तो सरकार क्यों उनकी मांग पर ध्यान नहीं दे रही है। जाहिर है कि इसके पीछे कुछ न कुछ करना तो जरूर होगा!