10 में से 9 निकायों में हुई पार्टी की जबरदस्त हार, पिछली बार जीती दो सीटें भी इस बार हारी, ढंढेरा में खुद पार्टी प्रत्याशी का काउंटिंग में हराने का आरोप
एम हसीन
रुड़की। जिला पंचायत के अध्यक्ष किरण चौधरी ने पूरे जिले में निकाय चुनाव में पार्टी की हार को लेकर इस संवाददाता से बातचीत करते हुए कहा, “मेन चीज, अर्थात रुड़की नगर निगम, तो जीत लिया।” इस जीत में पार्टी की कितनी भूमिका है और सरकार की कितनी इस मुद्दे को फिलहाल नजरअंदाज करते यह देखा जाए कि बड़े पदाधिकारी कैसे अपने-आपको या कहें कि अपने नेताओं को तसल्लियां दे रहे हैं। इससे तो यह लगता है कि पार्टी के स्थानीय नेताओं को इस बात का अहसास ही नहीं है कि देहात में एकतरफा हार से न केवल पार्टी की छवि को धक्का लगा है बल्कि पार्टी चुनाव अभियान की अगुवाई कर रहे नेताओं की भी छवि को नुकसान पहुंचा है। खासतौर पर इसलिए कि चुनाव परिणाम के आयाम बहुत विस्तृत हैं।
उदाहरण इस बात का लिया जा सकता है कि ढंढेरा में पार्टी के नगर पंचायत अध्यक्ष पद के प्रत्याशी रहे रवि राणा का आरोप है कि उन्हें काउंटिंग में हराया गया। हालांकि उनके निशाने पर खानपुर के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार हैं जिन्होंने कथित रूप से रिकाउंटिंग की रवि राणा की मांग को मंजूर नहीं होने दिया, लेकिन अहमियत तो इस बात की भी है कि सरकार तो रवि राणा की ही है। रवि राणा के बयान की बुनियाद में क्या यह समझा जाए कि भाजपा शासनकाल में प्रशासन ने मतगणना में धांधली की? हालांकि यह अहम है कि विपक्ष ने मतदान में धांधली के आरोप लगाए थे। मंगलौर के कांग्रेस विधायक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ने स्लो वोटिंग का आरोप लगाया था और इसी आरोप को लेकर भगवानपुर की कांग्रेस विधायक ममता राकेश रोई भी थी।
ध्यान रहे कि भगवानपुर नगर पंचायत पिछले 5 साल भाजपा के कब्जे में रही है। तब यहां पार्टी की सहती देवी अध्यक्ष थीं जो ममता राकेश की सास हैं। लेकिन इस बार भाजपा यहां चुनाव हार गई हालांकि यहां पार्टी ने अपने स्थानीय नेता सुबोध राकेश की संस्तुति का प्रत्याशी नकारकर पूर्व ब्लॉक प्रमुख देवेंद्र अग्रवाल के पुत्र रचित अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया था। इसी क्रम में पार्टी ने झबरेड़ा में अपनी सीट गंवा दी। यहां पार्टी के मानवेंद्र सिंह 5 साल अध्यक्ष रहने के बाद मैदान में थे। उन्होंने अपने द्वारा कराए गए कामों के अलावा क्षेत्र के कथित रूप से बिगड़ते डेमोग्राफ को लेकर चुनाव लड़ा। उन्होंने योगी आदित्यनाथ की तर्ज पर नारा भी दिया। लेकिन उनके अभियान को किसी भी स्तर पर पार्टी का संरक्षण नहीं मिला। परिणामस्वरूप वे चुनाव हार गए। लंढौरा में पार्टी ने कुलदीप चौधरी को अपना प्रत्याशी बनाया था, लेकिन यहां पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी रानी देवयानी को यह मंजूर नहीं हुआ और कुलदीप चौधरी का टिकट काट दिया गया। वे निर्दलीय चुनाव लड़े और रानी देवयानी ने अपना अलग निर्दलीय प्रत्याशी लड़ाया। दोनों ही प्रत्याशी मतगणना सूची में बेहद निचले स्तर पर नज़र आए। मंगलौर में पार्टी समर्थित प्रत्याशी हारा जबकि कलियर में पार्टी प्रत्याशी था ही नहीं। पाडली, रामपुर, इमलीखेड़ा के परिणाम पर अलग से चर्चा हो चुकी है। सवाल यह है कि पार्टी की यह लुटिया डुबोई तो किसने डुबोई? रुड़की में निगम चुनाव जीती भाजपा के तमाम लोग श्रेय लेने के लिए आगे आ रहे हैं। देहात में हार की जिम्मेदारी लेने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है।