नगर भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा की परफॉर्मेंस ही नहीं नीयत भी होगी कसौटी पर

एम हसीन

रुड़की। मतदान की तिथि आ गई है और नगर विधायक प्रदीप बत्रा की परफॉर्मेंस से लेकर नीयत तक कसौटी पर है। जनता निकाय चुनाव में दलीय राजनीति को नकारने की आदी है और पिछले चुनाव में इस सोच की अगुवाई खुद प्रदीप बत्रा कर चुके हैं। यह तो दिख रहा है कि इस बार प्रदीप बत्रा दलीय राजनीति को प्रश्रय दे रहे हैं, अपनी पार्टी की प्रत्याशी अनीता देवी अग्रवाल के साथ प्रचार अभियान के वे अगुवा रहे हैं, लेकिन यह कोई बहुत महत्वपूर्ण बात नहीं है। 2019 में जब भाजपा प्रत्याशी के रूप में मयंक गुप्ता मेयर का चुनाव लड़ रहे थे तब भी प्रदीप बत्रा उनके साथ चुनाव अभियान में इसी तरह लगे हुए थे। इसके बावजूद परिणाम के तौर पर मयंक गुप्ता के हिस्से में 19 हजार वोट और तीसरा स्थान आया था। इस बार क्या होगा यह देखने वाली बात होगी। वैसे इस बार भाजपा में बहुत लोग चाहते हैं कि प्रदीप बत्रा पार्टी प्रत्याशी के साथ भीतरघात करें ताकि 2027 में उनका बिस्तर बांधना आसान हो जाए।

एक ओर यह स्थिति है और दूसरी ओर जो परिस्थितियां फिलहाल दिखाई दे रही हैं, उनका लब्बोलुबाब यही है कि नगर में भाजपा की स्थिति बेहद कमजोर है। भाजपा कार्यकर्ताओं का ही एक बहुत बड़ा वर्ग कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में खामोश प्रचार करता हुआ दिखाई दे रहा है और मतदाता की स्थिति यह है कि चुनाव प्रचार के अंतिम दिन पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में रोड शो करने आए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को नगर में जनता का वह समर्थन मिलता दिखाई नहीं दिया जो अपेक्षित था। सबसे बड़ा मसला तो यही रहा कि पार्टी ने रोड शो का समय सुबह ही रख दिया और बाजार खुलने से पहले ही मुख्यमंत्री रोड शो करके चले गए। दुकानकारों की रोड शो में वैसी हाजरी लगी ही नहीं, प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए जैसा अपेक्षित था। कमोबेश ऐसा ही 2019 में तब हुआ था जब तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, जो फिलहाल हरिद्वार सांसद हैं, के साथ हुआ था। तब तोड़ शो फ्लॉप शो साबित हुआ था और मयंक गुप्ता हारे थे। तब निर्दलीय गौरव गोयल जीते थे और तत्काल बाद यह साबित हो गया था कि वे प्रदीप बत्रा के सहयोग से जीते थे।

सवाल यह है कि क्या इस बार प्रदीप बत्रा उसी काम को कर रहे हैं? इस बार कम से कम निर्दलीय के पक्ष में उनका रुझान दिखाई नहीं दिया है और जैसा कि सब जानते हैं, तीसरा प्रत्याशी कांग्रेस का है। अगर बत्रा भाजपा के साथ भीतरघात करते हैं तो उन्हें कांग्रेस को वोट डलवाने होंगे। उनके पास इसका कोई विकल्प नहीं है। देशभर में कांग्रेस के साथ सीधी प्रतिस्पर्धा कर रही भाजपा को रुड़की में यह किस हद तक कांग्रेस का जीतन मंजूर होगा यह देखने वाली बात होगी। भाजपा ने बहुत सोच-समझकर प्रदीप बत्रा को ऐसी स्थिति में डाला है। अब अगर बत्रा चाहें तो भाग सकते हैं। उनका यूं पुलंदा बांधने वाले भाजपा में बहुत लोग हैं जो चाहते हैं कि प्रदीप बत्रा कांग्रेस के पक्ष में अपनी पार्टी के साथ भीतरघात करें, ताकि चुनाव के बाद, खासतौर पर 2027 में, उनका इलाज किया जा सके। यह भी कमाल की बात है कि इस बार भाजपाई प्रदीप बत्रा के इशारे पर अपनी पार्टी से भीतरघात करें या खुद करें, इसका ठीकरा प्रदीप बत्रा के ही सिर फूटेगा। कोई और यह श्रेय लेने के लिए इस बार आगे नहीं है। मयंक गुप्ता को यह श्रेय दिया जा सकता था, लेकिन उन्हें पहले ही दूध में से मक्खी की तरह प्रचार से बाहर कर दिया गया था। यहां तक सवाल प्रदीप बत्रा की नीयत का है। अगला सवाल बत्रा की परफॉर्मेंस का है। अगर भाजपा प्रत्याशी नगर में जीतकर निकलती हैं तो यह इस बात का भी सबूत होगा कि बतौर विधायक प्रदीप बत्रा का परफॉर्मेंस बढ़िया है। अब निर्भर सबकुछ प्रदीप बत्रा पर ही करता है।