कलियर विधायक के सामने इतने भी बुरे नहीं है हालात

एम हसीन

रामपुर। अपने गृह क्षेत्र रामपुर में अपनी पत्नी शाहजहां को प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद के कैंप में बगावत हुई है। उनके क्षेत्र में उनके सामने चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों में अधिकांश विधानसभा चुनाव की राजनीति में उनके साथ रह चुके हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या हाजी फुरकान अहमद अपने गृह क्षेत्र में चुनाव हार सकते हैं?

जहां तक रामपुर में हाजी फुरकान अहमद के हारने का सवाल है, वे 2011 में उस समय यहां ग्राम प्रधान का चुनाव हार चुके हैं जब अभी न वे विधायक बने थे और उन्हें ही रामपुर नगर पंचायत बनी थी। लेकिन यह बहुत पुरानी बात है। 2012 में विधायक बनने के बाद उन्होंने केवल अपने प्रभाव का ही विस्तार क्षेत्र में किया है, बल्कि समर्थकों के रूप में भी किया है। इसके बावजूद यह सच्चाई अपने स्थान पर कायम है कि नगर पंचायत के पहले ही चुनाव में जब उन्होंने अपने किसी समर्थक को प्रत्याशी बनाने की बजाय अपनी पत्नी शाहजहां को प्रत्याशी बना दिया तो उनके कैंप में बगावत हुई है। कल तक उनके सबसे मजबूत सहायक रहे जुल्फान अहमद उनका साथ छोड़कर चले गए हैं। कल तक उनके सहयोगी रहे कई लोग प्रत्याशी के रूप में उनके सामने डेट हुए हैं। लेकिन इतने मात्र से ही यह मान लेना ठीक नहीं होगा कि हाजी फुरकान अहमद अपने गृह क्षेत्र में ही चुनाव हार भी सकते हैं। इसे समझने के लिए कई चीजों पर गौर करना पड़ेगा।

रामपुर की स्थिति यह है कि यहां हाजी फुरकान अहमद का पूर्व विधायक अब्दुल वहीद उर्फ भूरा के साथ सीधा संघर्ष सनातन काल से चला आ रहा है इस बार भी भूरा प्रधान बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। लेकिन प्रतिस्पर्धा के मामले में वे कितना प्रभावशाली हैं इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि विधायक से बगावत करने वाले किसी भी चेहरे को अपने पाले में लाने में वे नाकाम रहे हैं अर्थात हाजी फुरकान अहमद से नाराज एक भी चेहरा उनके सीधे विरोधी भूरा प्रधान के कैंप में नहीं पहुंचा है। या तो वह खुद चुनाव में चला गया है या फिर खामोश होकर घर बैठ गया है। मिसाल जुल्फ़ान अहमद की ही ली जा सकती है जो रुड़की में सक्रिय हैं, कलियर में सक्रिय हैं लेकिन रामपुर में सक्रिय नहीं हैं। रामपुर में वे खामोश हैं। यही स्थिति यह साबित करने के लिए काफी है कि रामपुर में हाजी फुरकान अहमद की प्रतिस्पर्धा आज भी भूरा प्रधान के ही साथ है। बाकी लोग अपने स्तर पर जो भी कर रहे हैं वोट काटने का ही काम कर रहे हैं। कोई अगर हाजी फुरकान अहमद का वोट कम कर रहा है तो कोई भूरा प्रधान का वोट भी कम कर रहा है। दूसरी बात यह है कि हाजी भूरा को बसपा में वह समर्थन प्राप्त नहीं है जो इन स्थितियों में उन्हें निर्णायक हैसियत प्रदान कर दे। बसपा के एक मात्र, लक्सर, विधायक हाजी शहजाद का समर्थन यहां भूरा प्रधान को मिलता दिखाई नहीं दे रहा है। हाजी मुमताज हाजी शहजाद का बहुत बड़ा फोटो लगाकर चुनाव लड़ रहे हैं और भूरा प्रधान के होर्डिंग्स पर हाजी शहजाद का फोटो नहीं है। तीसरी बात यह कि हाजी फुरकान अहमद विधायक हैं और अभी 2027 तक रहने वाले हैं। यह सच उनके समर्थक भी जानते हैं, उनके बागी भी जानते हैं और उनके विरोधी भी। इसलिए यह नहीं मान लेना चाहिए हाजी फुरकान अहमद कम से कम इस चुनाव में अपने गृह क्षेत्र में ही हार भी सकते हैं।