लोग पूछ रहे : आम आदमी का यशपाल राणा जैसा पैरोकार कौन है?
एम हसीन
रुड़की। निर्दलीय श्रेष्ठा राणा का लगातार बढ़ता जन-समर्थन और उनका जनता के साथ सीधा संवाद चुनावी वातावरण को व्यापक रूप से प्रभावित कर रहा है। उनके पूर्व मेयर पति यशपाल राणा की जनता के बीच लगातार उपस्थिति उनके चुनाव अभियान को नई ऊंचाईयों पर ले जा रही है। निर्दलीय खानपुर विधायक उमेश कुमार का बेहद प्रभावशाली समर्थन और मजलिस प्रदेश अध्यक्ष डॉ नैयर काजमी की “मजबूत-दमदार प्रत्याशी जिताओ” मुहिम श्रेष्ठा राणा की अतिरिक्त शक्ति बन गई है। ऐसा केवल श्रेष्ठा राणा के साथ हो रहा है कि उनका प्रचार आम आदमी कर रहा है। कोई रिक्शा चालक, कोई चाय वाला, कोई सब्जी वाला, कोई फल वाला, कोई कबाड़ का समान खरीदने वाला सब श्रेष्ठा राणा का प्रचार मुफ्त में कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि श्रेष्ठा राणा आम आदमी की प्रत्याशी बन गई हैं और लगता है कि आम आदमी को उनके पति यशपाल राणा से बड़ा अपना कोई पैरोकार नहीं मिल रहा है। इसी कारण उनका चुनाव निशान वायुयान लगातार ऊंचाइयों की ओर जा रहा है।
यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है। इसके पीछे ठोस कारण हैं। कारण ये हैं कि कॉरपोरेट संस्कृति के नगर के जन-प्रतिनिधियों ने राजनीतिक माफियावाद को जन्म दिया है। यह राजनीतिक माफियावाद जो, बंद कमरों से चलता है, में आम आदमी की सुनवाई नहीं है? आम आदमी को कहां पता लगता है कि राजनीति की बागडोर रेलवे रोड के एक बदनाम बेसमेंट में हैं जहां उसका जन-प्रतिनिधि गिरवी रखा हुआ है। जानते हैं न यह वही बदनाम बेसमेंट है जहां अगर आम आदमी की घुसपैठ नहीं है तो यहां आम आदमी के पैरोकार जन-प्रतिनिधि की भी घुसपैठ नहीं है। बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि गौरव गोयल की घुसपैठ इस बदनाम बेसमेंट में नहीं थी। इसी कारण उन्हें साढ़े तीन साल में ही पद छोड़ना पड़ा। लेकिन यशपाल राणा के साथ ऐसा नहीं होगा क्योंकि यशपाल राणा कमजोर नहीं हैं। यह एक बेहद अहम बात है कि वे दलीय प्रत्याशी नहीं हैं लेकिन कमजोर भी नहीं हैं। उनके साथ जनता की ताकत है क्योंकि वे अपने दम पर हैं। यही गौरव गोयल की कमजोरी थी। वे निर्दलीय थे लेकिन दोस्तों के कंधे पर थे। उनका जन-समर्थन उनका अपना नहीं था, अपने दम पर नहीं था। इसी कारण वे खेत रहे थे। लेकिन यशपाल राणा के साथ ऐसा नहीं है।
लोकतंत्र में ताकत वोट की होती है और वोट आम आदमी डालता है जोकि कॉर्पोरेट की नजर में लेसर मार्टल कहलाता है यानी कि कमतर इंसान। इसी कारण राजनीतिक माफियावाद के पैरोकार ढाई-तीन सौ लोग लेसर मार्टल का अर्थात आम आदमी का प्रतिनिधि नहीं चुनने नहीं देना चाहते। वे लेसर मार्टल में विभाजन कराकर उनसे अपना प्रतिनिधि चुनवा लेते हैं। ऐसा ही पिछले विधानसभा चुनाव में हुआ था, जब जनता कांग्रेस को चुनना चाहती थी, यशपाल राणा को चुनना चाहती थी तब राजनीतिक माफियावाद ने जनमत चुरा लिया था, उस पर कब्जा कर लिया था, उस पर डाका डाल लिया था। इसी कारण अब यशपाल राणा अपनी पत्नी श्रेष्ठा राणा को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लाए हैं और गरीब-गुरबा उनका प्रचार कर रहा है। ध्यान रहे कि नगर में कुल मतों की संख्या एक लाख बावन हजार है और गरीब-गुरबा के मतों की संख्या डेढ़ लाख है। अर्थात वोट तो गरीब-गुरबा का ही है।