बेवा और भतीजे सहित आधा दर्जन अनुयायियों ने किया नामांकन

एम हसीन

मंगलौर। नामांकन के अंतिम दिन आज मंगलौर नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस प्रत्याशी चौधरी इस्लाम का नामांकन कराने आए मंगलौर विधायक काजी निजामुद्दीन के चेहरे पर चमक और होठों पर मंद मुस्कान खेल रही थी। यह अस्वाभाविक नहीं था। हाल के विधानसभा उपचुनाव में उनके सामने बेहद कड़ी चुनौती पेश कर चुकी भारतीय जनता पार्टी नगर की राजनीति में उनके प्रत्याशी के सामने प्रत्याशी भी नहीं ला पाई थी और बगावत का शिकार भी हो रही थी। साथ ही हाल के विधानसभा उपचुनाव तक, कम से कम नगर में उनके सामने एक मजबूत चुनौती के रूप में मौजूद रही बसपा नगर पालिका परिषद के चुनाव में पूरी तरह बिखरी हुई ताकत के तौर पर उनके सामने थी। और अंसारी बिरादरी के सामने तो अपने नेतृत्व को बिखरते हुए देखने का संकट था ही।

हो भी क्यों नहीं। स्थिति यह थी हाजी सरवत करीम अंसारी के जन्नतनशीन होने के बाद के अपने सबसे बुरे हालात में भी जिस बसपा ने नगर क्षेत्र में 10 हजार वोट लिए थे वह अब अपने इस समर्थन को कम से कम छह भागों में विभाजित करने के लिए आतुर दिखाई दे रही थी। दरअसल, मंगलौर नगर पालिका अध्यक्ष पद को लेकर आज नामांकन प्रक्रिया की अवधि समाप्त होने तक हाजी सरवत करीम अंसारी मरहूम की बेवा के अलावा उनके भतीजे चौधरी जुल्फिकार अख्तर अंसारी ने एक बार फिर अपना नामांकन दाखिल किया। इसके अलावा मुहीउद्दीन अंसारी, जुल्फिकार ठेकेदार, मुन्ना रैफरी और डॉ शमशाद ने भी नामांकन दाखिल किए। हो सकता है कि इसके अलावा भी कोई एकाध और नामांकन आया हो। इनमें एक, मुहीउद्दीन अंसारी, को उनके चाचा जमीर हसन अंसारी ने मैदान में उतारा है। जमीर हसन अंसारी नगर में भाजपा का चेहरा रहे हैं। वे टिकट के दावेदार थे लेकिन भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। पार्टी ने इस निर्वाचन क्षेत्र को खुला छोड़ दिया। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने अपने भतीजे मुहीउद्दीन अंसारी को निर्दलीय मैदान में उतार दिया।

वैसे पिछले उप-चुनाव तक मुहीउद्दीन अंसारी बसपा में थे और उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें सरवत करीम अंसारी के राजनीतिक वारिस और पार्टी के विधानसभा प्रत्याशी रहे उबैदुर्रहमान अंसारी उर्फ मोंटी बसपा के टिकट पर नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ाएंगे। ठीक ऐसी ही उम्मीद चौधरी जुल्फिकार अंसारी की कर रहे थे जो कि मोंटी के चचेरे भाई हैं। वे भी उप-चुनाव में मोंटी के दांए थे। अब उन्हें बसपा ने तो टिकट दे दिया है लेकिन मोंटी ने आशीर्वाद नहीं दिया है। मोंटी का राजनीतिक आशीर्वाद मिला था जुल्फिकार ठेकेदार को। बताया जाता है कि अंसारी बिरादरी के चौधरियों की मंशा भी जुल्फिकार ठेकेदार के ही पक्ष में आई थी। लेकिन इसे मोंटी के घर से ही पलीता लग गया। उनके भाई आमिर अंसारी ने अपनी माता यानि हाजी सरवत करीम अंसारी की बेवा का नामांकन करा दिया। एक अन्य हाजी समर्थक मुन्ना रैफरी के भी नामांकन किए जाने की खबर है।

एक अन्य अहम नामांकन डॉ शमशाद का है। उपरोक्त सभी चेहरों में केवल डॉ शमशाद ही ऐसा नाम हैं जो बिरादरी से अंसारी नहीं हैं। वे तेली हैं। लेकिन पिछले चुनाव तक उन्होंने अंसारी बिरादरी के नेतृत्व को कायम रखने में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। उन्हें हाजी सरवत करीम अंसारी ने अपनी बिरादरी का समर्थन दिलाकर 2018 में नगर पालिका अध्यक्ष बनवाया था और उन्होंने अपनी तेली बिरादरी का समर्थन दिलाकर 2022 में हाजी सरवत करीम अंसारी को विधायक बनवाया था।

अगर पिछले चुनाव को आधार मानकर बात करें तो तब चौधरी इस्लाम कांग्रेस प्रत्याशी थे और उनके मुकाबले के लिए डॉ शमशाद मैदान में आए थे। तब चौधरी जुल्फिकार अख्तर अंसारी बसपा के टिकट पर मैदान में आए थे और उपरोक्त में से कोई अन्य प्रत्याशी मैदान में नहीं आया था। सच तो यह है कि तब चौधरी जुल्फिकार अख्तर अंसारी भी डॉ शमशाद के ही साथ आ गए थे। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि डॉ शमशाद को हाजी सरवत करीम अंसारी चुनाव लड़ा रहे थे जो कि यहां के अंसारी बिरादरी के सर्वमान्य नेता थे और बिरादरी की एकता के मद्देनजर उन्होंने अपना चुनाव अभियान शिथिल कर दिया था।बहरहाल, अब अंसारी बिरादरी को तय करना है कि उसका नेतृत्व कौन करे। चूंकि सवाल मुश्किल है इसलिए क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के होंठो पर मुस्कान होना स्वाभाविक है।