शोध का विषय है कि यह संयोग है या कुछ और कि इस बार नगर की सारी ब्राह्मण राजनीति भाजपा में शिफ्ट हो गई है। लेकिन ब्राह्मणों में भी पार्टी सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत मेहरबान दिखाई दे रहे हैं पंडित दिनेश कौशिक पर, जो कि एक बार पहले भी नगर पालिका अध्यक्ष रह चुके हैं। दिनेश कौशिक को निकाय की राजनीति सुहाती है और हाल के लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान ही वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे। स्वाभाविक रूप से उन्होंने त्रिवेंद्र सिंह रावत का कैंप ज्वाइन किया था। तभी से वे त्रिवेंद्र कैंप की राजनीति कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या सांसद उन्हें मेयर का टिकट देने जा रहे हैं? इस मामले में इस बात का ध्यान में रखा जाना जरूरी है कि भाजपा की परंपरा नहीं है किसी गैर कच्छा धारी को निकाय प्रमुख का टिकट देने की। अभी तक की सच्चाई यह कि पार्टी कांग्रेस से आए चेहरे को विधायक का टिकट तो दे देती है, लोकसभा का टिकट तो दे देती रही है, लेकिन निकाय प्रमुख का टिकट नहीं देती। इसके पीछे पार्टी की क्या सोच है यह अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ है।
बहरहाल, यह सच अपने स्थान पर है कि दिनेश कौशिक के साथ त्रिवेंद्र सिंह रावत की आसक्ति कायम है। जितना मान वे दिनेश कौशिक को दे रहे हैं उतना न भाजपा के किसी पुराने ब्राह्मण को दे रहे हैं और न ही किसी नवागत को। जैसा कि सब जानते हैं कि नगर में पंडित अनिल शर्मा अनन्त काल से भाजपा के ब्राह्मण सिरमौर रहे हैं। कभी दिग्गज कांग्रेसी रहे पंडित मनोहर लाल शर्मा भी पिछले दिनों भाजपा गमन कर गए थे। हालांकि उन्हें विधायक प्रदीप बत्रा के कैंप का आदमी माना जाता है। बहरहाल, चर्चा यह है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान ही दिनेश कौशिक से मेयर टिकट का वादा किया था। अब इसमें ताजा प्रगति यह हुई है कि दिनेश कौशिक और प्रदीप बत्रा के संबंधों पर जो बर्फ 2008 में जमी हुई थी वह पिघल गई लगती है। जारी की गई विज्ञप्ति के अनुसार विगत दिवस त्रिवेंद्र सिंह रावत जब ध्वजारोहण करने दिनेश कौशिक के कार्यालय पर गए तो उनके साथ प्रदीप बत्रा भी गए थे। यह अपने प्रकार का एक नया उदाहरण है जो जाहिर है कि दिलचस्पी से खाली नहीं।
इस बीच यह बुनियादी मसला अपने स्थान पर कायम है कि आजन्म कांग्रेसी रहे दिनेश कौशिक संघी नहीं हैं। इसके विपरीत भाजपा ने उत्तराखंड स्थापना के बाद जिन प्रमोद गोयल, अश्वनी कौशिक, महेंद्र काला और मयंक गुप्ता को अपना निकाय प्रमुख प्रत्याशी बनाया था वे सभी संघ दीक्षित रहे हैं। भाजपा में इसका एकमात्र अपवाद राजेश गर्ग रहे हैं जो 1995 में कांग्रेस, लोकदल, जनता दल आदि से होते हुए भाजपा में पहुंचे थे और पार्टी का निकाय टिकट ले गए थे। लेकिन शायद इसका कारण यह है कि बनियों को संस्कारिक रूप से ही संघ दीक्षित माना जाता है। भाजपा को पार्टी ही बनियों की माना जाता है। लेकिन अहम यह है कि यह बात दिनेश कौशिक पर तो लागू नहीं होती। वे तो बनिया नहीं हैं। लेकिन यह भी सच है कि नरेंद्र मोदी की भाजपा में बहुत कुछ बदला हुआ दिखाई दे रहा है। यह भी बदलाव ही है दिनेश कौशिक जैसा खांटी कांग्रेसी आज भाजपा में है। इसलिए होने को तो यह भी हो सकता है कि एक बार फिर दिनेश कौशिक के दिन बहुरें।