रुड़की। यह स्वाभाविक है कि नगर विधायक प्रदीप बत्रा ने अपनी बहन बहनोई द्वारा उनके खिलाफ चलाई जा रही मुहिम को अपने विरोधियों की साजिश बताया है। उन्होंने कहा है कि उन्हें बेवजह बदनाम करने की साजिश की जा रही है। ऐसा हो सकता है लेकिन बत्रा की इस बात पर यकीन करने वाले शहर में कितने लोग होंगे? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर उनके बहन बहनोई के माध्यम से उनके विरोधी उनपर निशाना साध रहे हैं तो बत्रा विरोधी बेहद शातिर हैं। वे प्रदीप बत्रा के खिलाफ उन्हीं के बहन बहनोई से ऐसे आरोप सार्वजनिक करवा रहे हैं जिन्हें सुनकर लोग यकीन करते हैं, आरोपों को सच मान लेते हैं! कुछ ऐसी ही छवि बना चुके हैं बत्रा अपने अनुयायियों के बीच। अन्य शब्दों में, बत्रा पर उनके बहन बहनोई वही आरोप लगा रहे हैं जिनकी हकीकत जनता पर पहले से जग जाहिर है।

बत्रा की बहन रेणु कपूर का आरोप है कि बत्रा ने उनके फर्जी हस्ताक्षरों से दस्तावेज बनाकर उनकी संपत्ति अपने नाम करा ली। इसी आरोप को लेकर रेणु कपूर एफ आई आर दर्ज कराने कोतवाली गईं जो कि दर्ज नहीं हुई। उन्हीं के कथनानुसार वे अधिकारियों के पास गईं तो सुनवाई नहीं हुई। फिर वे निचली अदालत में गईं और एफ आई आर दर्ज कराने के लिए पुलिस के लिए आदेश लेकर आईं जो कि ऊपरी अदालत ए डी जे कोर्ट से पहले ही स्टे हो गया और फिर अब ऊपरी अदालत ने स्टे वैकेट कर दिया है। अर्थात अब पुलिस की कंपल्शन है कि वह पुराने, निचली अदालत के आदेश का अनुपालन करते हुए एफ आई आर दर्ज करे। लेकिन पुलिस ऐसा नहीं कर रही है। इसी चीज को लेकर आज रेणु कपूर दंपत्ति ने प्रेस कांफ्रेंस की। इसी के बाद प्रदीप बत्रा ने उपरोक्त आरोप लगाया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने रेणु कपूर के साथ कोई धोखाधड़ी नहीं की है। सब आरोप मनघड़ंत हैं।

बहरहाल, मसला पब्लिक सेंटीमेंट्स का है। नगर के हालात कुछ ऐसे हैं कि पब्लिक ओपिनियन प्रदीप बत्रा के पक्ष में केवल तब बनती है जब वे खुद चुनाव लड़ रहे हों या किसी दूसरे को अपने दम पर चुनाव लड़ा रहे हों। प्रदीप बत्रा को नगर में प्रॉपर्टी हाउंड (सपत्तियों का भूखा व्यक्ति) के रूप में जाना जाता है। संपत्तियों को अपने नाम करने के लिए वे हर संभव प्रयास करते हैं और यूं अगर उनके खिलाफ कोई मुकद्दमा दर्ज हो तो उसे नल एंड वाइड कराने के लिए वे सत्ता का लाभ उठाते हैं। ऐसा बार बार होता रहा है। उन पर डॉक्यूमेंट्स फोर्ज करने का आरोप भी पहली बार नहीं लग रहा है। कानून की डिग्री हासिल करने के मामले में उनके खिलाफ ऐसा अपराध पहले भी पंजीकृत हुआ था, जो कि अब अस्तित्व में नहीं है। हकीकत यह है कि सामाजिक रूप से पब्लिक ओपिनियन प्रदीप बत्रा के पक्ष में मुश्किल से ही बन पाएगी। लोगों की हमदर्दी उनकी बहन के साथ होना कोई बड़ी बात नहीं होगी, लेकिन उन्हें इस्का कोई लाभ मुश्किल से ही मिल पाएगा। कारण, समय आने पर राजनीतिक रूप से पब्लिक ओपिनियन प्रदीप बत्रा के ही पक्ष में बनेगी। अभी तक जो होता आया है उसके आधार पर सेफली कहा जा सकता है कि चाहे प्रदीप बत्रा खुद चुनाव लड़ें, जैसे कि वे 2022 में लड़े और जीते थे और चाहे प्रदीप बत्रा किसी और को चुनाव लड़ाएं जैसे उन्होंने 2019 में गौरव गोयल को भाजपा के ही खिलाफ चुनाव लड़ाया और मेयर बनाया था। तब उन्होंने कितने ही पार्षद भी अपने दम पर जितवाए थे। यह प्रदीप बत्रा का ही करिश्मा था कि उन्होंने 80 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले वार्ड में संजीव राय को भाजपा के टिकट पर पार्षद बनवाया था। दरअसल, प्रदीप बत्रा की ताकत सामाजिक नहीं है बल्कि राजनीतिक है। उन्हें डर इस बात का नहीं कि समाज उनके विषय में क्या सोचता है। उन्हें भरोसा उन 100 – 150 लोगों का है जिनमें उनके विरोधी और समर्थक सब शामिल हैं, जो कि चुनाव में जनमत बनाते हैं। इन 100 – 150 लोगों को मैनेज करना बत्रा जानते हैं। उन्हें मालूम है कि अपने सार्थकों को कब उन्हें अपने विरोध में इस्तेमाल करना है और अपने विरोधियों को कब अपने पक्ष में इस्तेमाल करना है। आखिर यह कोई कम बात नहीं कि उनके कल के एक परम मित्र जो आज की तिथि में उनके परम विरोधी हैं आपसी बातचीत में यह दावा करने से नहीं चूकते कि “जब भी धामी कैबिनेट का विस्तार होगा, बत्रा शपथ लेने वाले विधायकों में एक होंगे।” यही बत्रा की शक्ति है। हर कोई बत्रा का विरोध करता दिखता है लेकिन हर कोई चाहता है कि बत्रा उसे अपने संरक्षण में ले लें। किसी को बत्रा का संरक्षण मिलने का अर्थ है उसे शक्ति मिलना, उसे समृद्धि मिलना, उसे पद मिलना और उसे बिना टिकट के भी जन प्रतिनिधि होने का सुख मिलना। इसलिए यह सच नहीं है कि बड़ा बदनामी से डरने लग गए हैं।