एम हसीन
रुड़की। राजनीतिक रूप से रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा पर अपने पहले ही कार्यकाल में बहार आई थी। तब उन्होंने नितांत अवसरवासिता का परिचय दिया था राज्य की राजनीति की हकीकत, तत्कालीन हरिद्वार सांसद, तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और तब मुख्यमंत्री पद के तब के सबसे स्ट्रॉन्ग कंटेंडर हरीश रावत को धता बताकर विजय बहुगुणा का साथ देना कबूल किया था। विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने थे और प्रदीप बत्रा को पर्यटन विकास परिषद में उपाध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का रैंक, केवल रैंक, दिया गया था। हालांकि इस मामले में उन पर तब मेहरबानी विजय बहुगुणा की नहीं बल्कि सुरेंद्र राकेश (अब दिवंगत) की हुई थी। उन्हीं की सिफारिश पर बत्रा को लालबत्ती का सुख मिला था।
बहरहाल, हरीश रावत खांटी राजनेता हैं जिन्होंने खुद को अपनी मेहनत से बनाया है। हरीश रावत ने 21 महीनों में ही विजय बहुगुणा का तख्ता पलट कर दिखाया था कि प्रदीप बत्रा ने उन्हें नहीं बल्कि उन्होंने प्रदीप बत्रा को बनाया था। तब प्रदीप बत्रा के इकबाल का आफताब गुरुब हो गया था। उन के लिए तब कांग्रेस में ऐसे रास्ते बंद हुए थे कि उन्हें भाजपा में जाकर पनाह लेना पड़ी थी। फिर भी उन पर दोबारा रंग आया। तब आया जब 2021 में भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार का पतन हुआ और पुष्कर सिंह धामी सरकार वजूद में आई। फिर चुनाव हुआ। हालांकि मुख्यमंत्री अपनी सीट खटीमा पर चुनाव हार गए लेकिन रुड़की में प्रदीप बत्रा जीत गए। इस स्थिति ने भी मुख्यमंत्री और बत्रा के बीच दूरियों को बढ़ने नहीं दिया। हाल ही में मुख्यमंत्री धामी कावड़ यात्रा की समीक्षा बैठक में भाग लेने हरिद्वार आए तो प्रदीप बत्रा उनके साथ बैठे दिखाई दिए। हालांकि बीच में पूर्व कैबिनेट मंत्री यतीश्वरानंद थे। लेकिन सी एम के बांए दूसरे नंबर पर बत्रा ही बैठे। यह इस बात का प्रमाण है कि बत्रा, चाहे एक फासले के साथ ही हैं, लेकिन सी एम के करीब हैं। वे भाजपा के तीसरी बार जीते विधायक भी हैं, राज्य कैबिनेट में 4 पद खाली भी हैं और हरिद्वार जिले को कैबिनेट में प्रतिनिधित्व भी नहीं है। हरिद्वार में सी एम के सबसे करीबी स्वामी यतीश्वरानंद विधायक नहीं होने के कारण कैबिनेट की दौड़ से बाहर हैं और पार्टी के सबसे वरिष्ठ विधायक, दो बार के कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक सी एम की गुड बुक में नहीं हैं। सवाल यह है कि बत्रा के लिए कैबिनेट का हिस्सा बनने का इससे आदर्श मौका और क्या हो सकता है? क्यों वे मुख्यमंत्री और पार्टी के सामने इस तथ्य को रेखांकित नहीं कर पा रहे हैं कि रुड़की क्षेत्र की 6 सीटों में वे अकेले भाजपा के विधायक हैं। बाकी 5 में से 4 पर कांग्रेस का कब्जा है और एक पर निर्दलीय का! वे क्यों पार्टी को यह नहीं समझा पा रहे हैं कि 2027 में पार्टी को अगर इस क्षेत्र की तस्वीर में कुछ बदलाव लाना है तो उन्हें कैबिनेट में लाए। ध्यान रहे कि यह स्थिति पिछले ढाई सालों से बनी हुई है। अभी तक यह महज चर्चा साबित हुई है कि बत्रा कैबिनेट में जायेंगे। अभी तक वे गए नहीं हैं।
यही दरअसल इस बात का प्रमाण है कि पार्टी से लेकर मुख्यमंत्री और जिले की राजनीति से लेकर सामान्य समाज में बत्रा की वैल्यूएशन किस प्रकार की जाती है। एक उदाहरण, 2022 के विधानसभा चुनाव से ऐन पूर्व जब बड़े से बड़ा सियासी कारकून भी अपने क्षेत्र में अपने लिए चुनावी भूमि गोड रहा था, जनता को खुश कर रहा था, तब प्रदीप बत्रा नीलम टॉकीज कैंपस में बिना नक्शा पास कराए उस बिल्डिंग का निर्माण पूरा करा रहे थे जिस पर तत्कालीन ज्वाइंट मजिस्ट्रेट और एच आर डी ए की सचिव अपूर्वा पांडे ने सील लगा दी थी। तब प्रदीप बत्रा मुख्यमंत्री के साथ अपनी निकटता का लाभ अपूर्वा पांडे का स्थानांतरण कराने में उठा रहे थे। स्थानांतरण हो गया था। लेकिन इसी से मुख्यमंत्री की निगाह में बत्रा की हैसियत भी तय हो गई थी। रही सही कसर चुनाव में तब पूरा हो गई थी जब राम नगर में क्षेत्र में प्रदीप बत्रा के सजातीय पंजाबियों के बीच ही मुख्यमंत्री को अपनी गारंटी पर प्रदीप बत्रा के लिए समर्थन जुटाना पड़ा था; जब सिविल लाइन क्षेत्र में भवनों के नक्शे पास होने की समस्या के हल का आश्वासन अपने स्तर पर देकर मुख्यमंत्री को प्रदीप बत्रा के लिए समर्थन जुगाड़ना पड़ा था। बेशक मुख्यमंत्री ने अपने आश्वासन पर अमल किया। अब सिविल लाइन वासियों को भवन निर्माण में समस्या नहीं आ राय है। लेकिन इन हालात में मुख्यमंत्री से बेहतर कौन समझ सकता है कि प्रदीप बत्रा को कैबिनेट देकर भाजपा का कुछ भला होने वाला नहीं है। रही सही कसर खुद बत्रा पूरी कर रहे हैं जब वे अपने क्षेत्र के लिए विकास का कोई बड़ा प्रस्ताव, जन कल्याण की कोई बड़ी योजना लेकर सरकार के पास जाने की बजाय सोलानी नदी के रपटों के, कुछ लाख रुपए की लागत के, प्रस्ताव लेकर जा रहे हैं। जाहिर है कि बत्रा को तो विधायक पद की गरिमा का ही अनुमान नहीं। फिर वे कैबिनेट की दौड़ में तो हो ही नहीं सकते।