पिछली बार पूरे जिले में दिखाई दिया एक सा हाल

एम हसीन

रुड़की। राज्य में निकाय चुनाव की तैयारी चल निकली है। पिछले एक साल से सभी निकाय निर्वाचित बॉडी के बगैर चलते आ रहे हैं। लेकिन अगले कुछ महीनों में उन्हें निर्वाचित बोर्ड मिल जायेंगे। साथ ही यह संभावना भी बन जाएगी कि निर्वाचित जन प्रतिनिधि आपस में एक दूसरे से लड़ रहे हैं, आरोप प्रत्यारोप हो रहे हैं, खेमेबंदियां हो रही हैं। ऐसा निकायों के निर्वाचित प्रमुखों और माननीयों के बीच पिछली बार हो हो चुका है। बात किस हद तक जा चुकी है इसकी कुछ मिसालें।

विसर्जित मंगलौर नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद पर रहे हाजी दिलशाद अहमद को उनके कार्यकाल के अंतिम दिनों में पद से हटा दिया गया था। 2022 में विधायक निर्वाचित होने के बाद हाजी सरवत करीम अंसारी (अब जन्नत नशीन) ने उनके खिलाफ मोर्चा खोला था और विधानसभा में सवाल भी उठाया था। विधायक की शिकायतों के आधार पर ही हाजी दिलशाद अहमद के खिलाफ उपरोक्त कार्यवाही की गई थी। ठीक इसी प्रकार रुड़की के मेयर पद से गौरव गोयल को कार्यकाल में डेढ़ साल शेष रहते इस्तीफा देना पड़ा था। निगम बोर्ड आज भी अस्तित्व में है लेकिन उसका कोई अगुआ नहीं है, कोई अध्यक्ष नहीं है। हालांकि गौरव गोयल ने ऐसा क्यों किया था, यह आज भी एक रहस्य है लेकिन किया तभी था जब उनकी नगर विधायक प्रदीप बत्रा के साथ पंगेबाजियां आम हो गई थी। उपरोक्त दोनों निकाय प्रमुखों के विषय में यह अहम है कि इन्हें चुनाव में अपने प्रभाव से इन्हीं विधायकों ने जितवाया था। 2018 में हाजी दिलशाद अहमद को हाजी सरवत करीम अंसारी ने और गौरव गोयल को प्रदीप बत्रा ने अपने नेम अपने फेम पर निकाय प्रमुख बनवाया था। निकाय प्रमुख को बर्दाश्त न कर पाने की रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा की जिद्द 2018 में तब भी सामने आई थी जब उन्होंने तत्कालीन मेयर यशपाल राणा को जेल तक भिजवाया था। इस मामले में बत्रा की बर्दाश्त तो जीरो है। वे मुख्य नगर अधिकारी के पद पर विजय नाथ शुक्ला को भी बर्दाश्त नहीं कर पाए थे। बत्रा ने बकायदा विधान सभा में सवाल उठाकर शुक्ला के स्थानांतरण की मांग की थी।

बहरहाल, बात रुड़की तक ही सीमित नहीं है। 2022 में लक्सर सीट पर हाजी मुहम्मद शहजाद के विधायक बनने के बाद उनकी चका नुकी तत्काल नगर पालिका अध्यक्ष अमरीश गर्ग के साथ जो शुरू हुई थी वह आखिर तक चली। झबरेड़ा में चुनाव में मानवेंद्र सिंह के अभियान की अगुवाई कर उन्हें नगर पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित कराने में अहम भूमिका निभाने वाले तत्कालीन विधायक देशराज कर्णवाल पहली फुरसत में उनके खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठ गए थे। कर्णवाल ने गौरव गोयल के खिलाफ भी मोर्चाबंदी की थी, हालांकि चुनाव में उन्होंने परदे के पीछे से गौरव गोयल की मदद भी की थी। हरिद्वार में मेयर अनीता शर्मा और विधायक मदन कौशिक के बीच तब तक खुली टशन चलती रही थी जब तक मदन कौशिक शहरी विकास मंत्री रहे थे। जब उनके इकबाल का आफताब गुरूब हुआ था तब कहीं जाकर अनिता शर्मा को काम करने का मौका मिला था। भगवानपुर में तो विधायक ममता राकेश की सासू सहती देवी ही नगर पंचायत अध्यक्ष थी; फिर भी दोनों की खींचतान पूरे 5 साल चली थी। निर्माण कार्यों को लेकर दोनों पक्ष अक्सर मीडिया की खबरें बने थे। कलियर में विधायक हाजी फुरकान अहमद के साथ नगर पंचायत अध्यक्ष सखावत अली के पंगे कभी आम नहीं हुए थे लेकिन खींचतान उनके बीच भी सुनने में आती ही रहती थी। जिले में केवल एक नगर पालिका परिषद, शिवालिक नगर और एक नगर पंचायत, लंढौरा, ऐसी देखने में आई थी जहां के निकाय प्रमुख की क्षेत्रीय विधायक के साथ ज्यादा तकरार देखने में नहीं आई। इनके अलावा कोई निकाय इससे अछूता नहीं रहा था। सवाल यह है कि ऐसा क्या है कि माननीय निकाय प्रमुख को बर्दाश्त नहीं कर पाते? क्या प्रमुख महत्वकांक्षी हो जाते हैं और खुद की विधायक के रूप में कल्पना करने लगते हैं? या माननीय ही उनसे आशंकित हो जाते हैं? या फिर दोनों में से कोई भी अपने क्षेत्र में सत्ता का दूसरा केंद्र नहीं देखना चाहता? या फिर बात कुछ और ही है?

बहरहाल, अब नए सिरे से निकायों के चुनाव की तैयारियां हो रही हैं। सभी क्षेत्रों में विधायक तो कायम हैं ही, निकाय प्रमुख का चुनाव लड़ने के आकांक्षी वे सभी चेहरे भी लग रहे हैं जिन्होंने हाल ही में कार्यकाल पूरा किया है। देखना दिलचस्प होगा कि नए निकाय प्रमुखों और माननीयों के बीच तालमेल के हालात रहेंगे या नहीं?