नगर विधायक के दावानुसार ठेकेदार को केवल 13.63 लाख रुपए का ही हुआ भुगतान
एम हसीन
रुड़की। रपटा निर्माण में मामले में विधायक द्वारा स्पष्टीकरण दे दिए जाने के बाद अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या लोक निर्माण विभाग ने ठेकेदार को जी एस टी भुगतान नहीं किया? किया तो क्या जी एस टी की राशि विधायक द्वारा बताई गई राशि में ही शामिल है या फिर वह राशि अलग है? अलग है तो भुगतान अधिक राशि का किया गया हुआ होना चाहिए। फिर विधायक ने भुगतान की राशि का पूर्ण आंकड़ा क्यों नहीं बताया?
गौरतलब है कि रपटा निर्माण के मामले में सूचना का अधिकार के तहत लोक निर्माण विभाग द्वारा प्रदान की गई जानकारी के आधार पर पूर्व मेयर गौरव गोयल द्वारा नगर विधायक प्रदीप बत्रा पर तमाम आरोप लगाए गए थे। इन्हीं में एक आरोप यह भी था कि रपटा निर्माण के नाम पर 93 लाख रुपए का घपला किया गया। मेयर का आरोप है कि इसे लेकर विधायक ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी। बहरहाल, अब इस मामले में गौरव गोयल ने कोतवाली पुलिस को तहरीर दे दी है और पुलिस ही यह तय करेगी कि इस आरोप की सच्चाई क्या है। इस बीच विधायक ने रपटा निर्माण की लागत को लेकर एक विज्ञप्ति जारी की जिसमें विस्तार से बताया गया कि रपटे की कुल अनुमानित लागत 93.45 लाख रुपए थी, जिसके सापेक्ष 57.37 लाख रूपये स्वीकृत हुए थे और निविदाओं में हुई ठेकेदारों की प्रतिस्पर्धा के परिणाम स्वरूप ठेकेदार से कुल 35.92 लाख रुपए का अनुबंध हुआ था। इनमें चूंकि काम पूरा नहीं हुआ है इसलिए बरसात से पूर्व ठेकेदार को कुल 13.63 लाख रुपए का भुगतान किया गया। उपरोक्त विज्ञप्ति को प्राप्त करने के बाद इस संवाददाता ने गौरव गोयल से उन्हें विभाग द्वारा “सूचना का अधिकार” अधिनियम के अंतर्गत प्रदान की गई जानकारी के छाया प्रति मांगी। गौरव गोयल द्वारा प्रदान की गई छायाप्रतियों का मिलान इस संवाददाता ने जब विधायक की विज्ञप्ति से किया तो कुछ भी समान नहीं पाया। दरअसल, विभाग द्वारा पूर्व मेयर को प्रदान की गई जानकारी से यह स्पष्ट नहीं होता कि ठेकेदार को कितना भुगतान किया गया, किया गया या नहीं, लेकिन यह स्पष्ट होता है कि 93.45 लाख रुपए के भुगतान की संस्तुति अधिशासी अभियंता सहित निचले स्तर के सभी अभियंताओं द्वारा की गई है। इससे या स्पष्ट है कि एस्टीमेट और राशि स्वीकृति और एग्रीमेंट तक के जो आंकड़े विधायक द्वारा अपनी विज्ञप्ति में दिए गए हैं वे सभी अलग हैं और उनका कोई संबंध उस जानकारी से नहीं है जो गौरव गोयल को विभाग द्वारा प्रदान की गई है।
अपनी जानकारी को पुख्ता करने के लिए यह संवाददाता लोक निर्माण विभाग पहुंचा जहां अधिशासी अभियंता और सहायक अभियंता उपलब्ध नहीं थे। जिन निचले स्तर के अभियंताओं से इस संवाददाता की बात हुई उन्होंने दावा कि ठेकेदार को अभी पार्ट पेमेंट किया गया है। उन्होंने विधायक द्वारा बताई गई भुगतान की राशि को सही बताया लेकिन यह भी कहा कि उसमें नियमानुसार 28 प्रतिशत जी एस टी का भुगतान भी शामिल है। लेकिन उन्होंने यह भी नहीं बताया कि भुगतान 28 प्रतिशत जी एस टी के साथ किया गया तो उसका आंकड़ा क्या था? फिर भी अगर अभियंताओं की बात पर विश्वास किया जाए कि 13.63 लाख रुपए की राशि पर 28 प्रतिशत जी एस टी का भी भुगतान किया गया तो आंकड़ा 3.64 लाख बैठता है और अगर उसे 13.69 में जोड़कर आंकड़ा निकाला जाए तो कुल राशि 17.27 लाख बैठती है। तक क्या भुगतान 17.27 लाख रुपए का किया गया?
अगर विभाग ने ठेकेदार को 13.63 लाख का भुगतान किया तो इसका मतलब यह है कि उसे जी एस टी की राशि का भुगतान नहीं किया गया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या मामले में जी एस टी का भी कुछ घालमेल है? जाहिर है कि इस मामले में खुद विधायक प्रदीप बत्रा ने ही पहल करके गहन जांच की गुंजाइश पैदा कर दी है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या जांच हो पाएगी? यहां यह ध्यान रखने वाली बात है कि ऐसा ही एक रपटा लोक निर्माण विभाग के इन्हीं अभियंताओं ने पिछले साल सोलानी नदी पर बनाया था जिसकी लगभग राशि आज अभियंताओं ने करीब 45 लाख बताई। तब यह रपटा पहली ही बारिश में बह गया था और इसकी बाबत अभियंताओं का यह तर्क है कि पिछले साल आपदा आई थी। लेकिन इस साल बनाए गए रपटे को लेकर भी यही दिखाई दे रहा है कि पहली ही बारिश के बाद अगर गौरव गोयल ने मौके पर जाकर रपटे का मामला न उठाया होता तो यह कहानी भी खत्म हो गई होती। साफ दिख रहा है कि सूचना का अधिकार के तहत 93.45 लाख की राशि के भुगतान की संस्तुति वाला दस्तावेज जारी करने के बाद विभाग अब आंकड़ों की लीपापोती खुद नहीं कर पा रहा है। इसलिए अधिकारी मीडिया को फेस करने और अपनी जान बचाने के लिए विधायक को आगे कर रहे हैं।