अब जन विश्वास को बनाए रखने की कोशिश में पूर्व भाजपा प्रत्याशी
एम हसीन
मंगलौर। उप चुनाव का परिणाम आने के बाद पराजित हुए भाजपा प्रत्याशी करतार सिंह भड़ाना अंगड़ाई लेकर थकान दूर कर चुके हैं और जनता के बीच उतर भी चुके हैं। बहुत संभव है कि अगर वे जीत गए होते तो मतदाता उनके द्वारे जा रहे होते लेकिन अब तो वे खुद ही लोगों के द्वारे जा रहे हैं। बहाना मतदाता का आभार प्रकट करना है लेकिन उद्देश्य अपनी धमक को मंगलौर क्षेत्र में कायम रखना है। इस बीच मंगलौर नगर की राजनीति में गहरे मंथन के हालात हैं। उप चुनाव परिणाम के बाद स्थानीय राजनीतिक चेहरे अपनी आवश्यकताओं के मद्दे नजर नए समीकरणों पर न केवल गौर कर रहे हैं बल्कि नई संभावनाएं भी तलाश कर रहे हैं। इसका एक कारण आसन्न नगर निकाय चुनाव भी है और गौर इस बात पर है कि जिस प्रकार विधान सभा चुनाव में “क़ाज़ी बनाम हाजी” की अवधारणा पर खरोचें आई हैं उसी प्रकार क्या निकाय में भी “हाजी (हाजी इस्लाम) बनाम डॉक्टर (डॉक्टर शमशाद)” अवधारणा में भी कुछ बदलाव आएगा? विचार इस बात पर किया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में नई ताकत से लैस होकर भाजपा या कहें अवतार सिंह भड़ाना निकाय चुनाव में उपरोक्त अवधारणा के तहत औपचारिक शिरकत करेंगे या नगर की राजनीति में किसी बड़े बदलाव के लिए काम करेंगे? जाहिर है कि हालात पर उनकी गहरी नजर है।
गौरतलब है कि मंगलौर में उप चुनाव का परिणाम अभी 13 जुलाई को, अर्थात महज एक सप्ताह पूर्व आया। इस्के बावजूद उप चुनाव में पराजित हुए करतार सिंह भड़ाना ने बीते सप्ताह के दो दिन अपने क्षेत्र के मतदाताओं के बीच गुजारे। उन्होंने उल्हेड़ा, नारसन, खेड़ा आदि कई गांवों में जाकर सामान्य जन से भेंट की और चुनाव में जन समर्थन देने के लिए उनका आभार प्रकट किया। उन्होंने लोगों को भरोसा दिलाया कि वे चुनाव में किए अपने वादों पर कायम रहेंगे और सरकार द्वारा संचालित सभी प्रकार की योजनाओं का लाभ लोगों को दिलवाएंगे। उन्होंने कहा कि जो वादे उन्होंने अपने स्तर पर किए थे उन्हें भी वे हर हाल में पूरा करेंगे। साथ ही उन्होंने लोगों में विश्वास जगाया कि उन्हें निश्चिंत होकर रहना है क्योंकि किसी के साथ कोई अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने उल्हेडा गांव की स्थानीय समस्याओं के निवारण के लिए अपने व्यक्तिगत खाते से 5 लाख रुपए की राशि भी जारी की। भड़ाना की इस पहल को क्षेत्र के मतदाता ने तो स्वाभाविक रूप से पसंद किया ही है, यहां की भविष्य की राजनीति को भी समय रहते आकार मिलना शुरू हो गया है। साफ दिख रहा है कि 2027 तक यहां भड़ाना की चुनौती न केवल कायम रहने वाली है बल्कि इससे पहले के हर चुनाव में भाजपा की मजबूत उपस्थिति दिखाई देने वाली है।