दुख व गम का पैकर बन जाता है हर अकीदतमंद
एम हसीन
मंगलौर। मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है, जितना यह सच है उतना ही सच यह भी है कि यह शोक का, गम का महीना है। इसी से उस जंग की यादें जुड़ी हुई हैं जिसमें इस्लाम के आखरी पैगंबर हजरत मुहम्मद के नवासे और इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली के पुत्र हजरत हजरत हुसैन ने इस्लाम पर अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया था, कुर्बान कर दिया था। इस जंग, जिसे इतिहास ने “कर्बला” की जंग के तौर पर याद रखा, में हजरत हुसैन और उनके कुनबे का कत्ल करके, उनके तमाम अनुयायियों का कत्ल करके यजीद खलीफा बना था। इसी कारण किसी शायर ने कहा है कि “कत्ल ए हुसैन असल में मर्ग ए यजीद है। इस्लाम जिंदा होता है है करबला के बाद।” मुहर्रम इसी दर्दनाक वाकिए की याद में मनाया जाता है। इस पूरे महीने में करबला की हर घटना को याद किया जाता है, उसे याद करके अफसोस और गम का इजहार किया जाता है। इसके तहत मजलिसों का आयोजन किया जाता है, जिनमें उलेमा ब्यान करते हैं, तकरीर करते हैं, शायर अपना नतिया कलाम पेश करते हैं, नोहा खवानी होती है, जिसके तहत शायरों के कलाम को अच्छा गला और अकीदत रखने वाले लोग गाकर सुनाते हैं। ताजिए बनाए और निकाले जाते हैं, अजादरी व अलम के जुलूस निकाले जाते हैं और अकीदतमंद हजरत हुसैन के कुनबे की शहादत पर गम व गुस्से का इजहार करते हैं।
मोटे तौर पर कर्बला के इस वाकिए से इस्लाम से ताल्लुक रखने वाला हर व्यक्ति कहीं न कहीं जुड़ता है और दुख का अहसास करता है। लेकिन इसके प्रति ज्यादा अकीदत शिया समुदाय में देखने में आती है। उत्तराखंड में शिया समुदाय की सबसे ज्यादा आबादी मंगलौर कस्बे और उसके आस पास के देहात में है इसलिए मुहर्रम के दौरान मंगलौर का माहौल अलग ही होता है। यहां पहली मुहर्रम के साथ ही हर शिया अकीदतमंत गम व शोक में डूब जाता है। उपरोक्त तमाम चीजें यहां कम से कम दस दिन तो चलती ही हैं क्योंकि मुहर्रम की 10 तारीख को दफन की तारीख के तौर याद किया जाता है। इस दिन ताजिए निकाल कर उन्हें दफन किया जाता है। वैसे शिया समुदाय में शोक का यह माहौल पूरे मुहर्रम माह बना रहता है और अगले महीने यानि रबी उल अव्वल की 10 तारीख तक भी यह समुदाय शोक में रहता है। रबी उल अव्वल की 10 तारीख को चेहलुम मनाया जाता है। तब जाकर शिया समुदाय में खुशी के किसी मौके का आयोजन किया जाता है। आज 10 मुहर्रम है और इसके लिए अजादरी के जुलूस कल से ही निकाले जा रहे हैं।