निकाय चुनाव में उमेश कुमार की क्या रहेगी भूमिका?
एम हसीन
लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद से ही खानपुर विधायक उमेश कुमार उसी राजनीतिक पेट्रन पर लौटे दिखाई दे रहे हैं जो वे पिछले एक साल में स्थापित कर चुके हैं। अर्थात, जनता के साथ नजदीकियां बढ़ाना या विकास योजनाओं के लिए चिट्ठी पत्री करते रहना। राजनीति रूप से वे कुछ करते नजर नहीं आ रहे हैं; हालांकि निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़कर 92 हजार वोट और तीसरा स्थान सुनिश्चित करने वाले विधायक से इससे कुछ ज्यादा अपेक्षित होता है। कम से कम यह तो अपेक्षित होता ही है कि उनका एक मजबूत ग्रुप पूरे संसदीय क्षेत्र में दिखाई दे। लेकिन ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है। मसलन, लोकसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़कर मंगलौर विधान सभा क्षेत्र में 4 हजार 816 वोट लेने वाले खानपुर विधायक उमेश कुमार ने हाल के मंगलौर उप चुनाव में कोई रुचि नहीं दिखाई। उन्होंने अपने समर्थक मतदाताओं को जहां चाहे वोट करने की छूट प्रदान कर दी। ऐसा करने में उन्हें इसी कोई समस्या नहीं आई क्योंकि मंगलौर में उनका अपना चेहरा चुनाव लड़ा था। अन्य शब्दों में कहें तो उन्होंने लोकसभा चुनाव में मंगलौर में कोई उल्लेखनीय चेहरा अपना प्रतिनिधि बनाया ही नहीं था, जो उप चुनाव में मंगलौर में कोई अपने लिए कोई भूमिका निर्धारित करता। सवाल यह है कि उन्हें लेकर क्या यही स्थिति निकाय चुनाव में रहने वाली है?
उमेश कुमार एक काम करने वाले विधायक हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं, लेकिन यह भी साबित होता जा रहा है कि वे महज विधायक हैं; राजनीति वे नहीं करते। इससे आगे यह धारणा बनती है कि उन्होंने विधानसभा चुनाव भी अपने आप नहीं लड़ा था और लोक सभा चुनाव भी नहीं। कोई है जो उन्हें चुनाव लड़ने की टास्क देता है और वे यह टास्क एक्जीक्यूट करते हैं। जीतते हैं तो विधायक बनते हैं और हारते हैं तो पल्ला झाड़ कर अलग हो जाते हैं। इससे अगली धारणा यह बनती है कि विधानसभा या लोकसभा चुनाव में जो वोट उन्हें मिले वो भी उनके नहीं थे। जाहिर है कि अगर यह धारणा बलवती हुई तो उनके लिए तो 2027 में खानपुर में ही दिक्कत हो जाएगी।
उनकी इस समस्या को लोकसभा चुनाव में उन्हें खानपुर विधानसभा सीट पर ही मिले जनसमर्थन में समझा जा सकता है। उन्हें 2022 में खानपुर के मतदाता ने 40 हजार से अधिक वोट दिए थे जबकि महज दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें 16 हजार वोटों पर लाकर रोक दिया। यह स्थिति उस क्षेत्र की रही जिसमें उन्होंने बेतहाशा विकास कार्य कराए। जाहिर है कि वे अगर यहां विकास कार्यों के साथ साथ राजनीति भी कर रहे होते तो कम से कम अपने निर्वाचन क्षेत्र में तो उनका ग्राफ 2022 के स्तर पर ठहरा रह सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब मसला निकाय चुनाव का है। उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र के भीतर ही दो नगर पंचायतों, लंढौरा व ढढेरा, में कोई स्पष्ट, दिखाई देने वाला स्टैंड लेना होगा और रुड़की नगर निगम चुनाव में भी ऐसा ही करना होगा। ध्यान रहे कि रुड़की नगर निगम का एक भाग खानपुर विधानसभा क्षेत्र में जाता है और इसके कुछ हिस्से कलियर व झबरेड़ा विधानसभा क्षेत्रों में भी जाते हैं। लोकसभा चुनाव में उमेश कुमार को रुड़की विधानसभा क्षेत्र में ही 5 हजार से अधिक वोट मिले थे जबकि झबरेड़ा में 12 हजार से अधिक और कलियर में 8 हजार के करीब वोट मिले थे। यूं रुड़की नगर निगम चुनाव में भी उनसे मजबूत राजनीति किए जाने की अपेक्षा की जाएगी। उम्मीद की जाएगी कि वे किसी मेयर प्रत्याशी को या खुद चुनाव लड़ाएं या किसी का खुला समर्थन करें। अपने पार्षद लड़ाएं या लाइक माइंडेड प्रत्याशियों को समर्थन दें। तब यह तय होगा कि जो वोट उन्हें लोकसभा चुनाव में मिला वह उनका अपना था और उनके साथ है। तभी उनका ऐसा ग्रुप बना दिखेगा जो 2027 में उनके विधायक होने को राजनीतिक पहचान देगा। मंगलौर में खामोश रहकर उन्होंने अपने राजनीतिक होने का इशारा नहीं दिया है।