भाजपा-कांग्रेस का भीतरी संघर्ष लिखता रहा है प्रदीप बत्रा बनाम यशपाल राणा का दस्तावेज

एम हसीन

रुड़की। हाल-फिलहाल तक ऐसा नजर आ रहा है कि भाजपा की ओर से प्रदीप बत्रा 2027 का विधानसभा चेहरा होंगे और, चाहे किसी भी सूरत में हों, एक बार फिर उनके मुक़ाबिल पूर्व मेयर यशपाल राणा ही होंगे। ऐसा नगर की सामाजिक संस्कृति के कारण होता दिखाई दे रहा है जो कि नगर की राजनीतिक संस्कृति का निर्माण करती रही है। दरअसल, यहां की सामाजिक संस्कृति वर्गवाद पर आधारित है और वर्गवाद का प्रभाव इतना अधिक है कि राजनीतिक दलों, सम्प्रदायों और जातियों का प्रभाव तो खत्म हो ही जाता है अगड़ा-पिछड़ा का प्रभाव भी खत्म हो जाता है। उपरोक्त संस्कृति का ही परिणाम है कि भाजपा विधायक होने के बावजूद प्रदीप बत्रा मुस्लिम वोटों के एक हिस्से पर भी इतना प्रभाव रखते हैं कि वे चाहें तो यह वोट सीधे भाजपा को चला जाए, वे चाहें तो यह वोट कांग्रेस को चला जाए और वे चाहें तो यह वोट किसी निर्दलीय को भी चला जाए। और तो और वे चाहें तो यह भी हो सकता है कि यह वोट मतदान केंद्रों तक वोट डालने ही न जाए! उनका यही प्रभाव कांग्रेस समर्थक माने जाने वाले एक हिस्से पर भी दिखाई देता है। बत्रा चाहें तो कांग्रेस समर्थक मतदाताओं के हिस्से का समर्थन सीधे अपने लिए हासिल कर लें या वे चाहें तो यह समर्थन किसी निर्दलीय को दिलवा दें। इसी क्रम की यह भी हकीकत है कि भाजपा समर्थक वोटों में एक भाग ऐसा भी है जिसे प्रदीप बत्रा अपनी पूरी ताकत लगा कर भी खुद अपने लिए ही हासिल नहीं कर सकते। यूं स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि प्रदीप बत्रा को भाजपाई-कांग्रेसी, पंडित-मुल्ला, बनिया-पंजाबी-राजपूत-सैनी-पाल-कश्यप-धीमान-जाट-गुर्जर-बाल्मीकि-जाटव-खटीक-पासी, शिया-सुन्नी-क़ाज़ी-पठान-सैयद-मुगल-तेली-झोझा-जुलाहा-कसाई, अगड़ा-पिछड़ा, दलित-ब्राह्मण आदि सभी वर्गों का समर्थन मिलता है और इन सभी वर्गों का समर्थन उनके खिलाफ भी जाता है। जो वोट उनके खिलाफ जाता है उस पर 2013 से यशपाल राणा का कब्जा है।

नगर के उपरोक्त दोनों सियासतदानों की स्थिति बेवजह नहीं है। वजह यह है कि एक प्रदीप बत्रा जहां विधानसभा का चुनाव खुद लड़ते आ रहे हैं वहीं वे निकाय का चुनाव भी किसी को अपनी छत्रछाया में ही लड़ाना और नगर प्रमुख बनाना चाहते हैं। बत्रा के महत्वकांक्षा को यशपाल राणा दोनों स्तरों पर सीधे चुनौती देते रहे हैं। मसलन, प्रदीप बत्रा ने 2013 में राम अग्रवाल को अपने निकाय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ाया तो यशपाल राणा चैलेंजर के रूप में सामने आए। उन्होंने राम अग्रवाल को चुनाव हराया और मेयर बनकर प्रदीप बत्रा की हैसियत के लिए चुनौती बने। 2019 में प्रदीप बत्रा ने गौरव गोयल को निर्दलीय चुनाव लड़ाया तो यशपाल राणा ने अपने भाई रेशु राणा को प्रत्याशी बनाकर बत्रा-गोयल युति को चुनौती दी; हालांकि इस बार बत्रा-गोयल बाजी मारी लेकिन 2022 में यशपाल राणा कांग्रेस का टिकट लेकर सीधे बत्रा के लिए ही चैलेंजर बन गए। बेशक वे 2 हजार मतों के अंतर से चुनाव हार गए लेकिन इससे राजनीतिक तस्वीर नहीं बदली।

2025 के निकाय चुनाव में रुड़की मेयर सीट के लिए बेशक ललित मोहन अग्रवाल की पत्नी अनीता ललित अग्रवाल भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ी और मेयर भी बनी। यह एक ऐसा अप्रत्याशित परिणाम रहा जिसने एक बारगी बत्रा और राणा दोनों को एक साथ निराश किया। लेकिन राजनीतिक तस्वीर फिर भी बदलती नजर नहीं आ रही है। कारण यह है कि मेयर बनने के बाद ललित मोहन अग्रवाल जहां निगम चलाने की कोशिश में जुटे हैं, वहीं 2027 के मद्देनजर प्रदीप बत्रा के सामने एक बार फिर अगर कोई चैलेंजर के रूप में खड़ा दिखाई दे रहा है तो वे यशपाल राणा ही हैं। सच बात तो यह है कि 2025 के निकाय चुनाव में भी असली संघर्ष प्रदीप बत्रा और यशपाल राणा के ही बीच हो रहा था। इस चुनाव में बत्रा का हाथ कांग्रेस प्रत्याशी सचिन गुप्ता की पीठ पर था जबकि यशपाल राणा खुद मैदान में थे। यह अलग बात है कि इन दोनों के संघर्ष में इस बार भाजपा ने बाजी मार ली। लेकिन इससे नगर की राजनीतिक परिस्थिति नहीं बदली है। हालांकि यशपाल राणा खामोश हैं लेकिन प्रदीप बत्रा के सामने आज भी अगर कोई चैलेंजर खड़ा दिखाई दे रहा है तो वे यशपाल राणा ही हैं।

इस बिंदु पर आकर नगर की राजनीति का सामाजिक पक्ष महत्वपूर्ण हो जाता है। दरअसल, नगर का समाज भाजपा-कांग्रेस की राजनीति को बनिया-पंजाबी से बाहर जाते हुए नहीं देखना चाहता। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि 2025 के निकाय चुनाव परिणाम के पश्चात कोई बनिया-पंजाबी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना तो कांग्रेस का टिकट मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। सब जानते हैं कि कांग्रेस ने अगर यशपाल राणा को टिकट न दिया तो वे निर्दलीय मैदान में आयेंगे और चूंकि वे ही प्रदीप बत्रा के मेन चैलेंजर हैं इसलिए वे निर्दलीय के रूप में भी मुख्य मुकाबले में आ जायेंगे और बत्रा विरोधी वोट पर कब्जा कर लेंगे। ऐसी परिस्थिति में कांग्रेस प्रत्याशी की लुटिया डूब जाएगी। कहने का मतलब यह है कि कोई कुछ भी करे, कम से कम 2027 के चुनाव में राजनीति प्रदीप बत्रा बनाम यशपाल राणा ही होने वाली है।