यशपाल राणा पहले ही कर चुके हैं चुनाव लड़ने की घोषणा!

एम हसीन

रुड़की। नगर की जनता को प्रणय प्रताप सिंह का धन्यवाद करना चाहिए कि वे एक रक्तदान शिविर लेकर मंजर ए आम पर आए। प्रणय प्रताप सिंह कांग्रेसी हैं। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस नगर में सक्रिय नहीं है। महानगर कांग्रेस अध्यक्ष एडवोकेट राजेंद्र चौधरी की अगुवाई में कांग्रेस खूब कार्यक्रम कर रही है। लेकिन बात कुछ बन नहीं रही है। पार्टी की राजनीति को धार नहीं मिल रही है। पिछले निकाय चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले सचिन गुप्ता चुनाव के बाद से ही धंधे में लगे हुए हैं। कांग्रेस के बागी के तौर चुनाव लड़े यशपाल राणा भी खामोश हैं। भाजपा में ललित मोहन अग्रवाल मेयर बन चुके हैं और विधानसभा की उनकी कोई महत्वकांक्षा नहीं लगती। मयंक गुप्ता निकाय चुनाव में ही पार्टी टिकट की दौड़ से बाहर हो गए थे। चेरब जैन थोड़ा उठा-पटक कर रहे हैं लेकिन जानते वे भी हैं कि विधानसभा के लिए उनका कैंडिडेचर प्रभावी नहीं है। और कोई चेहरा कहीं दिख नहीं रहा। ऐसे में सवाल उठता है कि 2027 के लिए नगर की राजनीति में तीन बार के विधायक प्रदीप बत्रा नहीं तो कौन? और प्रदीप बत्रा क्या हैं? वे कितना समर्पित हैं? कितना जनहित अभिलाषी हैं? कितना कल्पनाशील हैं? कितना कर्मठ हैं? निम्न प्रसंग से इसे समझिए।

हाल ही में एक खबरिया चैनल को इंटरव्यू देते हुए उन्होंने नालों की सफाई को “विकास” की संज्ञा दी है। उन्होंने पीरबाबा कॉलोनी में बनाए जा रहे पैदल पुल को और सड़कों के गढ्ढों के भरे जाने को अपनी उपलब्धि बताया है। इनमें नालों की सफाई से विधायक का कोई संबंध नहीं है, ऐसा मेरा विश्वास है। यह नगर निगम द्वारा किया जाने वाला काम है और नगर निगम ही इसे कर रहा है यह मेरी जानकारी है। बहरहाल, प्रदीप बत्रा “विकास” की इन उपलब्धियों पर ही 2027 का चुनाव लड़ने का सपना देख रहे हैं। वे यह सपना देख सकते हैं, यह उनका अधिकार है और ऐसा इसलिए है क्योंकि वे देख रहे हैं कि उनके लिए रुड़की भाजपा में या रुड़की नगर में कोई राजनीतिक चुनौती नहीं है। 2022 में तो फिर भी सुनील साहनी और नितिन शर्मा पार्टी टिकट पर दावा करते दिख रहे थे, इस बार तो कोई दावा भी नहीं कर रहा है। शायद इसलिए कि पिछली बार सुनील साहनी और नितिन शर्मा भी गीला पटाखा ही साबित हुए थे। अलबत्ता 2022 में उनके सामने चुनाव लड़े यशपाल राणा ने इस बार भी चुनाव लड़ने की घोषणा पहले ही की हुई है, यह अलग बात है। यह भी अलग बात है कि पिछली बार भी यशपाल राणा ने प्रदीप बत्रा को बस हरा ही दिया था। तब प्रदीप बत्रा रुड़की की संस्कृति के कारण जीत पाए थे। वही संस्कृति जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है। अर्थात, प्रदीप बत्रा के लिए कोई चुनौती नहीं।