स्टेडियम को स्टेडियम का रूप देने के लिए राज्य सरकार या हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण को प्रस्ताव नहीं देते प्रदीप बत्रा

एम हसीन

रुड़की। नगर विधायक प्रदीप बत्रा का नेहरू स्टेडियम प्रेम इन दिनों सर चढ़कर बोल रहा है। पिछला निकाय चुनाव सम्पन्न होने के बाद महापौर अनीता ललित अग्रवाल की अगुवाई में गठित हुए नगर निगम बोर्ड की पहली ही बैठक में उन्होंने नेहरू स्टेडियम के सौंदर्यीकरण का प्रस्ताव पेश किया था। उसके बाद से ही वे लगातार नेहरू स्टेडियम के सौंदर्यीकरण का उल्लेख करते आ रहे हैं। हाल ही में उन्होंने चंद्रपुरी में जब सड़क पर लिपाई, जिसे लोक निर्माण विभाग रुड़की के अधिशासी अभियंता विपुल सैनी पैच वर्क मानते हैं, के काम का फीता काटकर उद्घाटन किया तब भी उन्होंने नेहरू स्टेडियम के सौंदर्यीकरण का जिक्र किया था। सवाल यह है कि नेहरू स्टेडियम के सौंदर्यीकरण में प्रदीप बत्रा का बतौर विधायक पिछले 13 सालों में और बतौर नगर पालिका अध्यक्ष 2008-2013 के बीच क्या योगदान रहा है? अगर अभी तक उन्होंने इसमें कोई योगदान नहीं दिया तो अब नेहरू स्टेडियम एकाएक उनकी प्राथमिकता पर कैसे आ गया है? दूसरी बात यह है कि वे स्टेडियम के सौंदर्यीकरण का जिक्र क्यों कर रहे हैं और प्रस्ताव नगर निगम में क्यों पेश कर रहे हैं? स्टेडियम को स्टेडियम का रूप देने के लिए प्रस्ताव राज्य सरकार को क्यों नहीं दे रहे हैं? क्या उन्हें पता नहीं कि पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्ववाली राज्य की सरकार खेल गतिविधियों को पूर्णतः समर्पित है? वे अपना प्रस्ताव हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण को क्यों पेश नहीं कर रहे हैं? क्या उन्हें पता नहीं है कि प्राधिकरण ने हरिद्वार में भल्ला कॉलेज मैदान को मल्टीपल स्टेडियम के रूप में विकसित कर दिया है और प्राधिकरण रुड़की में तो नजूल भूमि को फ्री-होल्ड करने और बहु-मंजिला भवनों के नक्शे पास करने के काम करके रुड़की से ही अरबों कमा रहा है जबकि रुड़की में प्राधिकरण का खर्च कुछ भी नहीं हो रहा है? सवाल यह है कि प्रदीप बत्रा नेहरू स्टेडियम को लेकर जबानी जमा खर्च क्यों कर रहे हैं? वे ठोस प्रस्ताव क्यों नहीं दे रहे हैं?

जहां तक सवाल नेहरू स्टेडियम का है तो यह उपलब्धि रुड़की के जन-प्रतिनिधियों ने तब हासिल की थी जब स्टेडियम जैसी चीज के विषय में बड़े नगरों में भी नहीं सोचा जाता था। बड़े नगरों में भी तब नुमाइश कैंप तो बनाए जाते थे, मेला मैदान भी बनाए जाते थे, नौचंदी मैदान भी बनाए जाते थे, लेकिन स्टेडियम नहीं बनाए जाते थे। तब रुड़की में नेहरू स्टेडियम बनाया गया था। कहा जा सकता है कि तब नगर के जन-प्रतिनिधि सेंट गैब्रियल के पास आउट नहीं होते थे बल्कि वास्तविक रूप से शिक्षित होते थे। उन्हीं के क्रिया-कलापों और चरित्रों के कारण तब रुड़की आदर्श नगरी बना था। तब जन प्रतिनिधि अपने व्यक्तिगत स्वामित्व वाले गगनचुंबी भवन नहीं बनाते थे बल्कि सार्वजनिक हित में काम करते हुए नेहरू स्टेडियम बनाते थे और गांधी वाटिका, जिसे बाद में जन-प्रतिनिधियों ने घेरघार के कमर्शियल कॉम्प्लेक्स बना दिया है, बनाते थे।

अब 18 साल से रुड़की नगर पर प्रदीप बत्रा का राज है जो “मॉडल सिटी” का, “ग्रीन सिटी-क्लीन सिटी” का खूब राग अलापते हैं और सड़कों पर होने वाले जिस काम को सरकारी विभाग भी “पैच वर्क” बताते हैं उसे प्रदीप बत्रा “विकास” की संज्ञा देते हैं। वे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मित्र कहलाते हैं लेकिन धामी की विकासवादी सोच से तालमेल नहीं बैठाते। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी की राजनीति करते हैं, मोदी की पार्टी के टिकट पर ही चुनाव जीतते हैं। लेकिन उनकी विकासवादी सोच का अनुगमन नहीं करते। बस जबानी जमा-खर्च करते हैं।