भाजपा में एस पी सिंह इंजीनियर के लिए संभावनाएं!

एम हसीन

रुड़की। एस पी सिंह इंजीनियर हरिद्वार के उन नेताओं में एक हैं जिन्होंने लोकसभा से लेकर विधानसभा तक कई चुनाव लड़े हैं, जो हरिद्वार जनपद में हरीश रावत जैसे दिग्गज की नींव के पत्थर बने, उन्हें खाद पानी दी और फिर उन्हीं के कहर का शिकार भी हुए। एस पी सिंह इंजीनियर जो आज के दौर में भी संभवतः देश के सबसे अधिक शिक्षित, योग्य, कर्मठ, कर्मशील और व्यवसायिक जीवन में पूर्णतः सफल दलित सियासतदानों में एक हैं, इन दिनों भाजपा की राजनीति कर रहे हैं। वे 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा में शामिल हुए थे और तभी से ख़ामोशी के साथ अपने सामाजिक-राजनीतिक कर्म को कर रहे हैं। सवाल यह है कि भाजपा की मौजूदा केंद्र व राज्य सत्ता में उनके लिए कहां स्थान है? क्या वे किसी सरकारी पद पर सुशोभित किए जाएंगे या फिर उनके लिए किसी चुनाव में टिकट के तौर पर कोई राजनीतिक रास्ता ही खुलेगा? साफ शब्दों में पूछा जाए तो भाजपा में एस पी सिंह इंजीनियर का भविष्य क्या है?

भारत सरकार के एक उपक्रम में बड़े पद पर काम करते आ रहे एस पी सिंह इंजीनियर 1999 के लोकसभा चुनाव में राजनीति में आए थे। उस समय तक उत्तराखंड का गठन नहीं हुआ था और लोकसभा चुनाव क्षेत्रों का पुनर्गठन भी नहीं हुआ था। यह वह दौर था जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान ताज़ा-ताज़ा ही संभाली थी और सोनिया गांधी की पहल पर ही एस पी सिंह को हरिद्वार (तब सीट आरक्षित थी) सीट पर टिकट दिया गया था। उस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा-सपा-बसपा के त्रिकोण में कांग्रेस कहीं टिक नहीं पा रही थी। लेकिन एस पी सिंह ने अपनी मेहनत से यहां कांग्रेस को पुनर्जीवित किया था। वे जीते नहीं थे लेकिन राजनीतिक रूप से हारे भी नहीं थे। अगले ही वर्ष उत्तराखंड का गठन हो जाने के कारण हरिद्वार जिले की कांग्रेसी राजनीति में एस पी सिंह की अहम भूमिका हो गई थी। उन्हें 2002 के पहले ही विधानसभा चुनाव में लंढौरा विधानसभा सीट पर टिकट मिल गया था। लेकिन जिले में न कांग्रेस जीती थी और न ही एस पी सिंह। फिर भी चूंकि सरकार कांग्रेस की बनी थी और नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने थे इसलिए हरिद्वार जिले के विकास का ढांचा खड़ा करने में सरकार ने एस पी सिंह का सहयोग लिया था, उनकी योग्यता का लाभ उठाया था। लेकिन उस समय एस पी सिंह हरिद्वार जिले में हरीश रावत की जड़ें जमा रहे थे। वे 2002 का विधानसभा चुनाव लड़कर राज्य की राजनीति में प्रवेश कर चुके थे इसलिए 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिला था और 2009 में उन्होंने यहां हरीश रावत को चुनाव लड़ाया था, उन्हें एम पी बनाया था, फिर केंद्र में मंत्री बनाया था, फिर राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था और यूं अपने लिए राजनीतिक कब्र खोदी थी। हरीश रावत ने उन्हें 2012 में विधानसभा टिकट नहीं दिया था। 2017 में उन्होंने पार्टी में हरीश रावत के प्रभाव को चुनौती देते हुए अपने दम पर टिकट लिया था तो हरीश रावत ने उनके सामने निर्दलीय लड़कर उन्हें हरा दिया था और 2022 में एक बार फिर उनका टिकट कटा था। 2024 में वे भाजपा में आ गए थे। एस पी सिंह राजनीति करना जानते हैं यह एक हकीकत है। दूसरी हकीकत यह है कि वे सक्षम हैं। इसके बावजूद यह सवाल कायम है कि भाजपा में उनके लिए कहां स्थान है? ध्यान रहे कि ज्वालापुर क्षेत्र उनकी कर्म स्थली है और यहां पिछली बार कांग्रेस के रवि बहादुर विजयी हुए थे। अर्थात यहां भाजपा में उनके लिए संभावना बन सकती है।