यातयात व्यवस्था ढहढहा रही है प्रदीप बत्रा के “मॉडल टाउन” में

एम हसीन

रुड़की। चूंकि रुड़की में कोई नाइट लाइफ नहीं है, इसलिए रात 10 बजे के बाद अगर कोई बाहरी व्यक्ति इस शहर में आए तो उसे यह शहर बहुत साफ-सुथरा, अतिक्रमण मुक्त, किसी हद तक मॉडल टाउन लग सकता है। लेकिन वहीं व्यक्ति अगर सुबह 8 बजे के बाद शहर में प्रवेश करे तो उसे हालात का सही अंदाज होगा। और अगर वह व्यक्ति शाम 5 बजे के बाद शहर में प्रवेश करे तो तौबा बोल जाएगा, यहां न आने की कसम खा लेगा। तब उसे इस बात का अहसास होगा कि कथित रूप से शिक्षित बल्कि उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों का यह शहर कितना मॉडल टाउन है। मॉडल टाउन का जिक्र मैं बार-बार इसलिए कर रहा हूं क्योंकि नगर विधायक प्रदीप बत्रा इस शहर के लिए यही शब्द इस्तेमाल करते हैं और नगर की विडंबना यह है कि प्रदीप बत्रा महज एक व्यक्ति नहीं हैं, वे महज एक जन-प्रतिनिधि भी नहीं हैं, बल्कि वे अपने आपमें एक जमात हैं, अपने जैसे लोगों की। वे अपने-आप में एक संस्कृति हैं और अप-संस्कृति का एक उदाहरण हैं। ऐसा क्यों है यह मैं आगे बताऊंगा, लेकिन फिलहाल मैं बता दूं कि यहां मेरा फोकस नगर की यातायात व्यवस्था पर है; वह व्यवस्था है जो लगता नहीं कि नगर में कहीं है और इस स्थिति के लिए प्रदीप बत्रा दो कारणों से जिम्मेदार हैं। एक यह कि वे इसी व्यवस्था की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते नहीं थकते। इन्हीं हालत में वे शहर को मॉडल सिटी अर्थात आदर्श शहर बताते आ रहे हैं। दूसरे यह कि वे इस व्यवस्था को पैदा करने के जिम्मेदार हैं, इसके जन्मदाता हैं, इसके पोषक हैं। मैं उदाहरण देकर समझाता हूं।

इसे यूं समझिए कि नगर के भीतर एक दर्जन से अधिक ऐसे पॉइंट्स हैं जहां नगर के भीतरी मार्ग राजमार्ग को क्रॉस करते हैं। इन सभी क्रॉसिंग्स पर फ्लाई ओवर जैसे हल की जरूरत अरसे से महसूस की जा रही है। लेकिन अभी इस विषय में सोचा नहीं गया है। नगर के भीतर कई ऐसे स्थान हैं जहां एक तरफा यातायात व्यवस्था की जरूरत अरसे से महसूस की जा रही है लेकिन अभी तक इस विषय में नहीं सोचा गया। हर मार्ग पर अनादि काल से दोतरफा यातायात व्यवस्था चली आ रही है। कुछ पॉइंट्स को नो एंट्री जोन बनाया जरूर गया है लेकिन कहीं भी यह व्यवस्था व्यापक रूप से लागू नजर नहीं आती। नगर के दोनों सिरों पर गंग नहर पर पुल बनाकर और बाहरी यातायात के लिए रिंग रोड बनाने की जरूरत अरसे से महसूस की जा रही है, लेकिन इस विषय में अभी तक सोचा नहीं गया है। शहर के अंदर कई स्थानों पर पार्किंग बनाने की जरूरत अरसे महसूस की जा रही है लेकिन अभी तक इस विषय में भी सोचा नहीं गया। लेकिन यह सच नहीं है अर्थात ऐसा नहीं है कि नगर की यातायात व्यवस्था के विषय में सोचा नहीं गया। सोचा गया होने का प्रमाण तो यही है कि नगर निगम के पिछले बोर्ड ने ही विभिन्न स्थानों पर ट्रैफिक लाइट व्यवस्था कर दी थी। यह अलग बात है कि उसे लागू आज भी नहीं किया जा सका है। हकीकत यह है कि 2009-10 में जब डॉ रमेश पोखरियाल निशंक राज्य के मुख्यमंत्री और सुरेश जैन नगर विधायक थे तब रिंग रोड के विषय में सोचा गया था और इसका प्रस्ताव भी बना था। इसके अलावा अस्थाई अतिक्रमण को हटाने की व्यवस्था पर न केवल सोचा गया था बल्कि इस पर काम भी हुआ था, कई वेंडिंग जोन बने थे। लेकिन प्रदीप बत्रा के विधायक बनते ही सब खत्म हो गया था।यही स्थिति आज भी बनी हुई है।

दरअसल, नगर में यातायात व्यवस्था बिगड़ने का कारण अस्थाई अतिक्रमण है जो रेहड़ी-ठेली के रूप में, अनियंत्रित पार्किंग के रूप में सूरज चढ़ते ही सड़कों पर आ जाता है। दुकानदार अपने सामान का डिसप्ले सड़क पर करते हैं, अपने वाहन सड़क पर खड़ा करते हैं, फिर उनके सामने रेहड़ी-ठेली खड़ी होती हैं, फिर ग्राहक अपने वहां खड़ा करते हैं। दुकानदारों का सामान लेकर दिनभर दोपहिया या तीन पहिया लोडेड वाहन दिनभर बाजारों में प्रवेश करते रहते हैं। यह स्थिति मुख्य बाजारों की है। बाहरी बाजारों में डाक्टरों के नर्सिंग होम, बड़े शोरूम और वाहन सर्विस स्टेशन समस्या खड़ी कर रहे हैं। नगर डॉक्टर्स की मंडी बन गया है और नगर का आउटर एरिया स्कूल्स का जब बन गया है। नगर के चारों तरफ देहात है और देहात से हर दिन हजारों वाहन नगर में प्रवेश करते हैं। इसी कारण लगभग हर नर्सिंग होम के सामने जाम लगा रहना आम बात है! इस जाम पर तड़का लगाती हैं स्कूलों की बसें जो एक-दूसरे की पूंछ मुंह में पकड़ कर दर्जनों-दर्जनों की तादाद में हर दिशा से नगर में प्रवेश करती हैं। विडंबना यह है कि इस काम में प्रदीप बत्रा के अपने स्कूल की बसें भी शामिल हैं और प्रदीप बत्रा के अपने मिठाई के शोरूम्स के पास भी पार्किंग नहीं है। इसलिए वे तो व्यक्तिगत रूप से यातायात व्यवस्था बिगाड़ने में अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं और फिर उसे “मॉडल टाउन” के रूप में सर्टिफाई भी कर रहे हैं।