आबादियों तक नहीं पहुंच पा रही हाईवेज की चकाचौंध
एम हसीन
रुड़की। सरकार की अपनी प्राथमिकता है और समाज की अपनी आवश्यकता है। यह तो कहा नहीं जा सकता कि मशीनरी काम नहीं कर रही है। काम पर नीचे से ऊपर तक के सभी अधिकारी-कर्मचारी लगे हुए हैं। फिर भी सामाजिक रूप से अगर समस्याएं बनी हुई है तो वह प्राथमिकताओं और आवश्यकताओं का ही खेल है। मिसाल हाईवेज और आबादी क्षेत्र की सड़कों की ली जा सकती है। हाईवेज की अपनी गरिमा है, अपनी रफ्तार है और आबादी क्षेत्र की सड़कों की अपनी स्थिति कुछ यूं है कि ऐसा कोई शहर गांव नहीं होगा, जहां सड़कों में गड्ढे नहीं हैं और उसे पर कमाल यह है कि जहां गड्ढे नहीं हैं वहां पर गति अवरोधक अर्थात स्पीड ब्रेकर बने हुए हैं। अब अगर गढ्ढों को एक टेस्टी रेसिपी के रूप में स्वीकार किया जाए तो यह भी स्वीकार करना होगा कि गढ्ढे इस रेसिपी पर देसी घी का छौंक बन गए हैं। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि किसी को देसी घी में चुपड़ी चपाती मिल जाएं और दो-दो मिल जाएं। चाहें तो यूं भी कह सकते हैं कि एक कड़वा करेला और ऊपर से करेले की बेल कड़वे नीम पर चढ़ी हुई हो। जाहिर है कि कड़वाहट अपने चरम पर पहुंच जाएगी। ऐसा ही हाल आबादी क्षेत्र की सड़कों का है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली सरकार बनने के बाद देशभर में सड़क विकास के लिए खूब काम हुआ है और हो रहा है। यही स्थिति आबादी क्षेत्र की सड़कों की भी है। हर वर्ष अरबों रुपए आबादी क्षेत्र की सड़कों के निर्माण पर खर्च हो रहे हैं। लेकिन सड़कों का केवल निर्माण हो रहा है, उनका रख-रखाव नहीं, उनकी मरम्मत नहीं। दरअसल, सड़क निर्माण के लिए जारी होने वाला अधिक बजट भी इस मामले में सड़कों का दुश्मन बन गया है। इस स्थिति का नतीजा यह है कि कहीं भी सड़क के पुनर्निर्माण का कार्य किया जा रहा है, उनके रख-रखाव का नहीं और पुनर्निर्माण की गुणवत्ता को देखने, निर्धारित करने वाला कोई नहीं है। इसका नतीजा यह है कि इधर सड़क का पुनर्निर्माण होता है, उधर वह उधड़ना शुरू हो जाती है। अब चूंकि सड़क पुनर्निर्माण के साथ ही उस पर गति अवरोधक भी बनाए जाते हैं तो होता यह है कि गति अवरोधक तो खड़े रहते हैं और सड़कें बिखर जाती हैं।
मौजूदा राज्य सरकार इस हकीकत से वाकिफ न हो, ऐसा नहीं है। सरकार के मुखिया पुष्कर सिंह धामी इस सच से वाकिफ हैं। यही कारण है कि 2023 की आपदा के बाद से ही उन्होंने सड़कों के गढ्ढों को भरने पर फोकस रखा है। उन्होंने और निवर्तमान मुख सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी ने विभिन्न जिलों के जिलाधिकारियों ने बार-बार अमले को आदेश देकर गढ्ढे भरवाए हैं। लेकिन ऐसा आंशिक रूप से ही हो पाया है, व्यापक रूप से ऐसा नहीं हुआ है। यही कारण है कि अधिकांश सड़कें गढ्ढा युक्त बनी हुई हैं और उनपर गति अवरोधकों का छौंक भी लगा हुआ है।