भविष्य में कौन होगा विपक्ष की राजनीति का चेहरा?
एम हसीन
मंगलौर। नगर निकाय के चुनाव परिणाम ने बता दिया है कि यहां विपक्ष का चेहरा भले ही अभी निर्धारित नहीं लेकिन राजनीतिक समीकरण वही पुराना, अर्थात क़ाज़ी बनाम का, है। बेशक यहां नगर पालिका अध्यक्ष पद पर विधायक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के प्रत्याशी के रूप में मुहीउद्दीन अंसारी ने जीत हासिल की लेकिन पुरानी परंपरा के मुताबिक मुकाबले पर भी एक ही प्रत्याशी, अर्थात जुल्फिकार ठेकदार, पराजित हुए हैं। यहां कोई तीसरा चेहरा इस बार भी चुनावी संघर्ष में अपना स्थान सुरक्षित नहीं कर पाया। न ही कोई तीसरा मोर्चा बना पाया जैसा कि चुनाव के शुरुआती दौर में संभावना जताई जा रही थी। लेकिन सवाल यह है कि यहां क़ाज़ी बनाम की राजनीति में भविष्य में विपक्ष का चेहरा कौन होगा? खुद जुल्फिकार ठेकेदार या उनके पॉलिटिकल प्रमोटर उबैदुर्रहमान अंसारी उर्फ मोंटी, जो पिछले विधानसभा उप-चुनाव तक यहां क़ाज़ी बनाम हाजी की राजनीति के अगुआ थे? कहीं ऐसा तो नहीं कि जो भगवाधारी यतीश्वरानंद इस तत्व की अगुवाई करेंगे जोकि इस निकाय चुनाव में क़ाज़ी बनाम की राजनीति को कायम रखने के लिए राज्य सत्ता की पूरी ताकत का इस्तेमाल कर रहे थे?
मंगलौर निकाय की राजनीति इस बार राजनीतिक दलों पर नहीं बल्कि व्यक्तित्वों पर बेस कर रही थी। यहां कांग्रेस के स्थापित प्रत्याशी चौधरी इस्लाम का पर्चा खारिज हो गया था और भाजपा ने प्रत्याशी घोषित नहीं किया था। इस प्रकार दोनों ही दलों के अगुआ लोगों ने निर्दलीय लड़ाए थे। कांग्रेस विधायक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ने मुहीउद्दीन अंसारी को लड़ाया था जो कि चौधरी इस्लाम का रिप्लेसमेंट बने थे और भाजपा ने जुल्फिकार ठेकेदार को अपना समर्थन दिया था। जुल्फिकार ठेकेदार मूल रूप से उबेदुर्रहमान अंसारी के प्रत्याशी थे जो कि पिछले विधानसभा उप-चुनाव में यहां बसपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे और कुल 20 हजार वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे। मंगलौर नगर में तब कांग्रेस का मुख्य मुकाबला भाजपा के साथ नहीं बल्कि मोंटी के साथ ही हुआ था। इसी कारण मोंटी के गुट का नगर में भारी महत्व था। इसी गुट पर भाजपा चुनाव अभियान के सह-संयोजक पूर्व कैबिनेट मंत्री यतीश्वरानंद ने अपना हाथ रख दिया था। अब यतीश्वरानंद यहां अपने प्रत्याशी को जिता तो नहीं पाए हैं लेकिन चूंकि उनके प्रत्याशी की सीधे मुकाबले में हार हुई है इसलिए यह तय है कि उन्हें नगर में एक मजबूत आधार हासिल हो गया है। चुनाव अभियान से यह कदम-कदम पर साबित हुआ कि निर्णय लेने के मामले में खुद मोंटी की क्षमता कमजोर है लेकिन उनके सलाहकारों की क्षमता इस मामले में महत्वपूर्ण है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि क़ाज़ी निज़ामुद्दीन विरोधी नगर के सारे कारोबारी और सारे महत्वकांक्षी मोंटी गुट से आ जुड़े हैं। इसलिए यहां काजी बनाम की राजनीति तो कायम रहने वाली है। लेकिन सवाल यही है कि भविष्य की राजनीति में यतीश्वरानंद इसके अगुआ होंगे या मोंटी? सवाल इसलिए अहम है कि 2027 सामने है और उप-चुनाव में यहां कांग्रेस को महज ढाई सौ वोटों की जीत हासिल हुई थी।