निर्दलीय प्रत्याशी के काम आ रहा पति पूर्व मेयर यशपाल राणा का संघर्ष, निर्दलीय विधायक उमेश कुमार और डॉ नैयर काजमी बन रहे मजबूत सहयोगी

एम हसीन

रुड़की। निर्दलीय मेयर प्रत्याशी श्रेष्ठा राणा के खाते में कई चीजें बड़ी रफ्तार से जुड़ती जा रही हैं जो उन्हें निरंतर मजबूती की ओर ले जा रही हैं। इसके साथ ही उनकी बुनियादी चीजें तो उन्हें चुनावी त्रिकोण का सबसे प्रमुख कोण बनाए हुए हैं ही।

जैसा कि सर्वविदित है कि श्रेष्ठा राणा की बुनियादी चीज उनके पति पूर्व मेयर यशपाल राणा का वह संघर्ष है जो उन्होंने पिछले सालों में किया है। इतिहास इस बात का गवाह है कि यशपाल राणा निचले स्तर से धीरे-धीरे संघर्ष करते हुए ऊपर आए हैं। इस संघर्ष ने उन्हें एक संघर्ष शील जननेता ही नहीं बल्कि एक डेटा बैंक भी बना दिया है। वे व्यक्तिगत रूप से इतनी जानकारी रखते हैं कि किस इलाके में कितने घर हैं, उनमें कितने लोग रहते हैं और कौन किसके साथ रहता है। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि उन्हें इस बात का भरपूर अनुमान है कि उन्हें कौन-कौन वोट दे रहा है। साथ ही यह भी मालूम है कि परिस्थिति के अनुसार कौन उन्हें वोट दे सकता है। इतने जबरदस्त नेटवर्क के साथ जब वे अपनी पत्नी को चुनाव लड़ा रहे हैं तो जाहिर है कि ऐसी प्राथमिकताएं चुन रहे हैं जो उनकी पत्नी की उम्मीदवारी को हर दिन नई मजबूती दे रही है।

इस मामले में उनकी अतिरिक्त ताकत निर्दलीय खानपुर विधायक उमेश कुमार बने हुए हैं। सब जानते हैं कि उमेश कुमार का अपना एक पब्लिक फेस तो है ही, उनका एक नेटवर्क भी है, कार्यकर्ताओं और समर्थकों का अपना तंत्र भी है। दिलचस्प बात यह है कि यह तंत्र आउटर रुड़की के उन क्षेत्रों में मजबूत है जहां यशपाल राणा का अपना तंत्र भी है लेकिन कमजोर है। जाहिर है कि ऐसे क्षेत्रों में ये दोनों मिलकर बड़ी ताकत बन गए हैं और उनकी मजबूती दलीय प्रत्याशियों से ज्यादा हो गई है। यही स्थिति डॉ नैयर काजमी की है। डॉ काजमी भी एक पब्लिक फेस हैं और एक खास वर्ग की नुमाइंदगी बड़ी मजबूती से करते हैं। वे चूंकि एक राजनीतिक दल के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं इसलिए उनके पास भी कार्यकर्ताओं और समर्थकों का एक मजबूत तंत्र है। यह यंत्र नगर में चूंकि अपने पार्षद प्रत्याशियों के लिए काम रहा है तो और अधिक मजबूत हो गया है और महानगर स्तर पर यशपाल राणा के साथ मिलकर एक मजबूत ताकत बन गया है। इन सारी चीजों पर तड़का लगा रही है रुड़की की यह हकीकत कि यहां की जनता निकाय चुनाव में दलों का हस्तक्षेप पसंद नहीं करती। वह निर्दलीय को चुनना पसंद करती है। इस बार भी यही होता हुआ दिखाई दे रहा है।