विपक्ष समर्थक प्रबुद्ध जनों को कथित रूप से धमकाए जाने की चर्चा से और बिगड़ रहे हालात
एम हसीन
रुड़की। निकाय चुनाव के भाजपा जिला संयोजक डॉ रमेश पोखरियाल निशंक पार्टी ने रुड़की में पार्टी की जीत का दावा किया है। पार्टी प्रत्याशी का नामांकन कराने के बाद कल पहली बार रुड़की आए डॉ निशंक ने दावा किया कि रुड़की में ट्रिपल इंजन की सरकार बनने जा रही है। वे ऐसा दावा कर सकते हैं। कारण यह है कि उनकी प्रेस-कांग्रेस में भाजपाइयों की भीड़ जुटी हुई दिखाई दी और निशंक ने मान लिया कि उनकी छतरी सुरक्षित है। पार्टी एकता के सूत्र में बंधी हुई है और एकजुट होकर पार्टी प्रत्याशी को चुनाव जिताने के लिए प्रयायत है। लेकिन यह दिशाभ्रम है। सच यह है कि उनकी छतरी में छेद ही छेद हैं। पार्टी संतरे के रूप में सामने आ रही है अर्थात छिलके के नीचे फांकें अलग-अलग हैं।
भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है इसलिए उसका कुनबा भी बड़ा है और उसके कार्यकर्ताओं की संख्या भी असीमित है। कोई बड़ी बात नहीं कि उनकी निष्ठा के केंद्र भी अलग-अलग हैं। इस बात से खुद डॉ निशंक नावाकिफ नहीं हैं। डॉ निशंक इस बात को जानते हैं कि इस बार कांग्रेस ने प्रत्याशी ऐसा चेहरा नहीं बनाया है जिसे वोट न देना एक खास वर्ग की मजबूरी बन जाए।
इस बार कांग्रेस का प्रत्याशी उसी वर्ग, यहां जाति महत्वपूर्ण नहीं है, उसी वर्ग से आता है जिस वर्ग की राजनीति भाजपा करती आई है अर्थात कांग्रेस ने महज प्रत्याशी चयन करके ही भाजपा के समर्थक वर्ग में बड़ी सेंध लगा ली है। कोई बड़ी बात नहीं कि कांग्रेस प्रत्याशी उसी वर्ग में सेंधमारी कर रहा है जिसके भरोसे भाजपा की राजनीति टिकी हुई है। यही कारण है कि भाजपा में चुनावी नेतृत्व की सेकेंड कमांड कुछ लोगों को कथित रूप से धमका रही है। चर्चा है कि एक आर्किटेक्ट को धमकाया गया है, एक डॉक्टर को धमकाया गया है, एक उद्योगपति को धमकाया गया है। हालांकि इस चर्चा की पुष्टि नहीं की गई है लेकिन अगर यह चर्चा सच है तो अनुमान लगाया जा सकता है कि पार्टी से नाराज एक खास वर्ग को जब धमकाया जाएगा तो इसका क्या परिणाम होगा। यही दरअसल वह स्थिति है जो भले ही डॉ निशंक की सेहत पर असर न डाले लेकिन पार्टी प्रत्याशी की सांसें फुला रही है। फिर यह भी सच है कि सख्ती का जो रवैया पार्टी ने पिछले दिनों कार्यकर्ताओं के खिलाफ अपनाया है, एक खास नेता के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को बाहर का रास्ता दिखाया है उससे यह स्पष्ट होता है कि कार्यकर्ता अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आ रहे हैं।
दरअसल, पार्टी का चुनाव अभियान डांवाडोल है। अंतर केवल इतना आया है कि जो कार्यकर्ता 2019 में तत्कालीन भाजपा प्रत्याशी मयंक गुप्ता को हराकर, नेस्तनाबूद करके, उन्हें तीसरे नंबर पर धकेलकर माने थे वे आज पार्टी प्रत्याशी को लड़ा रहे हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि जो पिछली बार हारे थे वे क्या कर रहे होंगे! लेकिन यह भी सच है कि इससे जो फर्क पड़ता है वह प्रत्याशी को पड़ता है। डॉ निशंक को कुछ फर्क नहीं पड़ता।