ढंढेरा में भाजपा की चौतरफा बगावत से बेहतर हुई कांग्रेस प्रत्याशी की स्थिति

एम हसीन

ढंढेरा। ढंढेरा नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे उदय पुंडीर का चुनाव अभियान मतदान में एक सप्ताह शेष रहते खासी मजबूत स्थिति में पहुंच गया है। लगता नहीं है कि जहां वे पहुंच चुके हैं वहां से उन्हें पीछे धकेला जा सकता है, अलबत्ता मतदान से पहले ही निर्णायक हैसियत हासिल कर लेने की उनकी कोशिश बरकरार है।

ढंढेरा वह नगर पंचायत है जहां भाजपा के रवि राणा के अलावा पार्टी के कम से कम तीन बागी मैदान में हैं। बबलू राणा और जितेंद्र राणा के अलावा सतीश नेगी यहां भाजपा के बागी के तौर पर देखे जा रहे हैं। उपरोक्त के अलावा बसपा के राव फुरकान मैदान में हैं तो कोई और मुस्लिम हालांकि किसी पार्टी के टिकट पर नहीं है लेकिन कम से कम दो प्रत्याशी राव तजम्मुल खां और राव आरिफ मैदान में हैं। सीट सामान्य होने के बावजूद यहां यशपाल प्रधान दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उनके अलावा कम से कम दो प्रत्याशी दलित समुदाय से और हैं। इस क्रम में पर्वतीय मूल के प्रतिनिधि के रूप में सतीश नेगी के अलावा कम से कम एक प्रत्याशी और मैदान में है। करीब 19 हजार मतदाताओं वाली इस नगर पंचायत में प्रत्याशियों की उपरोक्त स्थिति जातियों के क्रम में बड़ी दिलचस्प स्थिति पैदा कर रही है। मसलन, पर्वतीय मूल के करीब 5 हजार वोट हैं जिनमें से 20 प्रतिशत नौकरी या व्यवसाय के सिलसिले में बाहर रहते हैं। करीब 5 हजार ही दलित मत हैं और मुस्लिम राजपूतों सहित करीब 5 हजार ही मुस्लिम वोट हैं। शेष मतों में पिछड़े वर्ग के अलावा मैदानी हिंदू राजपूत हैं। हालात का अध्ययन यह बताता है कि हर जातीय वर्ग में एक प्रमुख प्रत्याशी है तो उसी जातीय वर्ग में एक या एक से अधिक वोट काटने वाले प्रत्याशी भी हैं। मसलन, सतीश नेगी पर्वतीय मूल के गंभीर प्रत्याशी हैं जो भाजपा समर्थक लोगों का प्रतिनिधित करते हैं। लेकिन चूंकि उनके समुदाय में कांग्रेस मानसिकता के मतदाता भी हैं तो उनके लिए उन्हीं के समुदाय का प्रत्याशी मौजूद है। यही स्थिति मुस्लिमों की है। उनमें एक गंभीर प्रत्याशी है तो उन्हीं के समुदाय के दो या दो से भी अधिक वोट कटुआ प्रत्याशी भी हैं। दलित समुदाय के हालात भी ऐसे हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि कांग्रेस के उदय पुंडीर, भाजपा के रवि राणा के अलावा कम से कम तीन और ऐसे प्रत्याशी हैं जो जीतने का अरमान लेकर चुनाव मैदान में आए हैं।

स्वाभाविक है कि उन्होंने अपने समीकरण के हिसाब से धार्मिक, जातीय और वर्गीय आधार पर अपने डमी भी मैदान में उतारे हैं। कोई किसी के लिए वोट काट रहा है कोई किसी के लिए। ऐसे में उदय पुंडीर की चुनावी बुनियाद यहां आकर मजबूत हो जाती है कि उनका वोट व्यक्तिगत आधार पर भी और व्यक्तिगत आधार पर भी; हर क्षेत्र में मौजूद है। वे मैदानी क्षेत्र के हिन्दू राजपूतों में भी वोट ले रहे हैं और पर्वतीय मूल के राजपूतों भी। और तो और वे मुस्लिम राजपूतों में भी वोट ले रहे हैं। इसी प्रकार वे दलित समुदाय में भी उल्लेखनीय समर्थन जुटाने में कामयाब हैं और पिछड़ा वर्ग में भी। हर धर्म, हर जाति और हर वर्ग में सेंधमारी कर रहे उदय पुंडीर की चुनावी बुनियाद मजबूत मानी जा रही है। उनके लिए हालात भाजपा में हुई बहुकोणीय बगावत ने भी आसान किए हैं। जो स्थिति आज है उसे अगर 23 जनवरी तक मेंटेन कर पाए तो उदय पुंडीर योद्धा कहला सकते हैं।