गवर्नमेंट पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने दिया भाजपा प्रत्याशी को समर्थन
एम हसीन
रुड़की। मुंशी राम अरोड़ा नगर विधायक प्रदीप बत्रा के ससुर हैं। वे गवर्नमेंट पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन के करता-धरता भी हैं। उनकी यह संस्था प्रदीप बत्रा सहित हर उस प्रत्याशी को अपना समर्थन देती आई है जिसे प्रदीप बत्रा चाहें। मुख्य रूप से यह प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनाने का काम करती है। इसी एसोसिएशन ने आज भाजपा की मेयर प्रत्याशी अनीता देवी अग्रवाल को अपना समर्थन देने की घोषणा कर दी। लेकिन इतने मात्र से यह नहीं मान लिया जाना चाहिए कि प्रदीप बत्रा का रुख अनीता देवी अग्रवाल के अनुकूल हो गया है। हां इतना जरूर दिखाई दे रहा है कि अब जबकि प्रदीप बत्रा अपनी पूंछ पर भाजपा का पैर महसूस करने लगे है तो वे इस बात को भी महसूस करने लगे हैं कि कम से कम उनके निकट के लोगों का समर्थन भाजपा के पक्ष में सार्वजनिक होना जरूरी है। यदि ऐसा नहीं होता तो इस बार वे पार्टी को जवाब देने की स्थिति में नहीं होंगे।
बहरहाल, अगर प्रदीप बत्रा का रुख बदला तो निकट भविष्य में सामाजिक संस्था समर्पण का समर्थन भी भाजपा प्रत्याशी को मिल सकता है। ध्यान रहे कि समर्पण अध्यक्ष नरेश यादव प्रदीप बत्रा के कैंप कार्यालय में काम करते हैं। पिछले 20 सालों में यह पहला चुनाव है जब अभी तक चुनाव में समर्पण की सक्रियता दिखाई नहीं दी है। समर्पण बड़ा संगठन है और डॉक्टर्स की संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, मेडिकल स्टोर संचालकों की संस्था, एम्बुलेंस चालकों की संस्था आदि सहित कई संस्थाएं इससे सीधे जुड़ी हुई हैं। इसलिए समर्पण मात्र का समर्थन ही भाजपा प्रत्याशी का माहौल बनाने के लिए काफी होगा। लेकिन ऐसा कब होगा यह देखने वाली बात होगी, अलबत्ता होगा तभी जब प्रदीप बत्रा का भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में सकारात्मक रुख बन जाएगा।
जैसा कि सब जानते हैं कि प्रदीप बत्रा पिछले 16 साल से अजेय बने हुए हैं तो इसलिए क्योंकि उनका हाथ रुड़की की सामाजिक राजनीति की नब्ज़ पर है। लायंस, रोटरी, भारत विकास परिषद सहित ऐसी कोई सामाजिक संस्था नहीं जिसमें प्रदीप बत्रा के मोहरे प्रभावी हैसियत में नहीं हैं। केवल इतना ही नहीं, पंडितों से लेकर मौलवियों जैसे लोग भी प्रदीप बत्रा के हित को साधने के लिए तत्पर दिखाई देते रहे हैं। कोई बड़ी बात नहीं कि इसी कारण प्रदीप बत्रा पिछले 16 सालों में 4 चुनाव लड़े और सारे जीतकर आए। केवल इतना ही नहीं; उन्होंने जब चाहा, जिसे चाहा चुनाव में जितवा दिया। 2019 में अपने दम पर, भाजपा के खिलाफ, गौरव गोयल को मेयर बनाकर उन्होंने अपनी क्षमता को साबित किया था और उन्होंने आज तक इस पर कोई सफाई नहीं दी कि उन्होंने भाजपा के खिलाफ काम किया था, बाकायदा पार्टी प्रत्याशी हरवाया था। लेकिन अब लगता है कि समय बदल रहा है। हालात ने जो करवट ली है उनके मद्देनजर वे चाहे या न चाहें उन्हें पार्टी प्रत्याशी अनीता देवी अग्रवाल की जीत के लिए गंभीरता से काम करना ही होगा। हालांकि यह उनके लिए आसान नहीं होगा। कारण यह है कि दो सौ करोड़ रुपए के वार्षिक बजट वाली, हजारों करोड़ की संपत्ति की मालिक, इस संस्था पर वे हर हाल में अपना होल्ड रखना चाहते हैं। इसलिए ऐसे व्यक्ति को मेयर बनाना चाहते हैं जो उनकी मुट्ठी में रहे। यही कारण है कि पिछली बार उन्होंने पार्टी प्रत्याशी मयंक गुप्ता को खुलकर हरवाया था और गौरव गोयल को मेयर बनाया था। यह अलग बात है कि खेले खाए मयंक गुप्ता ने भी एक भी दिन गौरव गोयल काम करने नहीं दिया था। इस बार भी मयंक गुप्ता क्या करेंगे यह बाद की बात है, पहली बात यह है कि बत्रा अनीता देवी अग्रवाल को मेयर बनते हुए देखने में दिक्कत महसूस करते हैं या नहीं!