भाजपा ने बनाया त्रिकोण तो बसपा भी रहेगी कायम
एम हसीन
रुड़की। उप चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी क़ाज़ी निजामुद्दीन के पक्ष में जनसभा करने आए कांग्रेस नेताओं ने बसपा प्रत्याशी ओबेदुर्रहमान अंसारी उर्फ मोंटी को अपरिपक्व बताया। वैसे उन्होंने कोई नई बात नहीं की। “मोंटी अभी नादान है……मोंटी अभी बच्चा है…..मोंटी कोई लीडर नहीं है।” ये वो आरोप हैं जो मोंटी पर उनके विरोधी प्रत्याशी और उनके समर्थक लगा रहे हैं। ऐसे में बसपा प्रदेश अध्यक्ष शीशपाल पर बड़ी जिम्मेदारी आ गई है कि वे इसका मुनासिब जवाब दें। वैसे मोंटी के समर्थक जुल्फिकार अंसारी इस आरोप का खण्डन करते हैं। उनका कहना है कि मोंटी युवा हैं और वे आज के हिसाब से सोच समझ और परिपक्वता रखते हैं। ऐसे ही व्यक्ति की मंगलौर क्षेत्र को आवश्यकता है जो अतीत की नहीं बल्कि वर्तमान की और भविष्य की समझ रखता हो।
बहरहाल, इसके अलावा किसी के पास मोंटी के खिलाफ कम से कम अभी कुछ नहीं है। जबकि उनके पिता हाजी सरवत करीम अंसारी की स्थिति 2022 में ऐसी नहीं थी। उन्होंने लंबा जीवन जिया था। एक बार नगर पालिका अध्यक्ष का और 5 बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था। दो बार जीते भी थे। कितने ही नेता बनाए थे तो कितनों ही का खेल खत्म भी किया था। उनका अपना समर्थन था तो अपना विरोध भी था। यह समर्थन विरोध उन्हें कमजोरी और ताकत दोनों ही चीज़ें देता था। यही स्थिति आज मंगलौर सीट पर चुनाव लड़ रहे मोंटी के विपक्षी प्रत्याशियों की भी है। उनके समर्थक हैं तो विरोधी भी हैं। समर्थकों के पास समर्थन का कोई कारण है तो विरोधियों के पास विरोध का भी कोई कारण है। दोनों ही के साथ कितने ही तो ऐसे समर्थक दिख रहे हैं जो वास्तव में उन्हीं के विरोधी हैं। कितने ही ऐसे समर्थक इन प्रत्याशियों के साथ घूम रहे हैं जो कई मतदाताओं के बीच नापसंद किए जा रहे हैं अर्थात अपने समर्थकों के चेहरों के कारण ही प्रत्याशियों के लिए नकारात्मक हालात बने हुए हैं। लेकिन मोंटी के साथ अभी ऐसा नहीं है। उनके साथ जितना भी है, समर्थन है। चाहे वह उनकी मासूमियत के कारण हो चाहे दूसरे प्रत्याशियों या दलों के विरोध के कारण। अहम बात यह है कि उनके प्रति समर्थन का उनके समर्थकों के पास एक ही कारण दिखाई देता है। वह कारण है निष्ठा। यह उनकी बिरादरी के लोगों के भीतर भी देखने में आ रहा है और बिरादरी के बाहर के लोगों में भी। सच बात तो यह है कि उनसे एलर्जी अगर किसी को है तो वह उनके निकट ही नहीं फटक पा रहा है। इसे मोंटी की ताकत माना जाए तो फिर यह भी मानना पड़ेगा कि वे चुनाव से बाहर नहीं हैं। एक दूसरे के कट्टर विरोधी होने के बावजूद भाजपा और कांग्रेस जिस नए राजनीतिक मॉडल पर चुनाव लड़ने की कोशिश कर रहे हैं वह मॉडल यहां चल नहीं पाएगा। इस मॉडल के चलते बेशक भाजपा का ग्राफ बढ़ा हुआ दिखाई दे रहा है। बेशक कांग्रेस भी अपने मोर्चे पर मजबूती से खड़ी है लेकिन मोंटी भी कोई कमज़ोर नहीं हैं। इस संवाददाता ने आज खुद क्षेत्र के जाट, गुर्जर और दलित बहुल गांवों में जाकर जो माहौल आंका उसके भरोसे यह कहा जा सकता है कि यहां चुनाव 2024 के लोकसभा चुनावी मॉडल के नहीं बल्कि 2022 के विधानसभा चुनावी मॉडल के तहत होता दिखाई दे रहा है। बेशक भाजपा की स्थिति में खासा सुधार है लेकिन इससे बसपा की स्थिति प्रभावित नहीं हो रही है। ऐसे में दारोमदार पार्टी प्रदेश अध्यक्ष शीशपाल पर आ जाता है कि वे कितनी गंभीरता से, कितनी निष्ठा से उन्हें चुनाव लड़ाते हैं। अगर पार्टी उनके साथ खड़ी रही तो इस बार वास्तव में मंगलौर में त्रिकोण दिखाई दे सकता है। और इस त्रिकोण में मोंटी अपना अहम मुकाम सुरक्षित कर सकते हैं।