कांग्रेस से किरण चौधरी और भाजपा से मानवेंद्र सिंह मैदान में
एम हसीन
झबरेड़ा। इस नगर पंचायत में टिकटों की स्थिति शुरुआती दौर में ही साफ हो गई है। कांग्रेस ने पिछली बार प्रत्याशी रहे डॉ गौरव चौधरी पर ही अपना भरोसा जताया है अलबत्ता डॉ गौरव चौधरी ने मामूली बदलाव किया है। इस बार वे खुद नहीं बल्कि उनकी पत्नी किरण चौधरी प्रत्याशी हैं। दूसरी ओर, भाजपा ने भी अपने निवर्तमान नगर पंचायत अध्यक्ष मानवेंद्र सिंह पर ही भरोसा कायम रखा है। दोनों के ही पास चुनाव में जाने के अपने-अपने कारण हैं और दोनों ही जीत का लक्ष्य लेकर मैदान में आए हैं।
अगर बात कांग्रेस की करें तो यह स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस में पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष पद तक पहुंच चुके डॉक्टर गौरव चौधरी बड़ी राजनीति करने का मन बना चुके हैं लेकिन अपनी जमीन से अपना नाता वे नहीं तोड़ना चाहते। इसका प्रमाण यह है कि नगर पंचायत के चुनाव में वे एक बार फिर मैदान में आ गए हैं। लेकिन पिछले सालों में उनके भीतर खासी परिपक्वता आई है, इसके कई प्रमाण सामने आ रहे हैं। मसलन, उन्होंने इस बार खुद मैदान में आने की बजाय अपनी पत्नी किरण चौधरी को प्रत्याशी बनाया है।
दूसरी बात, वे उन लोगों को मनाने में सफल रहे हैं जो 2018 के चुनाव में उनका वाटरलू बने थे। कांग्रेस में टिकट पर अपना दावा छोड़कर राव कुर्बान अली उनके साथ आ गए हैं। पिछली बार राव कुर्बान अली समाजवादी पार्टी का टिकट लेकर मैदान में आए थे और डॉ गौरव चौधरी की हर का कारण बन गए थे। कोई बड़ी बात नहीं की पिछली बार के मुकाबले इस बार झबरेड़ा क्षेत्र के राजनीतिक समीकरणों में भी खासा बदलाव आया है। मसलन, 2018 में जब पिछला निकाय चुनाव हुआ था तब यहां विधानसभा पर भाजपा का कब्जा था जबकि इस बार यहां कांग्रेस का कब्जा है। उपरोक्त तमाम हालात को देखकर कहा जा सकता है कि हालत न केवल डॉक्टर गौरव चौधरी बल्कि कांग्रेस के भी विरोध में नहीं है। इसके बावजूद चुनावी मुकाबला यहां पहले की तरह ही बहुत संघर्षपूर्ण और सीधा होने वाला है।
इसका कारण यह है कि भाजपा प्रत्याशी मानवेंद्र सिंह के पास भी जनता को बताने के लिए काफी कुछ है। यह एक ज्ञात तथ्य है कि उन्होंने निकाय अध्यक्ष बनने के बाद नगर में विकास की परंपरा को नए आयाम दिए थे। अव्वल तो मोदी राज में वैसे ही विकास एक नई परिभाषा प्राप्त कर रहा था, फिर मानवेंद्र सिंह भी युवा थे। उनके द्वारा नगर में कराए गए उनकी मजबूती की बुनियाद है यह वे लगातार कहते रहे हैं। फिर, भाजपा यहां औपचारिक रूप से नहीं बल्कि जीतने के लिए लड़ने आई है। यही सोच कांग्रेस की है। ऐसे में संघर्ष का कड़ा होना लाजमी होगा।