संसदीय क्षेत्र में 19 अप्रैल के बाद से ही लगातार जारी है बहस

एम हसीन, हरिद्वार। 19 अप्रैल के बाद से ही खानपुर विधायक उमेश कुमार आमतौर पर खामोशी धारण किए हुए हैं। हालांकि वे कई मामलों पर बोले भी हैं; लेकिन 2021 से ही जैसी उनकी सक्रियता यहां बनी हुई थी, वैसी पिछले तीन सप्ताह में दिखाई नहीं दी है। इस बीच यह मुद्दा जनता के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है कि उनका सम्पूर्ण लोक सभा, और खासतौर पर उनके अपने विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र खानपुर, में कैसा रहने वाला है! क्या वे 2022 के अपने परफॉर्मेंस से कुछ बेहतर कर पाएंगे? क्या पिछले प्रदर्शन को दोहरा पाएंगे? या स्थिति में कुछ बदलाव दिखाई देगा?

उमेश कुमार ने बतौर निर्दलीय लोकसभा निर्वाचन चुनाव में शिरकत की। शुरुआती दौर में उन्होंने अपने चुनाव अभियान का प्रदर्शन बेहद मजबूत प्रत्याशी के रूप में किया और दलीय राजनीति में भी अपना हस्तक्षेप प्रदर्शित किया, जब कांग्रेस टिकट की दौड़ में खुद को प्रभावी दिखाया। लेकिन 19 अप्रैल तक आते आते बाजी उनके हाथ से निकल गई, ऐसा उनके समकक्ष कई विधायकों का भी मानना है। एक विधायक का, अपना नाम न छापने की शर्त पर, तो यहां तक कहना है कि वे खानपुर क्षेत्र में ही बुरी तरह पिछड़ रहे हैं।

जाहिर है कि अगर ऐसे हालात हैं तो स्थिति बदतर है। खासतौर पर तब, जब यह साफ दिखाई देता है कि 2021 में भी उनका मुख्य लक्ष्य विधायक बनना नहीं बल्कि सांसद बनना ही था। जग जाहिर है कि उमेश कुमार ने यहां अपनी एंट्री जिन स्थानीय विधायक प्रणव सिंह चैंपियन के खिलाफ की थी, उन्हीं के स्टाइल को अपनाकर की थी। गाडियां का काफिला, हूटरों का शोर, हर किसी को चुनौती देने का बिंदास अंदाज और सदा सुर्खियों में रहने का जो तरीका चैंपियन का था, वही उमेश कुमार ने अपनाया और स्वाभाविक रूप से उन्होंने चैंपियन को ही हर चुनौती दी। इस मामले में वे कई कदम आगे निकले। उन्होंने निपट देहात खानपुर क्षेत्र में हेलीकॉप्टर से लेकर फिल्म और क्रिकेट जगत के सितारे इंट्रोड्यूस कराए और पैसे का भरपूर प्रदर्शन किया। उन्होंने खानपुर के 2017 में जख्मी हुए मुस्लिम मतदाता के दिल को ठंडक पहुंचाई। इस प्रकार शुरुआती हल्ले में ही वे यहां छा गए। भाजपा के भीतर एंटी इनकंबेंसी का शोर और भीतरघात के बीच भाजपा में चैंपियन के व्यक्तिगत टिकट पर तलवार ने एक पटकथा अलग से लिखी। रही सही कसर कांग्रेस ने यहां नितांत गैर मुनासिब चेहरा लाकर पूरा कर दी। नतीजा उमेश कुमार की विधानसभा जीत के रूप में निकला।

लेकिन उनका लक्ष्य लोक सभा ही था यह तब जाहिर हुआ जब उन्होंने विधानसभा के तत्काल बाद जिले के विधायकों का गठबंधन बनाने का प्रयास किया। फिर अपना राजनीतिक दल बनाने का प्रयास किया और फिर अपनी पत्नी नीलिमा शर्मा को बसपा की सदस्यता दिलाकर उन्हें लोकसभा प्रभारी बनवाकर तो उन्होंने अपने पत्ते खोल ही दिए। इस बीच वे अपने अंदाज में लगातार जनता के बीच भी बने रहे। उन्होंने बेटियों की शादी कराने और लोगों की सहायता व्यक्तिगत स्तर पर करने का अपना अभियान भी जारी रखा; विधायक निधि में विधायक कमीशन को लेस करके लोगों की सड़क पुलिया नाली की आवश्यकता पर भी फोकस रखा और नियमित जन संवाद भी किया। यही यह साबित करने के लिए काफी था कि उनके लिए विधायक पद एक पड़ाव था और उनका मुख्य लक्ष्य सांसद पद था। लेकिन 19 अप्रैल को यह जाहिर हुआ कि जिन लोगों ने उन्हें विधायक बनाया था उनका लक्ष्य उन्हें सांसद बनाना नहीं था। भाजपा कांग्रेस के जो सिपहसालार 2022 में उनके दांए बांए खड़े थे, 2024 में वे उनके साथ कहीं नहीं थे। यही कारण है कि 19 अप्रैल को राजनीति के केंद्र में वे कहीं दिखाई नहीं दिए। वैसे यह अपेक्षित ही था।

मंगलौर के पूर्व विधायक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ने मार्च के अंत में ही एक यूट्यूब चैनल को इंटरव्यू देकर कह दिया था कि हरिद्वार में मुकाबला कांग्रेस भाजपा के बीच है। इसलिए अब सवाल यही है कि खानपुर में उमेश कुमार का परफॉर्मेंस कैसा रहने वाला है? जाहिर है कि नतीजा 4 जून को आएगा।