कोई इस संभावना को हल्के में न ले। रुड़की में भाजपा में जाकर प्रत्याशी तलाश करना कांग्रेस की पुरानी परंपरा है। निकाय चुनाव के संदर्भ में कांग्रेस में यशपाल राणा की या सचिन गुप्ता की या हंसराज सचदेवा की प्रासंगिकता तभी तक है जब तक मेयर पद सामान्य वर्ग के लिए फ्री है। जैसा कि संभावना जताई जा रही है कि इस बार रुड़की का मेयर पद पिछड़ा वर्ग, खासतौर पर पिछड़ा वर्ग की महिला, के लिए आरक्षित हो सकता है, तो यह सवाल बहुत मजबूत हो जाएगा कि पार्टी अपने ही किसी पिछड़े, मसलन, सैनी, गुर्जर, जाट या रोड, चेहरे पर दांव लगाएगी या प्रत्याशी भाजपा से लाएगी! दूसरा सवाल यह है कि अगर ऐसा होता है टिकट किस जाति वर्ग के नाम जायेगा? सैनी के, गुर्जर के, जाट के या रोड के नाम?
कांग्रेस रुड़की में दूसरे नंबर की पार्टी है। लेकिन यह भी सच है कि उसने केवल दो बार अपने पुराने कार्यकर्ता को टिकट दिया है। एक बार 2002 के विधानसभा चुनाव में पंडित मनोहर लाल शर्मा को। दूसरी बार 2008 के निकाय चुनाव में दिनेश कौशिक को। लेकिन दिनेश कौशिक को टिकट हासिल करने के लिए 2003 में पार्टी के बागी के रूप में निकाय प्रमुख का चुनाव लडना और जीतना पड़ा था, पार्टी से निष्कासित होना पड़ा था और फिर उनकी वापसी हुई थी। तब कहीं जाकर पार्टी ने उन्हें कांग्रेसी माना था। पार्टी के टिकट पर 2022 का विधान सभा चुनाव लड़े यशपाल राणा भी 2013 में भाजपा के बागी होकर निर्दलीय मेयर बने थे और फिर कांग्रेस में आए थे। बाकी किसी भी चुनाव में पार्टी ने अपने कार्यकर्ता को कभी टिकट नहीं दिया। यह अलग बात है कि पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं में कोई बिरला ही टिकट हासिल करने की राजनीति करता है; जैसे कभी मनोहर लाल शर्मा करते थे या अब सचिन गुप्ता घोषित रूप से करते हुए अपने व्यक्तित्व और अपने समीकरण को प्रभावी बना रहे हैं। ठीक इसी प्रकार हंसराज सहदेवा खामोश राजनीति कर रहे हैं और अपने समीकरण के प्रभावी होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यशपाल राणा समेत इन दोनों की भी उम्मीद सीट के सामान्य रहने पर ही है।
बहरहाल, रुड़की महानगर क्षेत्र के करीब पौने दो लाख वोटों में मुस्लिम वोटों की संख्या करीब एक तिहाई है और इनमें 98 फीसद हिस्सा पिछड़ी बिरादरियों का है। लेकिन मेयर टिकट का दावेदार कोई पिछड़ा मुस्लिम चेहरा महानगर में नहीं है।
अब स्थिति यह है कि कांग्रेस के पास यूं तो एक रोड, एक जाट, एकाध गुर्जर चेहरे भी हैं और तीन चार सैनी चेहरे भी हैं। लेकिन इस बात की संभावना न के बराबर है कि कांग्रेस अपने जाट को टिकट देगी; अलबत्ता भाजपा के किसी जाट को अपने साथ लाकर कांग्रेस यह काम कर सकती है। इसी प्रकार कांग्रेस अपने रोड को भी शायद ही प्रत्याशी बनाएगी। यहां भी प्रत्याशी की तलाश में वह भाजपा में जा सकती है। सच तो यह है कि अपने सैनी और अपने गुर्जर को टिकट देने के मुकाबले भी वह किसी भाजपाई को तोड़ना अधिक पसंद कर सकती है। लेकिन भाजपा से तोड़कर लाने के मामले में उसके सामने रोड और जाट चेहरों के विकल्प बेहद सीमित हैं क्योंकि इन बिरादरियों के चेहरे भाजपा में ही बेहद सीमित हैं। अलबत्ता गुर्जर और सैनी के रूप में उसके सामने भाजपा में असीमित विकल्प होंगे। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी अगर अपनी परंपरा को कायम रखेगी तो किस बिरादरी का चेहरा भाजपा से तोड़ेगी और अपना प्रत्याशी बनाएगी। वैसे हो यह भी सकता है कि इस बार पार्टी नया प्रयोग करे। आखिर राहुल गांधी के रूप में इस बार पार्टी का नया नेतृत्व प्रभावी हो गया है।