दिग्भ्रमित रहेगी या कोई स्पष्ट निर्णय लेगी अंसारी बिरादरी?

एम हसीन, मंगलौर। हाल के विधान सभा उप चुनाव में साढ़े 31 हजार वोट लेकर जीतने वाली कांग्रेस और लगभग इतने ही वोट लेकर हारने वाली भाजपा में निकाय चुनाव को लेकर खामोशी है। कांग्रेस में बेशक टिकट के कई दावेदार हैं लेकिन चूंकि स्थानीय विधायक और उनके ग्रुप की नजरे इनायत चौधरी इस्लाम पर दिखाई दे रही है और चौधरी इस्लाम का अभियान खामोशी से चल रहा है तो यहां मुकम्मल खामोशी है। इसी प्रकार भाजपा कैप की ओर से एकमात्र चेहरा जमीर हसन अंसारी का है, इसलिए वहां भी जो कुछ है खामोशी के साथ ही है।

इसके विपरीत करीब 12 हजार वोट घटाकर पहली पायदान से सीधे तीसरे पायदान पर आई बसपा में निकाय चुनाव को लेकर उत्साह आसमान पर है। यह खासी कमाल की बात है कि इतनी दुर्दशा का शिकार होकर हटी पार्टी में नए सिरे से अध्यक्ष पद कम से कम आधा दर्जन दावेदार दिखाई दे रहे हैं और हर किसी का लक्ष्य नगर पालिका अध्यक्ष का पद है। देखा जाए तो यह अप्रत्याशित नहीं है। इसका कारण यह है कि विधान सभा में कमज़ोर चुनाव लड़ा होने के बावजूद मंगलौर नगर में उसका प्रदर्शन प्रभाव शाली रहा। करीब 45 हजार वोटों वाले नगर क्षेत्र में उसे करीब साढ़े 9 हजार वोट मिले और वह कांग्रेस के मुकाबले महज 4 हजार के करीब वोटों से पिछड़ी। इनमें भी खासी संख्या अंसारियो की रही जो कि भाजपा विरोध की हवा में कांग्रेस के साथ बह गए। इनकी वापसी की उम्मीद अंसारी बिरादरी भी कर रही है और बसपा भी।

बहरहाल, बात अगर अंसारी चेहरों की ही दावेदारी की की जाए तो सवाल यह नहीं है कि बसपा जीत पाएगी या नहीं; सवाल यह है कि इतने प्रत्याशियों की उपस्थिति में जब सब अपने अपने वजूद के साथ परिणाम लेकर आएंगे तो बसपा कितने टुकड़ों में बंटी हुई नजर आएगी? यही स्थिति उस अंसारी बिरादरी की भी होगी जिसकी रूह विधानसभा उप चुनाव में दुर्दशा के बाद जख्मी है और अपने लिए कोई राहत चाहती है। हालांकि इसका एक हल यह भी हो सकता है कि ये सभी दावेदार अंत में किसी एक प्रत्याशी के नाम पर सहमत हो जाएं। यह इसलिए भी हो सकता है कि बसपा कैंप में नगर पालिका चेयरमैन पद के लगभग सारे दावेदार अंसारी बिरादरी से ही आते हैं। केवल क़ाज़ी खालिद हैं जो अंसारी नहीं हैं। जैसा कि पार्टी और अंसारी बिरादरी के मौजूदा सरबराह सैयद अली हैदर जैदी और शिया समुदाय में उनके कट्टर विरोधी खलील अहमद चाहते हैं कि “विधानसभा चुनाव में अपनी हार का बदला अंसारी बिरादरी क़ाज़ी खालिद को नगर पालिका चेयरमैन बना कर ले।” हो सकता है कि अंसारी बिरादरी इसे मान ले। लेकिन फिर भी कोई न कोई अंसारी चेहरा तो मैदान में रहेगा ही। कोई और रहे न रहे जमीर हसन अंसारी तो रहेंगे ही, जिनका दावा उन पौने 5 हजार वोटों पर भी है जो पार्टी को हाल के उप चुनाव में नगर में मिले। यह वोट तो जाहिर है कि न कांग्रेस समर्थक है और बसपा समर्थक। ऐसे में हो यह भी सकता है कि इस बार बिरादरी की अस्मिता के लिए अंसारी मतदाता बसपा को किनारे कर दे और भाजपा को ही चुन ले। दरअसल, राजनीति संभावना का खेल है जिसमें धार्मिक और जातीय अस्मिता की रक्षा का खेल अक्सर होता है।