पिछले दिनों उनके होर्डिंग्स से आच्छादित दिखाई दिया नगर

एम हसीन

रुड़की। चेरब जैन कभी रुड़की के विधायक रहे सुरेश जैन के पोते हैं। यही नगर में उनकी पहचान है। इसके अलावा उनके विषय में सामान्य जन केवल इतना ही जानता है कि वे एक कॉलेज चला रहे हैं। चूंकि रुड़की शिक्षा संस्थानों की मंडी के रूप में उभरा है और इस मंडी में हजारों कॉलेज संचालक हैं। तो यह कहा जा सकता है कि इन हजारों में वे भी एक हैं। कोई इनग्रेडीएंट एक्स अगर उनका होगा भी तो वह सार्वजनिक नहीं है। सामाजिक रूप से उनकी कोई पहचान अगर होगी भी तो या तो उनके जैन समाज में या फिर नगर के धनपति वर्ग में ही होगी। निचले स्तर पर उनकी पहचान बहुत अधिक नहीं है। हालांकि उनकी फेस बुक वाल को देखकर जाना जा सकता है कि उन्होंने वृक्षारोपण के लिए भी कुछ काम किया है। बहरहाल, यही चेरब जैन पिछले दो महीनों में नगर के हर मुख्य चौराहे पर होर्डिंग्स के रूप में नजर आए वो भी सपत्नीक। क्यों?

हाल ही में जब शिवरात्रि के मौके पर वे रामनगर स्थित शिव मंदिर पर प्रसाद वितरण कर रहे थे तो यह सवाल उनसे एक पत्रकार ने पूछा था कि उनकी सक्रियता का कारण क्या है? जाहिर है कि उन्होंने इसका कुछ जवाब भी दिया होगा। लेकिन मैं ने वो सुना नहीं। कारण वह औपचारिक जवाब रहा होगा। मेरी निगाह में आज होर्डिंग्स पर आने वाले लोगों का मंतव्य अपने आप को सामाजिक रूप से नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से स्थापित करने का होता है। सामाजिक रूप से खुद को स्थापित करने के इच्छुक लोग, वे भी कॉलेज संचालक जैसे “भद्र” लोग, किसी क्लब, यथा रोटरी, लायन आदि, में जाते हैं, होर्डिंग्स में नहीं। रुड़की में समाज का यही ढब है। जिन्हें चुनावी राजनीति में जाना होता है वे होर्डिंग्स में आते हैं। अलबत्ता यह हो सकता है कि चेरब जैन का उद्देश्य आसन्न निकाय चुनाव न हो, मेयर पद का टिकट न हो बल्कि 2027 का विधानसभा चुनाव हो; जब वे भाजपा में प्रदीप बत्रा के टिकट को चुनौती देने की स्थिति में खुद को समझते हों। आखिर यह तो सच है कि भाजपा टिकट का बत्रा के नाम पट्टा तो लिखा नहीं गया और बत्रा ने भी खुद को भाजपा के नाम “वक्फ” नहीं कर दिया हुआ है। वे भी 2027 में जरूरी समझेंगे तो अपने लिए कोई और रास्ता चुन लेंगे; जैसा कि वे अभी तक करते आए हैं।

कुल मिलाकर चेरब जैन की यह उम्मीद हो सकती है कि 2027 में उनके लिए कोई रास्ता खुल जायेगा। कोई “रास्ते” में वह रास्ता भी शामिल है जो 2017 में भाजपा का टिकट कट जाने के बाद सुरेश जैन के लिए खुला था और बताया जाता है कि अपने दादा के लिए वह रास्ता, जो सीधा कांग्रेस में पहुंचा था, खोलने में चेरब जैन की ही अहम भूमिका थी। बहरहाल, फिलहाल चेरब जैन की सक्रियता के लिए इतना काफी है कि हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत हैं जो कि उनके दादा के पुराने साथियों में हैं। अर्थात चेरब जैन खुद को “नई बोतल में पुरानी शराब” के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं; अर्थात नाम दादा का और चेहरा अपना। इसे उनका सौभाग्य या दुर्भाग्य कुछ भी कहा जा सकता है कि एक खास “क्लब” का सहयोग उन्हें 2017 में भी मिला था और 2027 में भी मिल सकता है।फिलहाल उनका मंतव्य केवल इतना दिखता है कि “बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा!” आखिर यह कोई कम बात तो नहीं कि मेरे जैसा पत्रकार उनके ऊपर स्टोरी कर रहा है, जबकि मैं उन्हें जानता भी नहीं, वे मुझे जानते भी नहीं।