लंढौरा। सामान्य तौर अपने क्षेत्र की विकास योजनाओं को स्वीकृत कराने, स्वीकृत हो चुकी योजनाओं का शिलान्यास कराने और क्षेत्र का भ्रमण कर समस्याओं को जानने समझने में व्यस्त खानपुर के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार की प्राथमिकता पर लगता है कि आसन्न निकाय चुनाव नहीं है। इसका प्रमाण केवल यह नहीं है कि लोकसभा चुनाव में उनके साथ चले निकाय चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों ने अपना अलग रास्ता चुनना शुरू कर दिया या अपने होर्डिंग्स पर उमेश कुमार के फोटो लगाना बंद कर दिया है बल्कि इसका प्रमाण उमेश कुमार का बयान भी है। उन्होंने हाल में एक खबरिया चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा है कि वे 2027 के विधानसभा चुनाव में 10 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी मैदान में उतरेंगे। निकाय चुनाव को लेकर उन्होंने अपनी कोई प्राथमिकता नहीं बताई है।
उमेश कुमार ने हाल के लोकसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी शिरकत करते हुए 93 हजार वोट हासिल किए थे। उन्हें हरिद्वार जिले की खानपुर सहित 10 सीटों पर 16 हजार से लेकर 4 हजार तक वोट मिले थे। यूं यह जाहिर हुआ था कि उनकी जिले भर में एक हद तक पूछ है। इसी कारण उम्मीद यह जताई जा रही थी कि वे निकाय चुनाव में अपनी टीम को मजबूत बनाने की कोशिश करेंगे। सच तो यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में उनके जीतने के बाद ही अनेक ऐसे लोग उनके साथ जुड़े थे जो निकाय चुनाव में शिरकत का इरादा जाहिर कर चुके थे। मसलन, रामपुर नगर पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की घोषणा करते चले आ रहे जुल्फिकार उनकी टीम का हिस्सा बने थे और लोकसभा चुनाव में उन्होंने उमेश।कुमार की सहायता भी की थी। लंबे समय तक उनके होर्डिंग्स पर उमेश कुमार का फोटो दिखाई दिया था, मगर अब दिखाई नहीं दे रहा है। रुड़की में हाल ही में आजाद समाज पार्टी में शामिल हुए जमाल ने भी उनसे नाता कायम किया था। वे तो उमेश कुमार से इतना मुतास्सिर थे कि उन्होंने युवा कांग्रेस का निर्वाचित महासचिव होने के बावजूद अपने होर्डिंग्स पर उमेश कुमार का फोटो लगा दिया था और यूं कांग्रेस से निष्कासित हुए थे। उनकी ख्वाहिश रुड़की में मेयर का चुनाव लडना है और इसी इरादे के साथ अब वे आजाद समाज पार्टी में गए हैं। लोकसभा चुनाव में रुड़की के कांग्रेसी जगदेव शेखों उमेश कुमार के साथ आ गए थे। उनकी उम्मीदें कहीं न कहीं निकाय चुनाव को लेकर ही उमेश कुमार से जुड़ी थी। लेकिन अब लगता है कि वे अपनी कोई दिशा तय नहीं कर पा रहे हैं। रुड़की में ही तनुज राठी की भी शायद उमेश कुमार से ऐसी ही थी। लेकिन उनकी स्थिति भी वैसी ही दिखाई दे रही है जैसी जगदेव शेखों की। जहां तक सवाल निकाय चुनाव का है तो रुड़की मेयर पद के चुनाव में वे काफी कुछ कर सकते हैं यह उन्हें लोकसभा चुनाव में मिला वोटों का आंकड़ा बताता है। अगर वे अपनी पत्नी सोनिया शर्मा को प्रत्याशी बनाकर चुनाव लड़ाते हैं और 40 वार्डों में पार्षद प्रत्याशी लेकर आते हैं तो एक नई तस्वीर बनाने में कामयाब रह सकते हैं। लेकिन साफ दिख रहा है कि यह उनकी प्राथमिकता नहीं है।
जहां तक सवाल उमेश कुमार के 10 सीटों पर प्रत्याशी लड़ाने का है तो यह पहले से उनकी सोच में शामिल रहा है। सब जानते हैं कि विधायक निर्वाचित होने के तत्काल बाद उन्होंने जिले के सभी गैर भाजपा विधायकों का एक गठबंधन बनाने की कोशिश की थी। इसके लिए तमाम विधायकों की एक बैठक भी हुई थी। इस कोशिश में नाकाम रहने के बाद उन्होंने अपना राजनीतिक दल भी बनाया था जिसे लेकर मामला हाई कोर्ट पहुंच गया था और मुहिम नाकाम हो गई थी। दरअसल, लोकसभा या विधान सभा स्तर पर ही राजनीति को कोई दिशा देना दो कारणों से उमेश कुमार की मजबूरी है। उनकी एक मजबूरी यह है कि उनके लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही रास्ते नहीं खुल रहे हैं। दूसरी मजबूरी यह है कि जिस ग्रुप से वे जुड़े हैं वह उनसे शायद ऐसी ही राजनीति की उम्मीद करता है जैसे कभी बसपा से की गई थी। अर्थात, सत्ता के बैलेंस की राजनीति। ऐसे में निकाय चुनाव उनकी प्राथमिकता पर न होना समझ में आने वाली बात है।